By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'
शारीरिक स्वास्थ्य :
शारीरिक स्वास्थ्य शरीर की स्थिति को दर्शाता है जिसमें इसकी
संरचना,
विकास, कार्यप्रणाली और रखरखाव शामिल होता है। यह एक व्यक्ति का सभी
पहलुओं को ध्यान में रखते हुए एक सामान्य स्थिति है। यह एक जीव के कार्यात्मक और चयापचय
क्षमता का एक स्तर भी है। अच्छे शारीरिक स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के कुछ निम्नलिखित
तरीके हैं-
· संतुलित आहार की आदतें, मीठी श्वास व गहरी नींद
· बड़ी आंत की नियमित गतिविधि व संतुलित शारीरिक गतिविधियां
· नाड़ी स्पंदन, रक्तदाब, शरीर का भार व व्यायाम सहनशीलता आदि सब कुछ व्यक्ति के आकार,
आयु व लिंग के लिए सामान्य मानकों के अनुसार होना चाहिए।
· शरीर के सभी अंग सामान्य आकार के हों तथा उचित रूप से कार्य
कर रहे हों।
मानसिक स्वास्थ्य :
मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ हमारे भावनात्मक और आध्यात्मिक लचीलेपन
से है जो हमें अपने जीवन में दर्द, निराशा और उदासी की स्थितियों में जीवित रहने के लिए सक्षम बनाती
है। मानसिक स्वास्थ्य हमारी भावनाओं को व्यक्त करने और जीवन की ढ़ेर सारी माँगों के
प्रति अनुकूलन की क्षमता है। इसे अच्छा बनाए रखने के कुछ निम्नलिखित तरीके हैं-
· प्रसन्नता, शांति व व्यवहार में प्रफुल्लता
· आत्म-संतुष्टि (आत्म-भर्त्सना या आत्म-दया की स्थिति न हो।)
· भीतर ही भीतर कोई भावात्मक संघर्ष न हो (सदैव स्वयं से युद्धरत
होने का भाव न हो।)
· मन की संतुलित अवस्था।
आध्यात्मिक स्वास्थ्य :
हमारा अच्छा स्वास्थ्य आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ हुए बिना अधूरा
है। जीवन के अर्थ और उद्देश्य की तलाश करना हमें आध्यात्मिक बनाता है। आध्यात्मिक स्वास्थ्य
हमारे निजी मान्यताओं और मूल्यों को दर्शाता है। अच्छे आध्यात्मिक स्वास्थ्य को प्राप्त
करने का कोई निर्धारित तरीका नहीं है। यह हमारे अस्तित्व की समझ के बारे में अपने अंदर
गहराई से देखने का एक तरीका है।
· समुचित ज्ञान की प्राप्ति तथा स्वयं को एक आत्मा के रूप में
जानने का निरंतर बोध। सुप्रीम डॉक्टर (आत्मा)के निरंतर संपर्क में रहना। स्वयं को जानने
व अनुभव करने वाली आत्मा सदैव शांत व पवित्र होगी।
· अपने शरीर सहित इस भौतिक जगत की किसी भी वस्तु से मोह न रखना।
दूसरी आत्माओं के प्रभाव में आए बिना उनसे भाईचारे का नाता रखना। इस प्रकार एक व्यक्ति
के कर्म उन्नत होंगे तथा उच्चस्तरीय व विशिष्ट हो पाएंगे।
· आत्मा से निरंतर बौद्धिक संप्रेषण ताकि सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त
कर विशुद्ध कर्म की ओर प्रेषित की जा सके। आत्मा स्वयं को तथा दूसरों को विनीत,
अनश्वर तथा दुर्गुणरहित पाएगी। उसे कोई भी सांसारिक बाधा त्रस्त
नहीं कर सकती।