जब हृदय रक्त को धमनियों में धकेलता है, तो धमनियों के दीवालों पर एक प्रकार का दबाव पड़ता है इसी को रक्तचाप या रक्ताभार
(blood Pressure) कहते हैं। यह दबाव जब तक प्राकृतिक अवस्था में
रहता है तब तक रक्तचाप सम्बन्धी कोई रोग नहीं होता है। जब रक्तचाप बढ़ जाता है तो उसे
उच्च रक्तचाप (High Blood Pressure) हाइपरटेंशन (Hypertention)
कहते हैं। रक्तचाप कम हो जाने पर न्यूनरक्तचाप (Low Blood
Pressure) कहते हैं।
दो विधियों द्वारा रक्तचाप देखा जाता
है
1. स्पर्शन विधि (Pulpatory method)
2. श्रवण विधि (Ausculatory method)
स्पर्शन विधि में हाथ से नाड़ी का अध्ययन करते हैं।
श्रवण विधि में नाड़ी को स्पर्श करने की अपेक्षा वी0पी0 मापन यंत्र का उपयोग
करते हैं, जिसे स्फिग्मोमेनोमीटर
(Sphygmomenouneter) कहते हैं।
रक्तचाप दो प्रकार का होता है।
1. प्रकुंचन रक्त चाप भार (Systolic Blood
Pressure)
2. अनुशिथिलन रक्तभार (Diastolic Blood
Pressure )
रक्तचाप जानने की सरल विधि
यदि 100 की संख्या में आयु की आधी संख्या जोड़ दी जाय, तो प्रकुंचन रक्त चाप मालूम हो जाता है। उदाहरण
के लिए यदि आयु 50 वर्ष की है, तो प्रकुंचन रक्तचाप 100-50/2=125mn Hg लगभग होगा।
सामान्य रक्तचाप
15 से 19 वर्ष 100 /70
20 से 24 वर्ष 111 / 72
25 से 29 वर्ष 112 / 72
30 से 34 वर्ष 114 / 72
35 से 39 वर्ष 119 / 73
40 से 44 वर्ष 120 / 73
45 से 49 वर्ष 123 / 75
50 से 24 वर्ष 126 / 77
55 से 59 वर्ष 127 / 80
60 से 64 वर्ष 128 / 82
65 से 69 वर्ष 129 / 83
70 वर्ष के ऊपर 130 / 83
रक्तभार बढ़ने तथा घटने के कारण
हृदय की धड़कन की संख्या में वृद्धि होने, धड़कन की शक्ति के बढ़ जाने, रक्त का परिमाप में बढ़ जाने
के कारण और धमनियों के अधिक संकुचन हो जाने से रक्त चाप बढ़ जाता है। इसकी विपरीत अवस्था
में रक्तचाप घट जाता है।
प्राकृतिक दशाओं में रक्तचाप
1. प्रातः काल की अपेक्षा सायंकाल को प्रकुंचन (Systolic Blood Pressure)रक्तचाप बढ़ जाता है।
2. खड़े होने पर बैठने की अपेक्षा दो मिलीमीटर प्रकुंचन बढ़ जाता है। तथा अनुशिथिलन
कम हो जाता है।
3. क्रोध, चिंता तथा घबराहट में
प्रकुंचन रक्तचाप बढ़ जाता है।
4. खाना खाते और अधिक पानी पीने से भी प्रकुंचन भार अधिक हो जाता है।
5. व्यायाम से प्रकुंचन भार बढ़ता है।
6. नींद, सोने में प्रकुंचन रक्तचाप कम हो जाता है।
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