VRINDAVAN INSTITUTE OF NATUROPATHY AND YOGIC SCIENCES is an authorized Work Integrated Vocational Education Center (WIVE) of Asian International University in India.

मूत्र परीक्षण (Urine Examinaton)


1. मात्रा
साधारण स्वस्थ व्यक्ति प्रतिदिन 1500 सी०सी० मूत्र परित्याग करता है। शीत तथा वर्षाऋतु में यह मात्रा बढ़ जाती है तथा ग्रीष्म ऋतु में पसीने के अधिक निकलने के कारण मूत्र की मात्रा कम हो जाती है। मधुमेह तथा चिरकालीन वृक्क शोध (Chroinc Nephritis) आदि में मूत्र की मात्रा बढ़ जाती है। इसी प्रकार रक्त चाप की कमी, हैजा, दस्त आदि में मूत्र की मात्रा ही कम हो जाती है। इस रोग में मूत्र की मात्रा का बढ़ना हृदय में विकृति की कमी का सूचक है।
साधारणतया स्वस्थ अवस्था में व्यक्ति प्रायः दिन में 5 बार तथा रात्रि में 1बार मूत्र का परित्याग करता है। रात्रि में बार-बार मूत्र का परित्याग करना डायबिटीज का सूचक है।

2. रंग
प्राकृत अवस्था में मूत्र हलके पीले रंग का होता है। पीलिया में यह मूत्र अधिक पीला हो जाता है। फाइलेरिया में मूत्र में काइल (Chyluria) आने पर मूत्र दूध के समान सफेद हो सकता है। रक्त आने पर मूत्र लाल तथा हीमोग्लोबिन आने पर काला हो जाता है।

3.पारदर्शिता
प्राकृत अवस्था में मूत्र जल के समान निर्मल होता है। मूत्र मे फास्फेट (Phosphate) बैक्टीरिया आदि रहने पर मूत्र गंबला हो जाता है।

4. गंध
प्राकृत मूत्र की गंध एक विशिष्ट गंध होती है। एसीटोयोंन (Aceton) आने पर मूत्र की गंध सड़े फल के समान मीठी होती है।

मूत्र के सामान्य तत्त्व
मूत्र में 9.60 भाग जल और .40 भाग ठोस पदार्थ होता है। 24 घण्टे में लगभग 2 या 2-1/4 औंस ठोस पदार्थ मूत्र द्वारा हमारे शरीर से बाहर निकलते हैं। ठोस पदार्थों में यूरिया, यूरिक एसिड, सोडियम और क्लोराइट ही अधिक मात्रा में होते है।

मूत्र के असामान्य तत्त्व
विकृत अवस्था में मूत्र में कभी-कभी रक्त, पीठ पित्त,  (Bile) शर्करा, एसीटोन एलबूमिन आदि तत्त्व आ जाते हैं।

सामान्य मूत्र में जल तथा अन्य तत्त्वों की मात्रा
तत्त्व परिमाप
·        यूरिया 2.3 ग्राम प्रति लिटर
·        क्रेटिनाइन 1.5 ग्राम प्रति लिटर
·        यूरिक ऐसिड 0.7 ग्राम प्रति लिटर
·        सोडियम क्लोराइड 9.00 ग्राम प्रति लिटर
·        पोटेशियम क्लोराइड 2.5 ग्राम प्रति लिटर
·        सल्फयूरिक एसिड 1.8 ग्राम प्रति लिटर
·        अमोनिया 0.6 ग्राम प्रति लिटर
मूत्र न्यूनाधिक के कारण-मूत्र का परिमाण कारणों से न्यूनाधिक हो जाता है-


(1) मूत्र के परिमाण में वृद्धि :  हृदय के बायें भाग का विस्तार, उच्च रक्तभार, वृक्क शोथ का प्रारम्भ, फेफड़ों के आवरण में जल भर जाना, जलोदर, मधुमेह, अधिक जलपान, शीतकाल, आदि कारणों से मूत्र की मात्रा बढ़ जाती है।

