VRINDAVAN INSTITUTE OF NATUROPATHY AND YOGIC SCIENCES is an authorized Work Integrated Vocational Education Center (WIVE) of Asian International University in India.

दिनचर्या तथा ऋतुचर्या की व्याख्या कीजिए |


By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'


 दिनचर्या तथा ऋतुचर्या की व्याख्या कीजिए |
दिनचर्या
अच्छे स्वास्थ्य की पहली शर्त है व्यवस्थित दिनचर्या। यह बहुत जरूरी है, क्योंकि दिनचर्या अव्यवस्थित होने पर शरीर रोगग्रस्त होने लगता है। भरपूर नींद लेने के बाद सुबह सोकर उठने से लेकर शाम तक एक स्वस्थ व्यक्ति अपना स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए जो कार्य करता है, उन्हीं के समुच्चय को दिनचर्या कहा जाता है। एक स्वस्थ दिनचर्या निम्न प्रकार से होनी चाहिए -
प्रातः जागरण : स्वस्थ व्यक्ति को सुबह ब्रह्ममुहूर्त में उठ जाना चाहिए |
ऊषापान : रात को तांबे के लोटे में भर कर रखा गया पानी सुबह मुख शुद्धि कर पी लें। यदि मौसम ठंडा है, तो पानी को थोड़ा गर्म करके पीएं।
शौच : शौच के लिए जोर नहीं लगाना चाहिए, अन्यथा बवासीर रोग हो सकता है। मल त्याग के समय दांतों को जोर से परस्पर दबाकर रखें। ऐसा करने से दांत मजबूत बने रहते हैं।
दन्त शुद्धि : उसके पश्चात दातौन (दातून), दंतमंजन या किसी भी अच्छे टूथपेस्ट से दांत साफ करें। अंगुलियों से या जीभ साफ करने वाली जीभी से जिह्वा को साफ करें व दायें हाथ के अंगूठे से ऊपर के तालू को साफ कर मुंह में पानी भरकर गरारे कर लें और आंखों को पानी से साफ कर मुंह धो लें।
व्यायाम एवं स्नान : नित्यकर्म के उपरांत योगासन, प्राणायाम के बाद ऋतु के अनुसार उचित तापमान वाले स्वच्छ जल से प्रतिदिन स्नान करना स्वास्थ्य के लिए अति उत्तम होता है। स्नान से शरीर की जलन, थकावट, पसीना, खुजली तथा शुष्कता दूर होती है। आलस्य व थकान दूर होती हैं, शरीर में रक्त का संचार सुचारु रूप से होने लगता है, खून साफ होता है और भूख बढ़ती है।
प्रातः उपासना : स्नान के पश्चात मन को स्वस्थ, प्रसन्न, सुखी व शांत रखने के लिए कुछ देर एकाग्रचित होकर ध्यान में बैठ जाएं। मंत्र जप, भजन, सत्संग, पूजा-पाठ, मंदिर जाना- ये सभी इसी के अंतर्गत आते हैं।
अल्पाहार : प्रातः उपासना के पश्चात भगवान को अर्पण करते हुए दूध, दलिया, फल, अंकुरित अनाज या अन्य कोई भी स्वास्थ्यवर्धक नाश्ता लें। नाश्ते में परांठे, पकौड़े, ब्रेड या मैदा से बने खाद्य पदार्थ व गरिष्ठ भोजन नहीं लें, क्योंकि इनसे पाचनतंत्र विकृत होने लगता है।
व्यवसाय : नाश्ते के बाद प्रभु कृपा से जो भी कार्य मिला है, उसे सेवा मानें और उत्साह के साथ दिन भर कार्य करें।
आहार : दोपहर में एक बजे के आसपास स्वास्थ्यवर्धक भोजन कर पुनः दिनचर्या को आगे बढ़ाना चाहिए। स्वस्थ व्यक्ति के लिए दिन में सोना लाभप्रद नहीं होता। यदि आवश्यक हो, तो दिन में थोड़ी देर आराम किया जा सकता है। रात में 8 बजे तक भोजन करके 10-15 मिनट के लिए वज्रासन में बैठें। भोजन के दो घंटे पश्चात रात 10 बजे तक सो जाना चाहिए।

