VRINDAVAN INSTITUTE OF NATUROPATHY AND YOGIC SCIENCES is an authorized Work Integrated Vocational Education Center (WIVE) of Asian International University in India.

रोगों से प्राकृतिक रोध


उचित भोजन, प्राकृतिक रहन-सहन एवं सात्विक विचार, स्वस्थ रहने के महत्त्वपूर्ण आधार हैं। कहा जाता है कि - जैसे भोजन वैसे मन, यह कथन सत्य है? क्योंकि भोजन का प्रकार व्यक्ति की शारीरिक तथा मानसिक स्थिति को प्रभावित करता है। यदि वह भोजन के मूलभूत नियमों से पूर्णतया अवगत नहीं है, तो यह शरीर तथा मन दोनों के लिए अहितकारी हो सकता है। 

रोगों से बचाव के लिए हमारी दिनचर्या में निम्नलिखित नियमों का समावेश चाहिये-

1. प्रत्येक दिन भोजन के साथ सलाद लेना चाहिए। सलाद के लिए ककड़ी, टमाटर, मूली, पत्तागोभी, खीरा, आदि का प्रयोग करना उत्तम है। 
2. हरी सब्जियों का उपयोग प्रतिदिन करने से रक्त शुद्ध रहता है तथा शक्तिवर्धन होता है। 
3. मौसमी फलों का सेवन करने से सभी विटामिनों की पूर्ति हो जाती है। 
4. भोजन ताजा ही खाना चाहिये। 
5. गर्मियों में 5-6 लीटर जल तथा जाड़ों में 4-5 लीटर जल पीना चाहिए। अधिक जल पीने से शरीर का मल तेजी से बाहर निकल जाता है, पाचन तंत्र स्वच्छ बना रहता है। भोजन के साथ पानी नहीं पीना चाहिए। 
6. चाय या काफी स्वास्थ्य के लिये दोनों हारिकारक हैं, यदि वे अधिक मात्रा में सेवन किये जाते हैं तो हानि होती है। 
7. अंकुरित अनाज बहुत ही पोषक भोजन है इससे भोजन के सभी तत्त्व प्रोटीन, कार्बोहाइड्रट, खनिज, विटामिन्स होते हैं। इसका प्रतिदिन सेवन करना चाहिये। 

8. जलनेति - प्रत्येक व्यक्ति को जलनेति प्रतिदिन करनी चाहिये। इससे संक्रामक रोग नहीं होते हैं। श्वास क्रिया सामान्य रहती है। रक्त में वायु (आक्सीजन) पर्याप्त मात्रा में मिलती है। अतः शरीर के सभी कोष सबल रहते हैं। जलनेति से आँख की दृष्टि बढ़ती है। नाक, गले-कान आदि के रोग नहीं होते हैं। सिर दर्द नहीं करता है। इससे बुद्धि विकास होता है।

9. कुंजल क्रिया- इसमें गुनगुना जल जिसमें थोड़ा नमक मिला हुआ होता है, भरपेट पीते हैं तथा उसके बाद वमन करते हैं या बाहर निकाल देते हैं। इससे पेट की सम्पूर्ण सफाई हो जाती है। स्वस्थ व्यक्ति को सप्ताह में एक बार कुंजल क्रिया करनी चाहिये। इसके करने से भोजन में अरुचि, पीलिया, अपच आदि रोग दूर होते हैं। पेट का विष बाहर निकल जाता है। यदि पेट में कीड़े होते हैं, तो वे भी नहीं रहते हैं। त्वचा तथा रक्त के रोगों में भी लाभकारी है। 

10. बस्ति- गुदा की सफाई एनिमा के द्वारा करते हैं। स्वस्थ व्यक्ति को महीने में दो बार एनिमा लेना चाहिये। इससे आँतों की सफाई हो जाती है तथा पाचन क्रिया के दोष देर हो जाते हैं। इससे भूख बढ़ती है। मानसिक शान्ति मिलती है तथा शरीर हल्का तथा चुस्त रहता है। 

