By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'
थामस एडिसन को अन्तःस्त्रावी विज्ञान का जनक कहा जाता है। अंतःस्त्रावी
तंत्र के अध्ययन को एन्ड्रोक्राइनोलोजी कहते है | मानव शरीर की मुख्य अन्तःस्त्रावी ग्रंथि एवं उनसे स्रावित हार्मोन्स
एवं उनके प्रभाव निम्न है-
1. पीयूष
ग्रन्थि
पीयूष ग्रन्थि मस्तिष्क में पाई जाती है।यह मटर के दाने के समान
होती है। यह शरीर की सबसे छोटी अतःस्त्रावी ग्रंथी है। इसे मास्टर ग्रन्थि भी कहते
है। इसके द्वारा आक्सीटोसीन, ADH/वेसोप्रेसीन हार्मोन, प्रोलेक्टीन होर्मोन, वृद्धि हार्मोन स्रावित होते है। इन्हें संयुक्त रूप से पिट्यूटेराइन
हार्मोन कहते है।
(i)
आक्सीटोसीन हार्मोन
: यह हार्मोन मनुष्य में दुध का निष्कासन
व प्रसव पीड़ा के लिए उत्तरदायी होता है। इसे Love हार्मोन भी कहते है। यह शिशु जन्म के बाद गर्भाशय को सामान्य
दशा में लाता है।
(ii)
ADH/ वैसोप्रेसीन : यह हार्मोन वृक्क नलिकाओं में जल के पुनरावशोषण को बढ़ाता है
व मूत्र का सांद्रण करता है इसकी कमी से बार-बार पेशाब आता है।
(iii)वृद्धि हार्मोन(सोमेटाट्रोपिन) : इसकी कमी से व्यक्ति बोना व अधिकता से महाकाय हो जाता है।
(iv)
प्रोलैक्टिन(PRL)/LTH/MTH : वृद्धि
हार्मोन जो गर्भावस्था में स्तनों की वृद्धि व दुध के स्रावण को प्रेरित करता है।
(v)L-H
हार्मोन(ल्यूटीनाइजिंग
हार्मोन) : यह हार्मोन लिंग हार्मोन
के स्रावण को प्रेरित करता है।
(vi)
F-SHहार्मोन : यह हार्मोन पुरूष में शुक्राणु व महिला में अण्डाणु के निर्माण
को प्रेरित करता है।
2. थाइराइड
ग्रन्थि
यह ग्रन्थि गले में श्वास नली के पास होती है यह शरीर की सबसे
बड़ी अंतरस्त्रावी ग्रन्थि है। इसकी आकृति एच होती है। इसके द्वारा थाइराक्सीन हार्मोन
स्रावित होता है। ये भोजन के आक्सीकरण व उपापचय की दर को नियंत्रित करता है। कम स्रावण
से गलगण्ड रोग हो जाता है।
इसके कम स्रवण से बच्चों में क्रिटिनिज्म रोग व वयस्क में मिक्सिडीया
रोग हो जाता है। अधिकता से ग्लुनर रोग, नेत्रोन्सेधी गलगण्ड रोग हो जाता है।
3. पैराथाइराइड ग्रन्थि
यह
ग्रन्थि गले में थाइराइड ग्रन्थि के पीछे स्थित होती है। इस ग्रन्थि से पैराथार्मोन
हार्मोन स्रावित होता है। यह हार्मोन रक्त में Ca++ बढ़ाता है जो विटामिन डी की तरह कार्य करता है। इस हार्मोन की
कमी से टिटेनी रोग हो जाता है।
4. थाइमस
ग्रन्थि
थाइमस ग्रन्थि को प्रतिरक्षी ग्रन्थि भी कहते है। इससे थाइमोसिन
हार्मोन स्रावित होता है। यह हृदय के समीप पाई जाती है। यह ग्रन्थि एंटीबाडी का स्रवण
करती है। यह ग्रन्थि बचपन में बड़ी व वयस्क अवस्था में लुप्त हो जाती है। यह ग्रन्थि
टी-लिम्फोसाडट का परिपक्वन करती है।
इसका प्रभाव लैंगिक परिवर्धन व प्रतिरक्षी तत्वों के परिवर्धन
पर पड़ता है।
5. अग्नाश्य
ग्रन्थि
अग्नाश्य ग्रन्थि को मिश्रत(अन्तः व बाहरी) ग्रन्थि कहते है।
यकृत के बाद दुसरी सबसे बड़ी ग्रन्थि है। इस ग्रन्थि में लैग्रहैन्स द्वीप समुह पाया
जाता है। इसमें α व β
कोशिकाएं पाई जाती है। जिनमें α
कोशिकाएं ग्लुकागान हार्मोन का स्रवण करती है। जो रक्त में ग्लुकोज
के स्तर को बढ़ाता है।
β कोशिकाएं इंसुलिन हार्मोन का स्त्राव करती है। जो रक्त में ग्लुकोज
को कम करता है। यह एक प्रकार की प्रोटिन है। जो 51 अमीनो अम्ल से मिलकर बनी होती है। इसका टीका बेस्ट व बेरिंग
ने तैयार किया ।
इंसुलिन की कमी से मधुमेह(डाइबिटिज मेलिटस) नामक रोग हो जाता
है व अधिकता से हाइपोग्लासिनिया रोग हो जाता है।
6. एड्रिनलिन ग्रन्थि
इसे
अधिवृक्क ग्रन्थि भी कहते है। यह वृक्क के ऊपर स्थित होती है। यह ग्रन्थि संकट,
क्रोध के दौरान सबसे ज्यादा सक्रिय होती है। इस ग्रन्थि के बाहरी
भाग को कार्टेक्स व भीतरी भाग को मेड्यूला कहते है।कार्टेस से कार्टीसोल हार्मोन स्रावित
होता है। जिसे जीवन रक्षक हार्मोन कहते है।
मेड्यूला में एड्रिनलीन हार्मोन स्रावित होता है जिसे करो या
मरो हार्मोन भी कहते है। यह मनुष्य में संकट के समय रक्त दाब हृदयस्पंदन,
ग्लुकोज स्तर, रक्त संचार आदि बढ़ा कर शरीर को संकट के लिए तैयार करता है।
7. पीनियल
ग्रन्थि
यह ग्रन्थि अग्र मस्तिष्क के थैलेमस भाग में स्थित होती है।
इसे तीसरी आंख भी कहते है। यह मिलैटोनिन हार्मोन को स्रावित करती है। जो त्वचा के रंग
को हल्का करता है व जननंगों के विकास में विलम्ब करता है। इसे जैविक घड़ी भी कहते है।
8. जनन ग्रन्थियां
पुरूष -
वृषण - टेस्टोस्टीरान
मादा -
अण्डाश्य - एस्ट्रोजन व प्रोजेस्ट्रान