By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'
सांस फूलना या सांस ठीक से न लेने का अहसास होना एलर्जी,
संक्रमण, सूजन, चोट या मेटाबोलिक स्थितियों की वजह से हो सकता है। सांस तब फूलती
है जब मस्तिष्क से मिलने वाला संकेत फेफड़ों को सांस की रफ्तार बढ़ाने का निर्देश देता
है। फेफड़ों से संबंधित पूरी प्रणाली को प्रभावित करने वाली स्थितियों की वजह से भी
सांसों की समस्या आती है। फेफड़ों और ब्रोंकाइल ट्यूब्स में सूजन होना सांस फूलने के
आम कारण हैं। इसी तरह सिगरेट पीने या अन्य
विजातीय पदार्थों की वजह से श्वसन क्षेत्र
(रेस्पिरेट्री ट्रैक) में लगी चोट के कारण भी सांस लेने में दिक्कत आती है। दिल की
बीमारियों और खून में प्राणवायु का स्तर कम
होने से भी सांस फूलती है।इस वजह से 2 किस्म की बीमारियां
आमतौर पर हो जाती है –
1..दमा
2.
ब्रोंकाइटिस
दमा
जब किसी व्यक्ति की सूक्ष्म श्वास नलियों में कोई रोग उत्पन्न
हो जाता है तो उस व्यक्ति को सांस लेने में परेशानी होने लगती है जिसके कारण उसे खांसी
होने लगती है। इस स्थिति को दमा रोग कहते हैं।
दमा रोग के लक्षण
दमा रोग में रोगी को सांस लेने तथा छोड़ने में काफी जोर लगाना
पड़ता है। जब फेफड़ों की नलियों (जो वायु का बहाव करती हैं) की छोटी-छोटी तन्तुओं (पेशियों)
में अकड़न युक्त संकोचन उत्पन्न होता है तो फेफड़े वायु (श्वास) की पूरी खुराक को अन्दर
पचा नहीं पाते हैं। जिसके कारण रोगी व्यक्ति को पूर्ण श्वास खींचे बिना ही श्वास छोड़
देने को मजबूर होना पड़ता है। इस अवस्था को दमा या श्वास रोग कहा जाता है। दमा रोग से
पीड़ित व्यक्ति को सांस लेते समय हल्की-हल्की सीटी बजने की आवाज भी सुनाई पड़ती है।
जब दमा रोग से पीड़ित रोगी का रोग बहुत अधिक बढ़ जाता है तो उसे
दौरा आने की स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिससे रोगी को सांस लेने में बहुत अधिक दिक्कत
आती है तथा व्यक्ति छटपटाने लगता है। जब दौरा अधिक क्रियाशील होता है तो शरीर में ऑक्सीजन
के अभाव के कारण रोगी का चेहरा नीला पड़ जाता है। यह रोग स्त्री-पुरुष दोनों को हो सकता
है।
· दमा रोग से पीड़ित रोगी को रोग के शुरुआती समय में खांसी,
सरसराहट और सांस उखड़ने के दौरे पड़ने लगते हैं।
· दमा रोग से पीड़ित रोगी को वैसे तो दौरे कभी भी पड़ सकते हैं लेकिन
रात के समय में लगभग 2 बजे के बाद दौरे अधिक पड़ते हैं।
· दमा रोग से पीड़ित रोगी को कफ सख्त,
बदबूदार तथा डोरीदार निकलता है।
· दमा रोग से पीड़ित रोगी को सांस लेने में बहुत अधिक कठिनाई होती
है।
· सांस लेते समय अधिक जोर लगाने पर रोगी का चेहरा लाल हो जाता
है।
· दमा रोग से पीड़ित रोगी को वैसे तो दौरे कभी भी पड़ सकते हैं लेकिन
रात के समय में लगभग 2 बजे के बाद दौरे अधिक पड़ते हैं।
· दमा रोग से पीड़ित रोगी को कफ सख्त,
बदबूदार तथा डोरीदार निकलता है।
· दमा रोग से पीड़ित रोगी को सांस लेने में बहुत अधिक कठिनाई होती
है।
· सांस लेते समय अधिक जोर लगाने पर रोगी का चेहरा लाल हो जाता
है।
· दमा रोग से पीड़ित रोगी को रोग के शुरुआती समय में खांसी,