11. नौलि- इस क्रिया से आँतों की विकृतियाँ दूर हो जाती है। अपच, मोटापा, तथा पेट के अन्य विकारों में लाभ होता है। वात, पित्त तथा कफ में संतुलन बना रहता है। 

12. त्राटक- त्राटक क्रिया में किसी एक बिन्दु पर ध्यान लगाकर टकटकी बाँध कर देखते हैं। इससे आँखों के अनेक रोग दूर होते हैं, दृष्टि बढ़ती है। सुस्ती दूर होती है तथा ध्यान करने में सहायता मिलती है। 

13. प्राणायाम- प्राणायाम से मन की शुद्धि होती है। इससे मानसिक शक्ति बढ़ती है तथा ध्यान केन्द्रित करने की शक्ति सबल बनती है। लिवर, उदर, वृक्क, आँतें तथा पाचक अंग, तथा सम्पूर्ण शारीरिक तंत्र प्राणायाम से प्रभावित होता है। प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन प्राणायाम करना चाहिये। 

14. स्वच्छ वायु सेवन- स्वच्छ वायु में काम करना, रहना तथा खेलना सभी कुछ लाभकारी होता है। स्वास्थ्य के लिए स्वच्छ वायु तथा सूर्य प्रकाश-शक्तिवर्धन का कार्य करता है। शरीर के प्रत्येक अंग प्रत्यंग के लिये आक्सीजन की आवश्यकता होती है। इसके साथ ही साथ यह विजातीय तत्त्वों को जलाने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यदि स्वच्छ वायु न मिले तो न तो अच्छा स्वास्थ्य बना रह सकता न ही मानसिक क्रिया सामान्य रूप से कार्य कर सकती है। इसीलिए प्रातःकाल का टहलना स्वास्थ्य के लिये अत्यंत लाभकारी माना गया है। 

15. तेल मालिश- हमारी त्वचा के भीतर दो प्रकार की ग्रन्थियाँ हैं, पहली तेल की ग्रन्थि तथा दूसरी पसीने की ग्रन्थि। तेल की ग्रन्थि शरीर को चिकना और मुलायाम बनाकर रखती है। जाड़े के दिनों में चर्म शुष्क और रूखी हो जाती है। अतः तेल मालिश जरूरी हो जाती है। साथ ही रक्त संचालन भी सही रहता है। प्राकृतिक चिकित्सा में मालिश एक चिकित्सा पद्धति भी है। इससे शरीर दृढ़, मजबूत और शीघ्र स्वस्थ होता है। 

16. सूर्य प्रकाश सेवन- सूर्य प्रकाश अनेकानेक रोगों को नष्ट करता है तथा स्वास्थ्य को सम्पन्न बनाने में अनेक पोषक तत्त्वों को प्रदान करता है। स्वास्थ्य लाभ ऊष्णता से नहीं बल्कि किरणों से होता है। अतः शीतल किरणों का उपयोग करना बताया जाता है। प्रातःकाल का समय प्रकाश सेवन के लिये उत्तम होता है। 

17. गहरी श्वास-प्रवास- बिना भोजन के व्यक्ति कुछ दिनों तक जीवित रह सकता है, लेकिन हवा के बिना कुछ मिनट भी जीवित नही रह सकता है। श्वास ही जीवन है गहरी श्वास उसी प्रकार शरीर को शक्ति प्रदान करती है, जैसे-धौकनी आग को प्रज्जवलित कर देती है। गहरी श्वास से अधिकाधिक आक्सीजन शरीर के विभिन्न अंगों को जाती है साथ ही गहरी प्रश्वास से अधिकाधिक कार्बन डाईआक्साईड बाहर निकलती है। 

18. स्नान तथा सफाई- प्रत्येक दिन स्नान करना चाहिये। इससे शरीर चुस्त तथा रोग विहीन रहता है शरीर में हजारों रोमकूप होते हैं। इन रोमकूपों के द्वारा शरीर से विजातीय तत्त्व पसीने के रूप में बाहर निकलता है। स्नान करने से ये रोमकूप साफ सुथरे बने रहते है। 

