VRINDAVAN INSTITUTE OF NATUROPATHY AND YOGIC SCIENCES is an authorized Work Integrated Vocational Education Center (WIVE) of Asian International University in India.

वक्ष परीक्षा (Chest Examinaton)


वक्ष परीक्षा निम्न प्रकार से की जाती हैः-

1.    देखकर ( Inspection)
2.    स्पर्शन ( Palpation)
3.    परिमापन (Mensuration)
4.    आघातन (हाथ से ठोक कर) (Percussion)
5.    सुनकर (Ascultatuon)

देखकर परीक्षा
इससे वक्ष की गठन में विकार, सांस लेने तथा छोड़ने के समय वक्ष का तानना और उतरने की स्थिति, श्वास-प्रश्वास की प्रकृति आदि का अवलोकन करते हैं।

 स्पर्शन
आँख से देख लेने के बाद वक्ष की परीक्षा करते हैं। इसमें छाती या पीठ पर हथेली रखकर परीक्षा की जाती है। स्पर्शन द्वारा वक्ष की गति, स्पन्दन तथा कम्पन का पता चलता है। हथेली रखने पर रोगी को कैसा महसूस होता है इसका भी ज्ञान होता है।

परिमापन
इसमें वक्ष की माप लेकर यह देखा जाता है कि सांस लेने और छोड़ने के समय दोनों ओर का वक्ष समान रूप से सिकुड़ा तथा फैलता है, या नहीं? वक्ष के रोगों का घटना व बढ़ना भी इससे ज्ञात होता है।

आघातन
इसमें अँगुली से छाती या पीठ को ठोक कर परीक्षा की जाती है। वक्ष, पीठ का या पसली परीक्षा करते समय दाहिनें हाथ की तर्जनी और मध्यमा, को या केवल मध्यमा, अंगुली को टेढ़ा कर नीचे झुकाकर, उसके अगले भाग से चोट देते हैं। जब किसी स्थान पर चोट दी जाती है, तो भीतर से दो तरह की आवाज निकलती है। एक तो धीमी थप सी आवाज आती है दूसरी तरह की आवाज किसी हवा भरी खोखली जगह पर चोट देने से होती है, जैसे ढोल पर थपकी देने से होती है।

सुनकर
स्टेथोस्कोप के माध्यम से हृदय स्पन्दन की आवज सुनी जाती है। इससे हृदय तथा फेफड़ों की आवाज की प्रकृति का ज्ञान होता है।

रुग्णावस्था में वक्ष के शब्द
1.    जब श्वांस की आवाज बहुत तेज हो जाती है तब उसकी वोकियल रेस्पिरेशन रोइनंची ( Bonchial Respiration Roenchi) कहते हैं।
2.    कभी-कभी सांस की आवाज पोली चीज के अन्दर फूंकने जैसी होती है उसे केवरनस ब्रीदिंग (cavernous Beating) कहते हैं।
3.    कभी-कभी आलपीन ठोकने जैसी आवाज होती है, जिसे मैटिलिक टिन्कलिंग कहते हैं।
4.    कभी-कभी तेल गरम करने जैसे शब्द सुनाये देते हैं जिसे क्रेकलिंग (Crackling)कहते हैं।
5.    कभी-कभी वक्ष के अन्दर धातु के बर्तनों को मलने जैसी आवाज होती है जिसे एम्फोटिक रिजोनेन्स कहते हैं।
6.    कभी-कभी हथेली घिसने या आरी चलाने जैसी आवाज आती है, जिसे फ्रिकशन साउण्ड (Friction Sound) कहते हैं।
7.    कभी-कभी बुलबुला बनने जैसे आवाज आती है। जिसे बबलिंग (Bubling) कहते हैं।

विभिन्न रोगों में वक्ष की ध्वनि
·        दमा में सीटी देने की ध्वनि जैसी आवाज आती है।
·        प्लूरिसी में रगड़ (Friction) सी आवाज आती है।
·        टी0बी0 रोग में धातु पात्र बजने की तरह ध्वनि होती है।
·        न्यूमोनिया में कागज फाड़ने की जैसी आवाज आती है।
·        ब्रोन्काइटिस में मक्खी की भनभनाहट या घबराहट की आवाज आती है।
·        दिल की धड़कन बढ़ने की तेजी और उसके चोट सी धड़कन साफ सुनायी देती है।

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