सरसराहट और सांस उखड़ने के दौरे पड़ने लगते हैं।
दमा रोग होने का कारण:
· धूल के कण, खोपड़ी के खुरण्ड, कुछ पौधों के पुष्परज, अण्डे तथा ऐसे ही बहुत सारे प्रत्यूजनक पदार्थों का भोजन में
अधिक सेवन करने के कारण दमा रोग हो सकता है।
· भूख से अधिक भोजन खाने से दमा रोग हो सकता है।
· मिर्च-मसाले, तले-भुने खाद्य पदार्थों तथा गरिष्ठ भोजन करने से दमा रोग हो
सकता है।
· फेफड़ों में कमजोरी, हृदय में कमजोरी, गुर्दों में कमजोरी, आंतों में कमजोरी तथा स्नायुमण्डल में कमजोरी हो जाने के कारण
दमा रोग हो जाता है।
· मनुष्य की श्वास नलिका में धूल तथा ठंड लग जाने के कारण दमा
रोग हो सकता है।
· मनुष्य के शरीर की पाचन नलियों में जलन उत्पन्न करने वाले पदार्थों
का सेवन करने से भी दमा रोग हो सकता है।
· मल-मूत्र के वेग को बार-बार रोकने से दमा रोग हो सकता है।
· औषधियों का अधिक प्रयोग करने के कारण कफ सूख जाने से दमा रोग
हो जाता है।
· खान-पान के गलत तरीके से दमा रोग हो सकता है।
· मानसिक तनाव, क्रोध तथा अधिक भय के कारण भी दमा रोग हो सकता है।
· खून में किसी प्रकार से दोष उत्पन्न हो जाने के कारण भी दमा
रोग हो सकता है।
· नशीले पदार्थों का अधिक सेवन करने के कारण दमा रोग हो सकता है।
· खांसी, जुकाम तथा नजला रोग अधिक समय तक रहने से दमा रोग हो सकता है।
· नजला रोग होने के समय में संभोग क्रिया करने से दमा रोग हो सकता
है।
· धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों के साथ रहने या धूम्रपान करने
से दमा रोग हो सकता है।
दमा रोग से पीड़ित रोगी का प्राथमिक उपचार:
· दमा रोग से पीड़ित रोगी का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने
के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन नींबू तथा शहद को पानी में मिलाकर पीना
चाहिए और फिर उपवास रखना चाहिए। इसके बाद 1 सप्ताह तक फलों का रस या हरी सब्जियों का रस तथा सूप पीकर उपवास
रखना चाहिए। फिर इसके बाद 2 सप्ताह तक बिना पका हुआ भोजन करना चाहिए। इसके बाद साधारण भोजन करना चाहिए।
· दमा रोग से पीड़ित रोगी को नारियल पानी,
सफेद पेठे का रस, पत्ता गोभी का रस, चुकन्दर का रस, अंगूर का रस, दूब घास का रस पीना बहुत अधिक लाभदायक रहता है।
· दमा रोग से पीड़ित रोगी यदि मेथी को भिगोकर खायें तथा इसके पानी
में थोड़ा सा शहद मिलाकर पिएं तो रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
· दमा रोग से पीड़ित रोगी को भोजन में नमक तथा चीनी का सेवन बंद
कर देना चाहिए।
· दमा रोग से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में रीढ़ की हड्डी को सीधे
रखकर खुली और साफ स्वच्छ वायु में 7 से 8 बार गहरी सांस लेनी चाहिए और छोड़नी चाहिए तथा कुछ दूर सुबह
के समय में टहलना चाहिए।
· दमा रोग से पीड़ित रोगी को चिंता और मानसिक रोगों से बचना चाहिए
क्योंकि ये रोग दमा के दौरे को और तेज कर देते हैं।
· दमा रोग से पीड़ित रोगी को अपने पेट को साफ रखना चाहिए तथा कभी
कब्ज नहीं होने देना चाहिए।
