By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'
प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार आहार ही मुख्य औषधि है। इस कथन
में इंच भर का भी संदेह नहीं है। इसी में स्वास्थ्य एवं समृद्ध जीवन का राज छिपा हुआ
है |
प्राकृतिक उपचारों के माध्यम से शरीर को शुद्ध करके,
उचित आहार के द्वारा शरीर की रोग निवारक शक्ति को बढ़ाकर रोगमुक्त
हुआ जा सकता है | यही सच्चा स्वास्थ्य है, लेकिन पिछले कुछ समय में जिस तरह से हमारी जीवन शैली बदली है,
उसके साथ-साथ हमारी खाने-पीने से संबंधित आदतें भी प्रभावित
हुई हैं। बदलाव के इसी क्रम में आज समाज में न जाने कितनी ही बीमारियां घर कर चुकी
हैं। फास्ट फूड्, शीत पेय, स्नैक्स,
जैसे खाद्य एवं पेय पदार्थों का बाजार बढ़ा है,
उसके मद्देनजर भी हमें खान-पान संबंधी आदतों की पड़ताल करनी
होगी। इसलिए जरूरी हो जाता है कि स्वस्थ एवं सुखी भविष्य के लिए हम आज ही पौष्टिक व
साफ-स्वच्छ आहार संबंधी आवश्यकताएं निर्धारित कर लें।
रोग निवारण की दृष्टि से यदि फल-सब्जियों के रस अथवा फल व दूध पर रहा जाए तो रोग बहुत जल्द और आसानी
से समाप्त हो जाते हैं |
रसाहार :
रसाहार के दौरान दिन
में तीन-चार बार 250 मिली. या इससे भी कम मात्रा में किसी फल या तरकारी का रस लेना
चाहिए,
फल रस के लिए संतरा, मुसम्मी, अनन्नास, जामुन, रसभरी, टमाटर अच्छे हैं। इनका रस बहुत गाढ़ा हो तो 200 मिली. रस में 100 से 200 मिली. पानी मिला लेना चाहिए।
सब्जियों में लौकी, टमाटर एवं गाजर का रस कच्चा ही लिया जा सकता है। इन सब्जियों
का रस निकालने के लिए कद्दूकस पर कस लेने के बाद कपड़े से दबाकर रस आसानी से निकाला
जा सकता है। अन्य सब्जियों का रस उन्हें उबालकर ही लिया जा सकता है। इसके लिए पांच
सौ ग्राम तरकारी के साथ 100-200 मिली. पानी मिलाकर,
पकाने से रस निकल आता है।
दूध एवं फलाहार :
फलाहार में दिन में तीन बार फल लेना चाहिए। एक बार में एक ही
प्रकार का फल लिया जाये। जैसे- प्रातः टमाटर,
दोपहर को संतरे और शाम को सेब। यदि एक दिन में तीनों बार या
दो बार एक ही प्रकार का फल लिया जाये तो और भी अच्छा है। एक बार में 300 से 400 ग्राम से अधिक फल नहीं लेना चाहिए |
यदि फलों के साथ दूध भी लेना हो तो फलों के साथ साथ 250 मिली. दूध लेना चाहिए।
दूध प्रातः – सांय
ताज़ा निकला हुआ कच्चा ही लेना चाहिए और दोपहर को प्रातः गरम करके रखा हुआ। फल खाते
हुए बीच-बीच में दूध पीना चाहिए |
हरी सब्जियां :
हरी सब्जियों को काटने से पूर्व अच्छी तरह से धो लेना चाहिए
|
यदि छिलका खाने योग्य हो तो उसे उतरना नहीं चाहिए |
सब्जी बनाने के लिए 5 ग्राम घी/मूंगफली अथवा नारियल के तेल में थोड़ा सा जीरा डालकर
सब्जी को धीमी आंच में पकाना चाहिए। सब्जियों में मसाले के रूप में सिर्फ धनिया,
हल्दी, जीरा और नमक का ही प्रयोग
करें |
नमक की मात्रा कम से कम रखें |
ऐसी सब्जियां जो पकने के समय पानी छोड़ती हैं –
जैसे लौकी, तोरई आदि इनमे पकाने के लिए अलग से पानी डालने की आवश्यकता नहीं
होती |
सब्जियां इतनी धीमी आंच पर पकाएं कि इनका पानी जले नहीं क्योंकि
इसी पानी में सब्जियों के गुण आ जाते हैं | इसके
