By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'
प्रदूषण का अर्थ : पर्यावरण प्रदूषण का अर्थ होता है पर्यावरण का विनाश अथार्त
ऐसे माध्यम जिनसे हमारा पर्यावरण प्रदूषित होता है। हमारे पर्यावरण प्रकृति और मानव
की निर्मित चीजों के द्वारा गठित हैं। लेकिन हमारे ये पर्यावरण कुछ माइनों में प्रदूषित
हो रहे हैं।
पर्यावरण प्रदूषण हमारे जीवन की सबसे बड़ी समस्या है। प्रदूषण
की वजह से हमारा पर्यावरण बहुत अधिक प्रभावित हो रहा है। प्रदूषण चाहे किसी भी तरह
का हो लेकिन वह हमारे और हमारे पर्यावरण के लिए बहुत हानिकारक होता है। प्रदूषण से
पृथ्वी दूषित होती है और उसका संतुलन भी बिगड़ जाता है। हम लोग एक प्रदूषित दुनिया में
रह रहे हैं जहाँ पर वायु, जल,
भोजन सभी चीजे दूषित हैं। मनुष्य प्रजाति प्रदूषण को उत्पन्न
करने में सबसे अहम योगदान दे रही है। लोग पॉलीथीन और पेट्रोलियम जैसी चीजों का प्रयोग
अधिक करते जा रहे हैं जिसकी वजह से पर्यावरण को बहुत हानि हो रही है।
प्रदूषण के प्रकार : कहा जाए तो मोटे तौर पर पर्यावरण के मुख्य तीन घटक होते हैं
–
अजैविक या निर्जीव, जैविक या सजीव और ऊर्जा घटक। अजैविक या निर्जीव घटक स्थलमण्डल
हैं,
जैविक या सजीव रहने वाले घटक पौधों,
जानवरों और मनुष्य सहित प्रतिनिधित्व कर रहे हैं और ऊर्जा घटक
जैसे –
सौर ऊर्जा, पनबिजली, परमाणु ऊर्जा आदि विभिन्न जीवों के रखरखाव हेतु बहुत जरूरी हैं।
पर्यावरण प्रदूषण के कई प्रकार हैं जिनके प्रमुख निम्न प्रकार से हैं –
वायु-प्रदूषण : महानगरों में यह प्रदूषण अधिक फैला है। वहां चौबीसों घंटे कल-कारखानों का धुआं,
मोटर-वाहनों का काला धुआं इस तरह फैल गया है कि स्वस्थ वायु
में सांस लेना दूभर हो गया है। मुंबई की महिलाएं धोए हुए वस्त्र छत से उतारने जाती
है तो उन पर काले-काले कण जमे हुए पाती है। ये कण सांस के साथ मनुष्य के फेफड़ों में
चले जाते हैं और असाध्य रोगों को जन्म देते हैं! यह समस्या वहां अधिक होती हैं जहां
सघन आबादी होती है, वृक्षों का अभाव होता है और वातावरण तंग होता है।
जल-प्रदूषण : कल-कारखानों का दूषित जल नदी-नालों में मिलकर भयंकर जल-प्रदूषण पैदा करता है। बाढ़
के समय तो कारखानों का दुर्गंधित जल सब नाली-नालों में घुल मिल जाता है। इससे अनेक
बीमारियां पैदा होती है।
ध्वनि-प्रदूषण : मनुष्य को रहने के लिए शांत वातावरण चाहिए। परन्तु आजकल कल-कारखानों
का शोर,
यातायात का शोर, मोटर-गाड़ियों की चिल्ल-पों, लाउड स्पीकरों की कर्णभेदक ध्वनि ने बहरेपन और तनाव को जन्म
दिया है।
प्रदूषणों के दुष्परिणाम : उपर्युक्त प्रदूषणों के कारण मानव के स्वस्थ जीवन को खतरा पैदा
हो गया है। गंदे जल के कारण कई बीमारियां फसलों में चली जाती हैं जो मनुष्य के शरीर
में पहुंचकर घातक बीमारियां पैदा करती हैं। पर्यावरण-प्रदूषण के कारण न समय पर वर्षा
आती है,
न सर्दी-गर्मी का चक्र ठीक चलता है। सुखा,
बाढ़, ओला आदि प्राकृतिक प्रकोपों का कारण भी प्रदूषण है।
प्रदूषण मे मनुष्य की भूमिका : मनुष्य जाति इस स्थिति के लिए खुद ही जिम्मेदार है। क्योंकि
मनुष्य जाति ऐसी बहुत सी वस्तुओं का प्रयोग कर रही है जिसे बनाने के लिए बहुत हानिकारक
पदार्थों का प्रयोग किया जाता है और जब ये चीजें फालतू बच जाती हैं तो इन्हें फेंक
दिया जाता है जिसकी वजह से हानिकारक कैमिकल्स आस-पास के वातावरण में फैलने लगते हैं
और पर्यावरण को प्रदूषित कर देते हैं।
प्रदूषण की समस्या को बड़े-बड़े शहरों में ज्यादा देखा जाता है
क्योंकि वहाँ पर 24 घंटे कारखानों का और मोटर गाड़ियों का धुआँ बहुत ज्यादा मात्रा में फैल रहा होता
है जिसकी वजह से लोगों को साँस लेने में बहुत समस्या होती है। मनुष्य अपनी प्रगति के