· दमा रोग से पीड़ित रोगी को धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों के
साथ नहीं रहना चाहिए तथा धूम्रपान भी नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से इस रोग का
प्रकोप और अधिक बढ़ सकता है।
· दमा रोग से पीड़ित रोगी को कभी भी दूध या दूध से बनी चीजों का
सेवन नहीं करना चाहिए।
· तुलसी तथा अदरक का रस शहद मिलाकर पीने से दमा रोग में बहुत लाभ
मिलता है।
· दमा रोग से पीड़ित रोगी को 1 चम्मच त्रिफला को नींबू पानी में मिलाकर सेवन करने से दमा रोग
बहुत जल्दी ही ठीक हो जाता हैं।
· 1 कप गर्म पानी में शहद डालकर प्रतिदिन दिन में 3 बार पीने से दमा रोग से पीड़ित रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता
है।
· दमा रोग से पीड़ित रोगी को रात के समय में जल्दी ही भोजन करके
सो जाना चाहिए तथा रात को सोने से पहले गर्म पानी को पीकर सोना चाहिए तथा अजवायन के
पानी की भाप लेनी चाहिए। इससे रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
· दमा रोग से पीड़ित रोगी को अपनी छाती पर तथा अपनी रीढ़ की हड्डी
पर सरसों के तेल में कपूर डालकर मालिश करनी चाहिए तथा इसके बाद भापस्नान करना चाहिए।
ऐसा प्रतिदिन करने से रोगी का रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
· दमा रोग को ठीक करने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार कई
प्रकार के आसन भी हैं जिनको करने से दमा रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है। ये आसन
इस प्रकार हैं- योगमुद्रासन, मकरासन, शलभासन, अश्वस्थासन, ताड़ासन, उत्तान कूर्मासन, नाड़ीशोधन, कपालभांति, बिना कुम्भक के प्राणायाम, उड्डीयान बंध, महामुद्रा, श्वास-प्रश्वास, गोमुखासन, मत्स्यासन, उत्तानमन्डूकासन, धनुरासन तथा भुजांगासन आदि।
2.ब्रोंकाइटिस
तीव्र ब्रोंकाइटिस
इस रोग के कारण रोगी को सर्दियों में अधिक खांसी और गर्मियों
में कम खांसी होती रहती है लेकिन जब यह पुरानी हो जाती है तो खांसी गर्मी हो या सर्दी
दोनों ही मौसमों में एक सी बनी रहती है।
तीव्र ब्रोंकाइटिस के लक्षण
तेज ब्रोंकाइटिस रोग में रोगी की सांस फूल जाती है और उसे खांसी
बराबर बनी रहती है तथा बुखार जैसे लक्षण भी बन जाते हैं। रोगी व्यक्ति को बैचेनी सी
होने लगती है तथा भूख कम लगने लगती है।
तीव्र ब्रोंकाइटिस के कारण
जब फेफड़ों में से होकर जाने वाली सांस नली के अन्दर से वायरस
(संक्रमण) फैलता है तो वहां की सतह फूल जाती है, सांस की नली जिसके कारण पतली हो जाती है। फिर गले में श्लेष्मा
जमा होकर खांसी बढ़ने लगती है और यह रोग हो जाता है।
पुराना ब्रोंकाइटिस
पुराना ब्रोंकाइटिस रोग रोगी को बार-बार उभरता रहता है तथा यह
रोग रोगी के फेफड़ों को धीरे-धीरे गला देता है और तेज ब्रोंकाइटिस में रोगी को तेज दर्द
उठ सकता है। इसमें सांस की नली में संक्रमण के कारण मोटी सी दीवार बन जाती हैं जो हवा
को रोक देती है। इससे फ्लू होने का भी खतरा होता है।
पुराना ब्रोंकाइटिस का लक्षण
इस रोग के लक्षणों में सुबह उठने पर तेज खांसी के साथ बलगम का