लिए जिस बर्तन में सब्जी पक रही हो उसे किसी थाली या कटोरी से ढककर इस थाली या कटोरी
में पानी भर दें | इससे सब्जियों का प्राकृतिक पानी नहीं जलेगा |
सलाद :
आमतौर पर कच्ची खायी जा सकने योग्य तरकारियां जैसे- खाीरा,
ककड़ी, गाजर, मूली, प्याज, टमाटर, पालक, धनिये की पत्तियां और पातगोभी सलाद के रूप में काम में आती है।
मौसम के अनुसार उपलब्ध कच्ची खा सकने योग्य सब्जियों को लेकर छोटा-छोटा काटकर एक में
मिला लेना चाहिए और उनमें थोड़ा सा भुना पिसा जीरा नमक डालकर या सादा ही खाना चाहिए।
सलाद भोजन के आरम्भ में ही चबा-चबा कर खा लेना चाहिए |
एक वयस्क व्यक्ति के लिये एक समय में ढाई सौ ग्राम सलाद पर्याप्त होता
है। फलों का भी सलाद के रूप में उपयोग कर सकते हैं |
चोकर सहित आटे की रोटी :
चोकर सहित आटे की रोटी कब्ज को तोड़ने एवं जड़ से नष्ट करने में
बहुत उपयोगी होती है | आटा बनाने के लिए साफ गेहूं को धूप में अच्छे से सुखाकर थोड़ा मोटा पिसवा लेना चाहिए
|
इस आटे को बिना छाने ही रोटी बनानी चाहिए। अच्छी रोटी बनाने
के लिए रोटी बनाने के दो-तीन घंटे पहले ही आटे को अच्छी तरह गूंद कर रख देना चाहिए।
रोटी हमेशा सूखी ही खानी उचित होता है क्योंकि इससे मुंह की
लार रोटी में अच्छी तरह से मिल जाती है जोकि रोटी में उपस्थित कार्बोज के पाचन के लिए
आवश्यक होती है | तरल पदार्थ जैसे सब्जी या दाल के साथ रोटी खाने से अक्सर हम बिना चबाये ही निगल
लेते हैं | इसीलिए
रोटी अलग और सब्जी अलग खानी चाहिए। पहले रोटी चबा कर खएं तदुपरांत सब्जी |
दलिया :
दलिया बनाने के लिए साफ गेहूं को धूप में अच्छे से सुखाकर इस
प्रकार दलवाना चाहिए कि एक गेंहू के आठ से बारह तक टुकड़े हो जायें। इस दलिया को तवे
पर धींमी आंच पर इतना भूनें कि दलिया बादामी रंग का हो जाये। दलिया पकाने के लिए इसमें पानी डालकर धीमी आंच पर
पतला दलिया बनाना चाहिए | दलिया चावल की तरह सादा ही बनाना चाहिए इसमें नमक या दूध नहीं डालना चाहिए |
यदि मीठा दलिया बनाना हो तो पकते समय उसमें कुछ मुनक्के डाले
जा सकते हैं।
चावल :
आजकल बाज़ार में पॉलिश किया हुआ चावल मिलता है,
जिसे हम अच्छा मानते हैं, परन्तु वास्तविकता यह है कि इस चावल में खाने योग्य तत्व पॉलिश
के दौरान निकाल दिए जाते हैं | चावल में उपस्थित कन वैसे ही उपयोगी है जैसे गेहूं में चोकर
|
अतः चावल धान लेकर उन्हें उतना ही कुटवाना चाहिए कि चावल पर
से केवल धान की भूसी निकले, चावल के ऊपर लगा कन न निकले | चावल इतने ही पानी में पकाना चाहिए कि पानी में जज्ब हो जाय
एवं चावल से मांड पसाने की जरूरत न पड़े |
पानी पीने का सही समय :
सर्दियों में प्रतिदिन डेढ़-दो लीटर एवं गर्मियों में ढाई से
तीन लीटर पानी अवश्य पीना चाहिए। पानी पिने का सबसे उपयुक्त समय –
प्रातः उठते ही, सोते समय, भोजन के एक घंटा पहले और दो घंटे बाद का होता है |
भोजन करने का सही समय :
दो आहार के बीच कम से कम
पांच घंटे का अंतर अवश्य रखना चाहिए | जलपान यदि सात-आठ बजे किया है तो दोपहर का भोजन बारह-एक बजे
और शाम को छह-सात बजे कर लेना चाहिए | रात्रि भोजन सोने के दो-तीन घंटे पहले लेना चाहिए।