19. वस्त्राधारण- शरीर की सर्दी तथा गर्मी से रक्षा करने के लिये वस्त्रों का पहनना आवश्यक है। इसके साथ ही साथ सांस्कृतिक प्रतिमानों के कारण भी वस्त्र धारण करते हैं। आजकल अधिकांशतः ऐसे कपड़े पहने जाते हैं, जिसमें हवा का प्रवेश नहीं हो पाता है। इससे शरीर को हानि होती है सूती कपड़े शरीर के लिये लाभकारी होते हैं। 



20. कार्य का समय- मनुष्य आज धन कमाने वाली मशीन बन गया है। वह न तो सोने और न ही विश्राम करने की परवाह करता है, लेकिन दोनो आवश्यक है। स्वस्थ रहने के लिये कार्य के समय की पाबंदी होनी आवश्यक होती है। 

21. सकारात्मक दृष्टिकोण- हर सिक्के के दो पहलू होते है। यदि हम बुराइयों की ओर ध्यान देते हैं, तो बुराईयाँ ही बुराईयाँ दिखायी देती है। लेकिन इससे लाभ के स्थान पर हानि होती है। इससे सांवेगिक जीवन बुरी तरह से प्रभावित होता है। क्रोध, बढ़ता है, इर्ष्या बढ़ती है, इस कारण सम्पूर्ण शरीर क्षतिग्रस्त हो जाता है। दूसरों से अच्छे गुणों को देखने से व्यक्ति का मानसिक स्वास्थ्य अच्छा बना रहता है। 

22. योगाभ्यास एवं व्यायाम- शरीर के सभी अंगों का अभ्यास होना शारीरिक दक्षता बनाये रखने के लिए आवश्यक होता है। योगाभ्यास साधन है जिससे शरीर के प्रत्येक अंग की क्रिया हो जाती है। इससे शारीरिक थकान दूर होती है, और नयी स्फूर्ति आती है, तथा मानसिक सर्तकता शीघ्र ही परिलक्षित होती है। प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन योगाभ्यास करना चाहिये। व्यायाम से शरीर की लगभग चार सौ मांसपेशियों पर प्रभाव पड़ता है। शरीर की सारी क्रियायें इन पेशियों से संबन्धित है। इनके सक्रिय रहने से नये कोषाणुओं का निर्माण, कोषाणुओं की क्रिया में उत्पन्न मल का निष्कासन और कोषाणुओं का नाड़ियों से उचित संबन्ध ठीक प्रकार से संपन्न होता रहता है, इसी से हम स्वस्थ रहते हैं। व्यायाम शारीरिक अक्षमता और रोगों का निवारण करने का प्राकृतिक उपाय माना गया है। अतः हमें स्वस्थ रहने के लिये व्यायाम एवं योगासन को अपने दैनिक जीवन में उचित स्थान देना चाहिए। 

23. आराम, विश्राम तथा मनोरंजन- शरीर के लिए जितना व्यायाम आवश्यक है, उतना ही आराम भी आवश्यक होता है। इससे शरीर में शक्ति का संचार होता है, थकान समाप्त हो जाती है एवं शरीर को स्फूर्ति प्राप्त होती है। विश्राम से मानसिक तथा शारीरिक दोनों प्रकार की ऊर्जा प्राप्त होती है। मनोरंजन भी उनकी शक्ति को प्राप्त करने में सहायता करता है। प्राकृतिक चिकित्सा में विश्राम के वैज्ञानिक आधार बताये जाते हैं, जिससे अधिकाधिक शक्तिवर्धन होता है। 

24. पर्याप्त निद्रा- नींद जीवन के लिए आवश्यक है। अतः नियमित तथा समयानुसार सोना आवश्यक होता है। शरीरिक मानसिक जो भी कार्य करने से क्षति हुई है उसकी पूर्ति नींद में होती है। अतः गहरी नींद आना आवश्यक होता है। 

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