VRINDAVAN INSTITUTE OF NATUROPATHY AND YOGIC SCIENCES is an authorized Work Integrated Vocational Education Center (WIVE) of Asian International University in India.

विश्राम एवं नींद की व्याख्या कीजिये

By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'


विश्राम
सब प्रकार के जीवों को कार्य के बाद विश्राम (Rest) की आवश्यकता पड़ती है, जिससे थकावट दूर हो जाए। थकावट मानसिक तथा शारीरिक, दोनों होती हैं और विश्राम से दोनों प्रकार की थकावट दूर होती है। हृदयगति, श्वसन क्रिया, मांसपेशियों के संकुंचन आदि जीवन की आवश्यक क्रियाओं में और चलने फिरने, बोलने, नेत्रों की मांसपेशियों द्वारा दृष्टि कार्य में तथा शारीरिक श्रम, जैसे हथौड़ा चलाना, मिट्टी खोदना, बोझ ढोना, दौड़ना आदि, सभी कार्यों में ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है।
मांसपेशियों की दक्षता आदर्श दशा में 40% से अधिक नहीं होती है। मनुष्य में तो यह और कम होती है। खिलाड़ी की यांत्रिक क्षमता प्राय: 20% से 30% ही होती है। इस क्रिया में, ऊतकों द्वारा ऊर्जा के लिए प्रदान शर्करा तथा ऑक्सीजन आदि की माँग तथा जलना बढ़ जाता है, जिसके लिए अधिक रक्तसंचार तथा अधिक ऑक्सीजन देने के उद्देश्य से क्रमश: हृदयगति तथा श्वसन क्रिया वेगपूर्ण हो जाती है। इससे शरीर की ऊष्मा बढ़ जाती है तथा लैक्टिक अम्ल एवं कार्बन डाइऑक्साइड को क्रमश: गुर्दा तथा श्वासोच्छ्‌वास द्वारा बाहर निकाल फेंका जाता है। जब मांसपेशी का संकुंचन बार बार होता है, तब व्यक्ति को थकान आने लगती है। यदि विद्युत्‌ उत्तेजन द्वारा मांसपेशी में संकुंचन क्रिया की जाए, तो संकुंचन धीरे धीरे कम होता जाएगा तथा अंत में अनुक्रिया नहीं होगी। कुछ समय तक उत्तेजना को रोक रखने के बाद विश्राम द्वारा मांसपेशी स्वस्थ हो जाएगी तथा संकुंचन गुण पुन: वापस आ जाएगा। थकावट की अवस्था से मुक्त होने के लिए ऑक्सीजन आवश्यक है। मनुष्य जितना ही अधिक थका रहेगा, उतने ही अधिक समय बाद कार्य की क्षमता उसमें आएगी। यदि अपेक्षाकृत कम विश्राम के बाद कार्य किया जाए, तो इसके फलस्वरूप बड़ी बड़ी दुर्घटनाएँ हो सकती हैं, जैसे थका मोटरचालक दुर्घटना अधिक करता है, क्योंकि वह आवश्यकता पड़ने पर, या संकेत के अनुसार, प्रबल वेगवाले वाहन को रोकने में जहाँ एक से दो सेकंड लगाता है, वहाँ थकावट की अवस्था में कई सेकंड लगा देगा तथा उस काल में प्रबल वेगवाला वाहन बहुत आगे बढ़ जाएगा, जिससे दुर्घटना हो सकती है।
उपर्युक्त कारणों से मानसिक तथा शारीरिक विश्राम की आवश्यकता होती है। यदि मानसिक विश्राम नहीं होगा, तो मनुष्य में थकावट के कारण संतुलन तथा स्फूर्ति नहीं रहेगी। यह साधारणत: देखा जाता है कि अधिक थकावट के बाद गहरी निद्रा आ जाती है जिससे जागने पर थकावट नहीं मालूम पड़ती है तथा व्यक्ति पुन: स्फूर्ति और प्रफुल्लता का अनुभव करता है। पर यदि पूरा विश्राम न मिले, या निद्रा में विघ्न पड़ जाए, तब व्यक्ति को थकान, आलस्य तथा शक्तिलोप का अनुभव होता है तथा मनन और समझने की मानसिक शक्ति में अव्यवस्था पाई जाती है। जानवरों को भी कार्य के बाद विश्राम तथा निद्रा की आवश्यकता होती है जिससे उन्हें पुन: कार्य करने की शक्ति प्राप्त हो जाती है।




नींद
नींद अपेक्षाकृत निलंबित संवेदी और संचालक गतिविधि की चेतना की एक प्राकृतिक बार-बार आनेवाली रूपांतरित स्थिति है, जो लगभग सभी स्वैच्छिक मांसपेशियों की निष्क्रियता की विशेषता लिए हुए होता है। इसे एकदम से जाग्रत अवस्था, जब किसी उद्दीपन या उत्तेजन पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता कम हो जाती है और अचेतावस्था से भी अलग रखा जाता है, क्योंकि शीत नींद या कोमा की तुलना में नींद से बाहर आना कहीं आसान है। नींद एक उन्नत निर्माण क्रिया विषयक (एनाबोलिक) स्थिति है, जो विकास पर जोर देती है और जो रोगक्षम तंत्र (इम्यून), तंत्रिका तंत्र, कंकालीय और मांसपेशी प्रणाली में नयी जान डाल देती है। सभी स्तनपायियों में, सभी पंछियों और अनेक सरीसृपों, उभयचरों और मछलियों में इसका अनुपालन होता है।
वयस्क मानव में नींद की सर्वोत्कृष्ट मात्रा :
नींद की सर्वोत्कृष्ट मात्रा कोई अर्थपूर्ण अवधारणा नहीं हो सकती, जब तक कि किसी व्यक्ति के सिरकाडियन आवर्तन के साथ जोड़कर नींद के समय या टाइमिंग को न देखा जाय. एक व्यक्ति का बड़ा नींद प्रकरण अपेक्षाकृत निष्फल और अपर्याप्त हो सकता है अगर यह दिन के "गलत" समय में होता है; व्यक्ति को शरीर के तापमान के न्यूनतम होने से पहले कम से कम छः घंटे सोना चाहिए।  मानव नींद उम्र के हिसाब से और व्यक्तियों के बीच भिन्न हो सकती है और अगर दिन में उनींदापन या दुष्क्रिया न हो तो नींद को पर्याप्त माना जाता है।