आना शुरू हो जाता है। शुरू में तो यह सामान्य ही लगता है। पर जब रोगी की सांस उखडने
लगती है तो यह गंभीर हो जाती है जिसमें एम्फाइसीमम का भी खतरा हो सकता है। ऑक्सीजन
की कमी के कारण रोगी के चेहरे का रंग नीला हो जाता है।
पुराना ब्रोंकाइटिस होने का कारण
ब्रोंकाइटिस रोग होने का सबसे प्रमुख कारण धूम्रपान को माना
जाता है। धूम्रपान के कारण वह खुद तो रोगी होता ही है साथ जो आस-पास में व्यक्ति होते
हैं उनको भी यह रोग होने का खतरा होता है।
तीव्र ब्रोंकाइटिस तथा पुराना ब्रोंकाइटिस रोग का प्राथमिक उपचार:
· जब किसी व्यक्ति को तेज ब्रोंकाइटिस रोग हो जाता है तो उसे 1-2 दिनों तक उपवास रखना चाहिए तथा फिर फलों का रस पीना चाहिए तथा
इसके साथ में दिन में 2 बार एनिमा तथा छाती पर गर्म गीली पट्टी लगानी चाहिए। इस प्रकार से रोगी का उपचार
करने से रोगी का रोग ठीक हो जाता है।
· गहरी कांच की नीली बोतल का सूर्यतप्त जल 25 मिलीलीटर की मात्रा में प्रतिदिन 6 बार सेवन करने तथा गहरी कांच की नीली बोतल के सूर्यतप्त जल
में कपड़े को भिगोकर पट्टी गले पर लपेटने से तेज ब्रोंकाइटिस रोग जल्द ही ठीक हो जाता
है।
· पुराने ब्रोंकाइटिस रोग को ठीक करने के लिए सबसे पहले रोगी को
2-3 दिनों तक फलों के रस पर रहना चाहिए और अपने पेट को साफ करने
के लिए एनिमा क्रिया करनी चाहिए। इसके बाद सादा भोजन करना चाहिए। इस प्रकार से रोगी
व्यक्ति यदि नियमित रूप से प्रतिदिन उपचार करता है तो उसका यह रोग जल्दी ही ठीक हो
जाता है।
· जब इस रोग की अवस्था गंभीर हो जाए तो रोगी की छाती पर भापस्नान
देना चाहिए और इसके बाद रोगी के दोनों कंधों पर कपड़े भी डालने चाहिए।
· इस रोग के साथ में रोगी को सूखी खांसी हो तो उसे दिन में कई
बार गर्म पानी पीना चाहिए और गरम पानी की भाप को नाक तथा मुंह द्वारा खींचना चाहिए।
इस प्रकार से उपचार करने से रोगी का यह रोग ठीक हो जाता है।
· इस रोग से पीड़ित रोगी को अपनी रीढ़ की हड्डी पर मालिश करनी चाहिए
तथा इसके साथ-साथ कमर पर सिंकाई करनी चाहिए इससे रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक आराम मिलता
है और उसका रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
· रोगी को प्रतिदिन अपनी छाती पर गर्म पट्टी लगाने से बहुत आराम
मिलता है।
· इस रोग से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में प्राणायाम क्रिया करनी
चाहिए। इससे श्वसन-तंत्र के ऊपरी भाग को बल मिलता है और ये साफ रहते हैं। इसके फलस्वरूप
यह रोग ठीक हो जाता है।
श्वास संबंधी अन्य विकार
सांस नली के जाम होने पर या फेफड़ों में छोटी-मोटी परेशानी होने
पर सांसें छोटी आने लगती हैं। किसी प्रोफेशनल की मदद से इस स्थिति से जल्दी ही राहत
पाई जा सकती है। लेकिन यदि ऐसा लंबे समय से है तो यह किसी दूसरी बीमारी का लक्षण हो
सकता है,
जैसे –
निमोनिया :
यह बीमारी स्ट्रेप्टोकोकस
निमोनिया नाम के एक कीटाणु की वजह से होती है। दरअसल यह बैक्टीरिया श्वास नली में एक
खास तरह का तरल पदार्थ उत्पन्न करता है, जिससे फेफड़ों तक पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती और रक्त