लिए वृक्षों को अँधा-धुंध काटता जा रहा है जिसकी वजह से प्रदूषण की मात्रा बढती जा
रही है।
मनुष्य प्रकृति से मिले इस अमूल्य धन को व्यर्थ ही नष्ट करता
जा रहा है। पर्यावरण में कार्बन-डाई-आक्साइड की अधिक मात्रा हो गई है जिसकी वजह से
धरती का तापमान बढ़ता जा रहा है। धरती के तापमान बढने की वजह से ओजोन परत को हानि हो
रही है जिसके कारण सूर्य की किरण सीधी धरती पर पहुंचने लगी हैं और मनुष्य को अलग-अलग
तरह की बीमारियाँ हो रही हैं।
पर्यावरण प्रदूषण से हमारी सामाजिक स्थिति खंडित हो जाती है।
दुनिया में प्राकृतिक गैसों का संतुलन बना रहना बहुत जरूरी होता है लेकिन मनुष्य अपने
स्वार्थ के लिए पेड़ों की अँधा-धुंध कटाई कर रहे हैं।
अगर यहाँ पर कोई पेड़ ही नहीं रहेगा तो पेड़ कार्बन-डाई-आक्साइड
को ग्रहण नहीं कर पाएंगे और ऑक्सीजन को छोड़ नहीं पाएंगे। ऐसे में पेड़ों के प्रतिशत
की बहुत अधिक मात्रा में खपत हो जाएगी। कार्बन-डाई-आक्साइड की वजह से ग्लोबल वार्मिंग
की समस्या अधिक बढ़ जाएगी। इसी वजह से बहुत सी गंभीर समस्याएँ उत्पन्न होती जा रही हैं।
वायु प्रदूषण की वजह से साँस लेने से फेफड़ों और श्वसन के रोग उत्पन्न होते जा रहे हैं।
जल प्रदूषण की वजह से पेट की समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं।
जल प्रदूषण की वजह से गंदा पानी पी रहे जानवरों की भी मृत्यु
हो रही है। ध्वनि प्रदूषण की वजह से मानसिक तनाव, बहरापन जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है ।
प्रदूषण का समाधान : प्रदूषण से पर्यावरण को बचाने के लिए जल्द नियंत्रण की जरूरत
है। वनीकरण की तरफ अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए। हो सके तो पेड़ों की कम-से-कम कटाई की
जानी चाहिए। पर्यावरण प्रदूषण के लिए सरकार को उचित कदम उठाने होंगे और इसके विरुद्ध
नए कानून जारी करने होंगे।
केवल सरकार ही नहीं बल्कि राजनेताओं,
विचारकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और भारत के प्रत्येक मनुष्य को इसे दूर
करने के बारे में अधिक जागरूक होना होगा। जागरूकता लाने के लिए विकास की बहुत आवश्यकता
है। आधुनिक युग के वैज्ञानिकों में प्रदूषण को खत्म करने के लिए बहुत से प्रयत्न किये
जा रहे हैं।
हर मनुष्य को सोचना चाहिए कि कूड़े के ढेर और गंदगी के आस-पास
जल स्त्रोत या जलाशय न हों। मनुष्य को कोयला और पेट्रोलियम जैसे उत्पादों का बहुत कम
प्रयोग करना चाहिए और जितना हो सके प्रदूषण से रहित विकल्पों को अपनाना चाहिए। मनुष्य
को सौर ऊर्जा, सीएनजी,
वायु ऊर्जा, बायोगैस, रसोई गैस, पनबिजली का अधिक प्रयोग करना चाहिए ऐसा करने से वायु प्रदूषण
और जल प्रदूषण को कम करने में बहुत सहायता मिलती है।
सरकार को आगे बनाने वाले कारखानों को शहर से दूर बनाना चाहिए।
ऐसे यातायात साधनों को प्रयोग में लाना चाहिए जिससे धुआं कम निकले और वायु प्रदूषण
को रोकने में मदद मिल सके। पेड़-पौधों और जंगलों की कटाई पर प्रतिबंध लगाना चाहिए।नदियों
के जल को कचरे से बचाना चाहिए और पानी को रिसाइक्लिंग की सहायता से पीने योग्य बनाना
चाहिए। प्लास्टिक के बैगों का कम प्रयोग करना चाहिए और जिन्हें रिसाइकल किया जा सकें
उनका प्रयोग अधिक करना चाहिए।
प्रदूषण की रोकथाम : अगर मनुष्य पृथ्वी पर जीवित रहना चाहता है तो पर्यावरण को प्रदूषित
न होने दे और अपने आस-पास के वातावरण को साफ और स्वच्छ रखने की हर मुमकिन कोशिश करे।
पर्यावरण को स्वच्छ रखने के लिए लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता का भाव पैदा
करना चाहिए। मनुष्य को जितना हो सके अधिक-से-अधिक पेड़-पौधे लगाने चाहिए। वैज्ञानिकों
द्वारा धुम्रपान को कम करने के उपाय को खोजा जा रहा है। संसार के सभी लोगों को मिलकर
पर्यावरण प्रदूषण को रोकने की कोशिश करनी चाहिए।