ऋतुचर्या
ग्रीष्म ऋतुचर्या
सूर्य की प्रखर किरणों से शरीर का जलीय व स्निग्ध अंश अवशोषित होने से मनुष्य-देह ग्रीष्म ऋतु में दुर्बल हो जाती है | जठराग्नि भी क्षीण हो जाती है | ग्रीष्म ऋतु के इस प्रभाव को ध्यान में रखते हुए हमें हितकारी आहार-विहार का पालन करना चाहिए |
ग्रीष्म ऋतु में खाने योग्य आहार :
मधुर, सुपाच्य, जलीय, ताजे, स्निग्ध व शीत गुणयुक्त पदार्थ जैसे - दूध, घी, लौकी, पेठा,परवल, चौलाई, शकरकंद, गाजर, बीट ( चुकंदर ), पालक, हरा धनिया, पुदीना, हरी पतली ककड़ी, मौसमी, मीठे संतरे, शहतूत, खरबूजा, मीठा आम,  अनार,  फालसा, खीरा, आँवला, करौंदा, कोकम, नारियल आदि |
खाने योग्य मेवे : मुनक्का एवं किशमिश ( रात को भिगोये हुए )
पेय : ग्रीष्म ऋतु में शरीर में जलीय अंश की कमी हो जाती है | अत : गुणकारी पेय अवश्य पीना चाहिए | जैसे - नींबू-मिश्री का शरबत, आँवला शरबत, आम का पना, ठंडाई, ठंडा दूध, नारियल पानी, स्वच्छता से निकला गन्ने का रस |
न खाने योग्य आहार :  बासी, उष्ण, तला, मसालेदार, फ्रिज का अत्यधिक ठंडा, गरिष्ठ, वातवर्धक भोजन |
विहार : ग्रीष्म ऋतु में रात को जल्दी सोयें, सुबह जल्दी उठें, ऊषापान करें | मुँह में पानी भर पलकों पर छींटें मारें एवं नंगे पैर घास पर चलें | हलके रंग के सूती कपड़े व सिर पर टोपी पहनें | धूप में निकलने से पूर्व पानी पीकर जायें | आने के तुरंत बाद पानी न पीयें | पसीना सुखाकर ही पानी पियें |
अपथ्य विहार : अति आहार, अति व्यायाम, परिश्रम, मैथुन, वात-पित्तवर्धक पदार्थ वर्जित हैं |

वर्षा ऋतुचर्या
ग्रीष्म ऋतु में दुर्बल हुआ शरीर वर्षा ऋतु में धीरे-धीरे बल प्राप्त करने लगता है |
हितकर आहार : वर्षा ऋतु में वात-पित्तजनित व अजिर्णजन्य रोगों का प्रादुर्भाव होता है अत: जठराग्नि प्रदीप्त करनेवाला वात-पित्तशामक आहार लेना चाहिए | इसके लिए अदरक, लहसुन, नींबू, पुदीना, हरा धनिया, सोंठ, अजवायन, मेथी, जीरा, हींग, काली मिर्च का प्रयोग करें | जों, खीरा, लौकी, पेठा, तोरई, आम, जामुन, पपीता सेवनीय हैं | ताजी छाछ में काली मिर्च, सेंधा, जीरा, धनिया, पुदीना डालकर ले सकते हैं | उपवास और लघु भोजन हितकारी है | रात को देर से भोजन न करे |
अहितकर आहार : देर से पचनेवाले, भारी, तले, तीखे पदार्थ न लें | जलेबी , बिस्कुट, डबलरोटी आदि मैदे की चीजे , बेकरी की चीजे, उड़द, अंकुरित अनाज, ठंडे पेय पदार्थ व आइसक्रीम के सेवन से बचे | वर्षा ऋतु में दही पूर्णतः निषिध्द हैं |
हितकर विहार : वातावरण में नमी और आर्द्रता के कारण उत्पन्न कीटाणुओं से सुरक्षा हेतु धूप, हवन से वातावरण को शुद्ध व गो - फिनायल या गोमूत्र से घर को साफ करें | तुलसी के पोंधे लगायें | उबटन से स्नान, तेल की मालिश , हलका व्यायाम, स्वच्छ व हलके वस्त्र पहनना हितकारी हैं | घर के आसपास पानी इकठ्ठा न होने दे | मच्छरों से सुरक्षा के लिए घर में गेंदे के पौधों के गमले अथवा गेंदे के फुल रखे और नीम के पत्ते , गोबर के कंड़े व गूगल आदि का धुआँ करे |
अपथ्य विहार : बारिश में न भींगे | भीगे कपड़े पहनकर न रखें | रात्रि-जागरण, दिन में शयन, खुले में शयन, अति परिश्रम एवं अति व्यायाम वर्जित है |
शरद ऋतुचर्या
वर्षा ऋतु के बाद शरद ऋतु आती है | वर्षा ऋतु में प्राकृतिक रूप से संचित पित्तदोष शरद ऋतु में प्रकुपित होता है | जठराग्नि मंद हो जाती है | परिणामस्वरूप बुखार, पेचिश, उलटी, दस्त, मलेरिया आदि रोग होते हैं | इन दिनों में ऐसा आहार और ओषधि लेनी चाहिए जो पित्त का शमन करे | शरद ऋतु में खीर खाना स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है |
हितकर आहार : पित्तदोष शमन के लिए सब्जियों में परवल, लौकी, तोरई, करेला, गाजर, फलों में अनार, पके केले, नींबू, अमरुद, संतरा, मोसम्बी, नारियल, मसालों में जीरा, धनिया, इलायची, हल्दी, सौंफ, दालों में मूँग, चना प्रयोग में लिये जा सकते हैं | काली द्राक्ष, सौंफ, धनिया व मिश्री का पेय, गन्ने का रस, नारियल पानी पित्तशमन करते हैं | बायें नथुने से श्वास लेकर दायें से छोड़ना भी पित्तशमन में वरदान स्वरूप है |
विहार : इस ऋतु में रात्रि-जागरण लाभदायी है परंतु १२ बजे से ज्यादा न करें | अधिक जागरण व सुबह देर तक सोने से त्रिदोष कुपित हो जाते हैं | श्राद्ध व नवरात्री में ब्रह्मचर्य का सख्त पालन करें |