- तीव्र ज्वर, लम्बे उपवास तथा जल की कमी होने पर जीभ पर मैल की तह जम जाती है।
- रक्त की कमी होने पर जीभ का रंग फीका हो जाता है जीभ की सतह मुलायम तथा समतल हो जाती है।
- स्नायुरोगी में जीभ संज्ञाहीन हो जाती है।
- पीलिया में रोगी की जीभ कुछ पीली हो जाती है।
- हृदय के रोगों में रोगी की जीभ जरा सी बढ़ जाती है। तथा दाँत के निशान पड़े दिखायी देते हैं।
- हृदय के रोगों में जीभ का रंग कुछ नीला हो जाता है।
- शोथों के रोग में जीभ अस्वाभाविक रूप से लाल हो जाती है।
- पाचनशक्ति के विकारों में जीभ लाल हो जाती है तथा उस पर छोटे-छोटे दाने पड़ जाते हैं।
- अर्जीर्ण रोगों में जीभ मोटी हो जाती है। जीभ तथा उस पर सफेदी दिखायी देती है।
- आमाशय के रोगों में जीभ फटी हुई होती है।
- उदर रोगों में मुँह से दुर्गन्ध आने लगती है।
- शरीर में जल की कमी होने पर जीभ सूखी और रूखी हो जाती है।
- विटामिन ’’बी” की कमी से जीभ चिकनी हो जाती है।
- क्षय रोगों में जीभ लाल रंग की तथा खुश्क हो जाती है।
- पित्त ज्वर में जीभ की नोक और किनारे लाल पड़ जाते हैं।
- श्वास, हृदय तथा फेफड़े के रोगों में जीभ बैगनी दिखायी देती है। और उसमें बहुत जलन होने लगती है।
VRINDAVAN INSTITUTE OF NATUROPATHY AND YOGIC SCIENCES is an authorized Work Integrated Vocational Education Center (WIVE) of Asian International University in India.