By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'
बौद्धिक स्वास्थ्य :
यह किसी के भी जीवन को बढ़ाने के लिए कौशल और ज्ञान को विकसित
करने के लिए संज्ञानात्मक क्षमता है। हमारी बौद्धिक क्षमता हमारी रचनात्मकता को प्रोत्साहित
और हमारे निर्णय लेने की क्षमता में सुधार करने में मदद करता है।
· समायोजन करने वाली बुद्धि, आलोचना को स्वीकार कर सके व आसानी से व्यथित न हो।
· दूसरों की भावात्मक आवश्यकताओं की समझ,
सभी प्रकार के व्यवहारों में शिष्ट रहना व दूसरों की आवश्यकताओं
को ध्यान में रखना, नए विचारों के लिए खुलापन, उच्च भावात्मक बुद्धि।
· आत्म-संयम, भय, क्रोध, मोह,
जलन, अपराधबोध या चिंता के वश में न हो। लोभ के वश में न हो तथा समस्याओं का सामना करने
व उनका बौद्धिक समाधान तलाशने में निपुण हो।
सामाजिक स्वास्थ्य :
चूँकि हम सामाजिक जीव हैं अतः संतोषजनक रिश्ते का निर्माण करना
और उसे बनाए रखना हमें स्वाभाविक रूप से आता है। सामाजिक रूप से सबके द्वारा स्वीकार
किया जाना हमारे भावनात्मक खुशहाली के लिए अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।
· ऐसी मित्रता करें जो संतोषप्रद व दीर्घकालिक हो।
· परिवार व समाज से जुड़े संबंधों को हार्दिक व अक्षुण्ण बनाए
रखें
· अपनी व्यक्तिगत क्षमता के अनुसार समाज के कल्याण के लिए कार्य
करना।
अधिकांश
लोग अच्छे स्वास्थ्य के महत्त्व को नहीं समझते हैं और अगर समझते भी हैं तो वे अभी तक
इसकी उपेक्षा कर रहे हैं। हम जब भी स्वास्थ्य की बात करते हैं तो हमारा ध्यान शारीरिक
स्वास्थ्य तक ही सीमित रहता है। हम बाकी आयामों के बारे में नहीं सोचते हैं। अच्छे
स्वास्थ्य की आवश्यकता हम सबको है। यह किसी एक विशेष धर्म, जाति, संप्रदाय
या लिंग तक सीमित नहीं है। अतः हमें इस आवश्यक वस्तु के बारे में गंभीरता से सोचना
चाहिए। अधिकांश रोगों का मूल हमारे मन में होता है। एक व्यक्ति को स्वस्थ तब कहा जाता
है जब उसका शरीर स्वस्थ और मन साफ और शांत हो। कुछ लोगों के पास भौतिक साधनों की कमी
नहीं होती है फिर भी वे दुःखी या मनोवैज्ञानिक स्तर पर उत्तेजित हो सकते।