(2) मूत्र के परिमाण में कमी : ज्वर, अतिसार, विचिका, वृक्क शोथ, मूत्रवरोध व्यायाम, अधिक रक्त स्राव, वमन, मद्यपान, रक्तभार, न्यूनता और लिवर की विकृति में मूत्र की मात्रा कम हो जाती है।

(3) मूत्र का अपेक्षित गुरुत्व तथा भार कम या अधिक हो जाना : मधुमेह, युरिया की वृद्धि, मांसाहार, आदि में मूत्र का परिमाण कम हो जाना और निमोनिया, टाइफाइड में मूत्र का अपेक्षित गुरुत्व  (specific gravity) बढ़ जाता है। हिस्टीरिया, मूत्र नलिका का रोग, शीतल पेय पक्षाघात, रक्त में गुरुत्व कम हो जाता है।

(4) यूरिया की वृद्धि या कमी :  सामान्यतः यूरिया 2.3 ग्राम प्रति लीटर होती है। मांसाहार, पक्का भोजन मधुमेह गाउट (बालरक्त), निमोनिया, क्षय खट्टे पदार्थों के अधिक सेवन आदि कारणों से यूरिया बढ़ जाती है।

यूरिक एसिड में वृद्धि तथा कमी : सामान्यतः मूत्र में 0.7 ग्राम प्रति ली० यूरिक एसिड होता है। लेकिन तीव्र, ज्वर यकृत के रोग, पौष्टिक अन्न सेवन, मांसाहार, दमा के रोग, प्लीहा का रोग, वात रक्त आदि में यूरिक एसिड बढ़ जाता है। कुनैन औषधि से इसकी मात्रा कम हो जाती है।

क्लोराइड : निमोनिया, शीतज्वर, विषम ज्वर के शमन होने पर रोगी के मूत्र में क्लोराइड या नमक की मात्रा आमतौर पर बढ़ जाती है। निमोनिया में नमक की मात्रा कम हो जाती है।

फास्फेट : कुछ जीर्ण रोग जिसमें मूत्र में स्नायुओं के टुकड़े आते हों तथा मधुमेह में फास्फेट की मात्रा बढ़ जाती है। फेफड़े के चारों ओर वाली झिल्ली में शोथ में कम हो जाता है।

मूत्र का आकार प्रकार तथा रोग
1. धूमिल रंग का मूत्र होना रक्त की उपस्थिति का सूचक है।
2. लाल रंग का मूत्र होना अम्लता (Acidity) की अधिकता बताता है।
3. गहरे पीले रंग का मूत्र होना पित्त की मौजूदगी का सूचक है।
4. गंदा मूत्र होना श्लेषमा या पीव का सूचक है।
5. फीका या सफेद मूत्र होना जल की अधिकता, यूरिया या चीनी की अधिकता का सूचक है।
6. रोगी के मूत्र करने के बाद भी कुछ देर तक झाग रहना श्वेत सार (Albumin) या पित्त के उत्पादन का सूचक है।
7. मूत्र में अधिक अम्ल होना पथरी की उपस्थिति का सूचक है।
8. मूत्र प्रवाह में जलन, मूत्र का रुक-रुक कर आना, मूत्र मार्ग में तीव्र दर्द, मूत्राशय में पथरी होने की ओर इंगित करता है।
9. मूत्र में शर्करा का आना मधुमेह का सूचक है।
10. मधुमेह, पुराना वृक्क शोथ (Bright"s desease) हिस्टीरिया, रक्त स्राव, आदि में मूत्रल औषधियाँ लेने से पीला मूत्र आता है।
11. मूत्र में यूरेट्स, फासफेट आदि आने की अवस्था में रोगी के मूत्र का रंग बादल जैसा हो जाता है।

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