में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। खून में ऑक्सीजन की कमी के चलते होठ नीले पड़ जाते
हैं,
पैरों में सूजन आ जाती है और छाती अकड़ी हुई सी लगती है।
अस्थमा :
सांस नली में सूजन आने की वजह से वो संकरी हो जाती है,
जिससे सांस लेने में परेशानी होती है। सांस लेते समय घरघराहट
और खांसी रहती है।
क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पलमोनरी डिजीज (सीओपीडी): इस स्थिति में
सांस नली बलगम या सूजन की वजह से संकरी हो जाती है। सिगरेट पीने वालों,
फैक्टरी में रसायनों के बीच काम करने वालों और प्रदूषण में रहने
वाले लोगों को यह खासतौर पर होती है।
पलमोनरी एम्बोलिज्म :
इसमें फेफड़ों तक
जाने वाली धमनियां वसा कोशिकाओं, खून के थक्कों, ट्यूमर सेल या तापमान में बदलाव के कारण जाम हो जाती हैं। रक्त
संचार में आए इस अवरोध के कारण सांस लेने और छोड़ने में परेशानी होती है। छाती में
दर्द भी होता है।
प्राथमिक उपचार :
· बाहर का काम सुबह-सुबह या शाम को सूरज ढलने के बाद करें। इस
वक्त प्रदूषण का स्तर कम होता है।
· किसी फैक्ट्री या व्यस्त सड़क के आसपास व्यायाम न करें।
· चलें, खेलें और दौड़ें। सप्ताह में कम से कम तीन दिन आधे घंटे की दौड़
लगाएं या पैदल चलें।
· वजन कम करने पर ध्यान दें। अमेरिकी डायबिटीज एसोसिएशन की रिपोर्ट
के अनुसार मोटापा फेफड़े को सही ढंग से काम करने से रोकता है।
· देर तक बैठे रहते हैं या अकसर हवाई यात्रा करते हैं तो थोड़ी
देर पर उठ कर टहलते रहें। सूजन का ध्यान रखें।
· यदि अस्थमा है तो इनहेलर साथ रखें।
· कम दूरी वाले कामों के लिए वाहन का इस्तेमाल न करें।
· घर के वेंटिलेशन का रखें खास ध्यान। कार्पेट,
तकिए और गद्दों पर धूप लगाएं। परदों की साफ-सफाई करें। रसोई
और बाथरूम में लगाएं एग्जॉस्ट फैन। एसी का इस्तेमाल कम करें।
· धूम्रपान न करें, सिगरेट पीने वालों से दूरी बनाएं।
· खाने में ब्रोकली, गोभी, पत्ता गोभी, केल (एक प्रकार की गोभी), पालक और चौलाई को शामिल करें।
· अचानक सांस लेने में परेशानी होने पर
· व्यायाम करते हुए अनजाने ही सांस रोक लेना। इससे सांस लेने और
छोड़ने की प्रक्रिया पूरी नहीं होती। जल्द ही थकावट होने लगती है। ब्लड प्रेशर बढ़
जाता है। व्यायाम करते समय कंधों को आरामदायक स्थिति में रखें। नाक से सांस लें और
मुंह से छोड़ें।
· सांस ढंग से न लेना यानी फेफड़ों की क्षमता का पूरा उपयोग न
करना। सांस लेना, पर ढंग से छोड़ना नहीं, जिससे फेफड़ों में कार्बन डाईऑक्साइड एकत्रित हो जाती है। पूरी सांस लें और छोड़ें।
सांस लेने के साथ पेट बाहर की ओर व छोड़ते समय भीतर की ओर जाना चाहिए।
· सिर के नीचे तकिया न रखें, इससे सांस नली पर असर पड़ता है। व्यक्ति को हवादार जगह में ले
जाएं। तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें। इस बीच व्यक्ति की सांस और धड़कन की जांच करते
रहें।
· व्यक्ति के पहने कपड़ों को ढीला कर दें।
· छाती या गले पर कोई खुली चोट है तो उसे तुरंत ढक दें।