By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'
कुष्ठ रोग :
कुष्ठ एक महा भयानक चर्म रोग है। इसमें रक्त अत्यन्त
विषाक्त होकर धीरे-धीरे शरीर को बेकार और नष्ट कर देता है। इस रोग की कई किस्में
हैं जिनमें गलित कुष्ठ और श्वेत कुष्ठ अधिक व्यापक पाये जाते हैं।
लक्षण: गलित कुष्ठ में पहले हाथ पांव की उंगलियां अकड़
कर टेड़ी मेड़ी हो जाती हैं। फिर उनमें फोड़े जैसे घाव हो जाते हैं। कुष्ट के ये फोड़े
शरीर के किसी एक भाग में या पूरे शरीर में यत्र तत्र निकल सकते हैं।
श्वेत कुष्ठ में शरीर भर में या उसके किसी भाग पर चमकीले
सफेद दाग पड़ते हैं जहां के रोयें और बाल भी सफेद हो जाते हैं। कारण दोनों प्रकार
के कुष्ठों का एक ही है- अर्थात रक्त का अत्यन्त दूषित होना।
एक्जिमा :
एक्जिमा को आयुर्वेद में कुष्ठ के ही अन्तर्गत माना गया है।
यह उकवत शरीर के किसी भाग पर हो सकता है। यह दो प्रकार का होता है। एक को बहता हुआ
एक्जिमा कहते हैं और दूसरे को सूखा एक्जिमा।
लक्षण:
यह रोग अधिकतर सिर में कानों के पास, गर्दन पर तथा अंगुलियों पर होता है। त्वचा पर यह मूंग या
उड़द की दाल जितने आकार से लेकर कई इंच जगह घेर लेता है। जहां यह रोग होता है वहां
ललाई छाई रहती है, त्वचा कड़ी और रूखी हो जाती है, तथा उसमें थोड़ी सूजन भी आ जाती है। रोग की उग्रता में रोग
के स्थान पर जलन होती है और खाज उठती है। कभी-कभी वहां से द्रव रिसने लगता है।
बहता हुआ एक्जिमा ही बहुधा पुराना पड़कर सूखे एक्जिमा का रूप धारण कर लेता है,
जिसकी चमड़ी खुजला-खुजला कर छिलती रहती है और परत उधड़-उधड़ कर
गिरती रहती है।
भगन्दर :
कड़े
कब्ज के कारण गुदाद्वार के पास सूजन होकर फोड़े के रूप में भगन्दर की उत्पत्ति होती
है। जो बाद में फूट जाता है और उससे बहुत से मवाद और दूषित रक्त निकल पड़ता है। घाव
कभी-कभी बहुत गहरा और चैड़ा हो जाता है जिसमें पीड़ा असह्म होती है।
गूंगी :
किसी उंगली में प्रथम-प्रथम पीड़ा उत्पन्न होती है। फिर वह
पीड़ा धीरे-धीरे इतनी बढ़ जाती है कि रात को सोना हराम हो जाता है। तत्पश्चात पीड़ा
की जगह एक लाल फुंसी निकलती है जो बाद को बढ़कर फफोला बन जाती है। यही गूंगी कहलाती
है।
कखौरी :
यह गूंगी की तरह ही केवल कांख (बगल) में निकलने वाला एक
प्रकार का फोड़ा है।
बाघी :
बाघी जांघ और जननेन्द्रिय के बीच ऊपर की तरफ पट्ठों में
निकलती है। पहले सूजन हो जाती है तत्पश्चात वहां एक सख्त-गांठ सी उत्पन्न हो जाती
है जो पीड़ा सहित और पीड़ा रहित दोनों प्रकार की होती हैं। इसी प्रकार बाघी कभी
पकती-फूटती है और कभी नहीं भी पकती-फूटती। बाघी में कभी कभी तेज दर्द होता है जो
सारी जांघ फैला हुआ मालूम पड़ता है।
नासूर :
जो फोड़ा सदैव बहता रहता है और अच्छा होने का नाम नहीं लेता,
उसे नासूर कहते हैं। नासूर सूचित करता है कि रोगी के शरीर
में विजातीय द्रव्य का भार अत्यधिक है जिसके निकल जाने और शरीर के निर्मल हो जाने
के बाद ही उसके मिटने की आशा की जा सकती है।
खुजली :
खुजली
की बीमारी त्वचा के किसी भी हिस्से में हो सकती है मगर विशेषकर यह हाथों और पावों
के गहुओं (अंगुलियों की संधियों) में अधिक होती है। इसे खेसीरा भी कहते हैं। यह
संक्रामक रोग है। इसमें छोटी-छोटी फुन्सियां निकलती हैं जिनमें अत्यन्त खुजलाहट और
जलन होती है। बाद को यह पककर फूटती भी हैं और त्वचा पर काफी जगह घेर लेती हैं।
खुजली सूखी और तर दो प्रकार की होती है।
दाद :
दाद के शुरू होते ही तीन-तीन घंटे पर यदि थोड़ी देर गरम और
ठण्डी सेंक देकर उस स्थान पर उष्णकर गीली मिट्टी का प्रयोग किया जाये तो उसकी जड़
कट जाती है। सूखे दाद में उस अंग को आधा घंटा तक गरम पानी में डुबो रखने से लाभ
मिलता है। उसके बाद उसपर उष्णकर गीली मिट्टी की पट्टी रखनी चाहिए।
घमौरी :
अम्हौरी,
घमौरी एक मामूली प्रकार का चर्म रोग है जो कुछ लोगों की
त्वचा पर गर्मी और बरसात के मौसमों में उभरता है। इसमें छोटी-छोटी और लाल-लाल
फुन्सियां निकलती हैं जो कभी-कभी पानी भी लिये हुये होती हैं और खुजलाती भी हैं।
बेवाई :
पैर की मोटी त्वचा में बेवाई फटती हैं जो कभी-कभी बहुत
तकलीफ देती हैं। पैर के उस भाग में समुचित रूप से रक्तसंचालन न होना,
रक्त का विषाक्त होना, तथा पैर की त्वचा में कोई खराबी होना,
इस रोग के होने के तीन कारण हैं।
छाला :
छाला, छत कई प्रकार का होता है। किसी में केवल पंछा रिसता है,
किसी में रक्त चिपचिपाता रहता है,
किसी में पीड़ा अधिक होती है किसी में कम। कोई पीव और गंध
युक्त होता है तो कोई पीव और गंध विहीन। छाला जब जल्दी अच्छा नहीं होता तो पुराना
पड़कर कैंसर का रूप धारण कर सकता है। जिसके शरीर में विजातीय द्रव्य अधिक होता है
उनके चर्म पर छाला पड़ने से वह जल्दी अच्छा नहीं होता।
मांस वृद्धि :
मास
वृद्धि, अर्वुद, शरीरके भीतरी और बाहरी दोनों हिस्सों में हो सकता है। यह एक प्रकार का
विजातीय दव्य ही है जो गांठ उल्टी, गिल्टी
या सूजन के रूप में मनुष्य के शरीर में वृद्धि पाता रहता है और तकलीफ देता रहता
है। यह रोग पुराना पड़ने पर जरा मुश्किल से जाता है।