By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'
शरीर के किसी बाहरी अंश पर धक्के और दबाब के साथ पानी की
पतली या मोटी धार छोड़कर उसे स्नान देना डूस देना कहलाता है |यह कार्य रबड़ के पाइप
द्वरा,फुलवारी सींचने वाले झरना बर्तन द्वारा, टिन के बने किसी टोंटीदार बर्तन
द्वारा अथवा मग से धार बांधकर किया जा सकता है | डूस में प्रयुक्त
जल का तापमान, जल का दबाब तथा पानी की धार की मोटाई को रोगी की स्थिति के अनुसार
निर्धारित करना पड़ता है | डूस के जल का तापमान जितना कम हो डूस के समय को भी उतना
ही कम रखना चाहिए | रोग के प्रकार के अनुसार डूस की धार बाल से भी पतली हो सकती है
और एक से डेढ़ इंच मोटी भी |
गर्म डूस
जल का तापमान : गर्म डूस देने के लिए डूस
के जल का तापमान साधारणतया 104 से 108 डिग्री फारनहाइट होता है | परन्तु कभी-कभी
120 से 130 डिग्री फारनहाइट के तापमान का जल भी इस काम के लिए व्यवहृत होता है |
डूस देना 100 डिग्री फारनहाइट से प्रारंभ करके धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए | यह उपचार
15 सेकेण्ड से 5 मिनट तक दिया जा सकता है |
गर्म डूस खासकर दर्द को
दूर करने के लिए दिया जाता है इसलिए इसमें पानी के दबाब की ज्यादा आवश्यकता नहीं
पड़ती | जब शरीर के किसी अंग पर जल की मोटी धार का डूस दिया जाता है तब डूस की
टोंटी को घुमाते या हिलाते रहना चाहिए अन्यथा त्वचा के जल जाने या छिल जाने का भय
रहता है | गर्म डूस का प्रभाव वात संस्थान व रक्त संस्थान तथा ठण्डे डूस का प्रभाव
नाड़ी संस्थान पर विशेष रूप से पड़ता है |
न्युट्रल या सुसम डूस
: सुसम डूस में 92 डिग्री से 97
डिग्री फारनहाइट तक के तापमान का
जल प्रयोग किया जाता है | इस प्रयोग को 20 से 30 मिनट तक करते हैं | यह डूस
विशेषकर गुर्दों के रोग एवं वीर्य जनित रोगों व् दुर्बलता में विशेष लाभकारी होता
है | योनि सम्बन्धी रोगों तथा वात व्याधियों में भी इस डूस से लाभ मिलता है |
ठण्डा डूस : पुराने जीर्ण रोगों में यह प्रयोग लाभदायक सिद्ध होता है।
जिसकी मोटी या पतली धार द्वारा यह स्नान दिया जाता है। इस यन्त्र के अभाव में नल,रबड की नली का भी प्रयोग किया जाता है।
डूस का प्रभाव उसकी मोटी या पतली धार के दबाव पर निर्भर करता है। इसमें ठण्डे
पानी का प्रयोग किया जाता है। कमजोर व्यक्ति को डूस कम धार और कम ऊॅचाई से दिया
जाता है। इसमें दो से चार मिनट का समय एक अंग के लिए पर्याप्त रहता है। डूस दिये
जाने वाले अंग को थोडी देर रगड़कर गरम किया जाता है फिर तरेरा दिया जाता है। सिर,
हाथ, छाती,
पीठ सभी जगह इसका व्यवहार किया जा सकता है।