VRINDAVAN INSTITUTE OF NATUROPATHY AND YOGIC SCIENCES is an authorized Work Integrated Vocational Education Center (WIVE) of Asian International University in India.

विष -प्रतिविष एवं उसका विलोपन

कुछ प्रतिकारक, विषों के साथ संयुक्त हो उसके बुरे प्रभाव का निराकरण कर देते हैं। उदाहरण के लिए यदि विष कोई प्रबल अम्ल है तो मृदुक्षार, जैसे तनु ऐमोनिया (आधे पाइंट जल में एक चम्मच ऐमोनिया) या चूने का पानी, मैग्नीशिया, खड़िया आदि के व्यवहार से अम्ल के प्रभाव का निराकरण किया जाता है। विष यदि प्रबल क्षार है, तो उसका प्रतिकार मृदु अम्लों, तनु ऐसीटिक अम्ल, सिरका, नीबू के रस से किया जा सकता है। यदि विष की प्रकृति का ठीक ठीक पता न हो तो अंडे की सफेदी, मीठे तेल (फास्फोरस विष को छोड़कर) तथा पर्याप्त पानी या दूध देकर उसके प्रभाव को कम करना चाहिए। मुँह में अंगुली डालकर, अथवा वमनकारी औषधियाँ देकर, विष को जल्द से जल्द बाहर निकाल देने की चेष्टा करनी चाहिए। बहुत अधिक मात्रा में सादा पानी पिलाकर, अथवा एक प्याले गरम पानी में एक चम्मच सरसों का सीरप (Syrup of Ipecac) डालकर, वमन कराया जा सकता है। अधिकांश विषों में दूध, अंडे की सफेदी अथवा कड़ी कॉफी या चाय से राहत मिलती है। विष से जो लक्षण उत्पन्न हुए हों, उनके विपरीत लक्षण उत्पन्न करनेवाली औषधियों का सेवन करना चाहिए। यदि शीत मालूम हो, थकावट और अचेतना दिखाई पड़े, तो विषाक्रांत व्यक्ति को गरम रखना चाहिए और उसे उद्दीपक पदार्थो जैसे कड़ी कॉफी या कड़ी चाय, का सेवन कराना चाहिए। यदि नींद आती हो तो उसे गरम जल के टब में रखना अच्छा होता है। यदि आवश्यकता पड़े तो कृत्रिम श्वसन का सहारा बिना संकोच लेना चाहिए। निद्रोत्पादक ओषधियों के विष में तो कड़ी कॉफी का उपयोग शीघ्रातिशीघ्र करना चाहिए।

किसी डाक्टर को तुरंत बुलाकर विषाक्रांत व्यक्ति को दिखाना चाहिए और जो विष खाया गया है या खाए जाने की संभावना हो, उसे डॉक्टर को बता देना चाहिए। यदि विष आमाशय में गया हो, तो डॉक्टर से राय लेकर आमाशय को खाली करने का उपाय करना चाहिए।

कुछ सामान्य विष और उनके प्रतिकारक उपाय

ऐल्कोहल : 
वमन कराना और आमाशय को पूर्णतया धोना, कॉफी पिलाना, शरीर को शीतल और सिर को गरम रखना तथा ऐरोमैटिक स्पिरिट्स ऑव ऐमोनिया का सेवन कराना चाहिए।

अम्ल (हाइड्रोक्लोरिक, नाइट्रिक और सल्फ्यूरिक) : 
मृदुक्षार, जैसे ऐमोनिया, बेकिंग पाउडर, मैग्नीशिया, खड़िया, चूने का पानी, तथा साबुन जल का सेवन।

प्रुसिक अम्ल : 
यह बड़ा विषैला अम्ल है। आमाशय को धोना, एमि नाइट्राइट का अंत:श्वसन और साथ साथ सोडियम नाइट्राइट और सोडियम थायोसल्फेट का अंत:शिरा इंजेक्शन, मेथिलीन का अंत:शिरा इंजेक्शन आदि उपाय हैं।

कार्बोलिक अम्ल : 
विलेय सल्फेट का सेवन, हलके ऐल्कोहल, कच्चे अंडे या आटे के पानी का सेवन।

क्षार : 
तनु अम्ल, 2 से 3% ऐसीटिक अम्ल, सिरका, नींबू के रस का सेवन। खानेवाला तेल, घी, दूध, मलाई तथा अन्य शामक द्रवों का सेवन।

ऐल्कैलॉयड (कोकेन, एकोनाइट, बेलाडोना, स्ट्रिकनीन, अफीम मार्फिन, तंबाकू तथा निकोटिन) : आमाशय को पोटाश परमैंगनेट के विलयन (1:1000) से पंप द्वारा धोना; कृत्रिम श्वसन या ऑक्सीजन का श्वसन, बिना दूध की कॉफी पिलाना, केंद्रीय तंत्र के उद्दीपक का सेवन; शरीर को गरम रखना तथा बारबिट्यूरेट द्वारा उत्तेजना का नियंत्रण।

पारा (बाइक्लोराइड ऑव मर्करी, मरक्यूरिक क्लोराइड, सिंदूर, हिंगुल) : 
सोडियम फॉर्मैल्डिहाइड सल्फोक्सिलेट से धोना; १० मिनट के अंदर वमन कराना; अंडे की सफेदी तथा दूध का सेवन सोडियम लैक्टेट का सेवन।

संखिया (अनेक कीटनाशक ओषधियों में आर्सेनिक रहता है) : अमाशय को नली द्वारा पर्याप्त मात्रा में सेवन, या सोडियम थायोसल्फेट विलयन का अंत: शिरा इंजेक्शन।

तूतिया : 
आमाशय को पंप से धोना; दूध, अंडे की सफेदी, साबुन, तथा आटा मिले पानी का सेवन।

सीसा (लेड) : 
प्रचुर पानी से धोना, इप्सम सॉल्ट का सेवन; अंडे की सफेदी और दूध का सेवन; आटे के पानी का सेवन।

आयोडीन (टिंक्चर ऑव आयोडीन) : 
पंप से आमाशय धोना, वमन कराना; आटे की गाढ़ी लेई का सेवन।

फास्फोरस (दियासलाई) : 
आमाशय को हल्के पोटाश परमैंगनेट या हाइड्रोजन परॉक्साइड के विलयन से धोना। इसमें दूध, तेल या घी का सेवन वर्जित है। दूध या पानी के साथ आधा चम्मच तारपीन का सेवन, आटा, इप्सम सॉल्ट या मैक्नीशिया का सेवन।

ऐंटिमनी : 
पारद सा ही उपचार करना चाहिए, दूध तथा अंडे का सेवन कराना चाहिए।

टोमेन (ptomaine) विष : 
मछली और मांस के सड़ने से बने विष को टोमेन कहते हैं। डिब्बे में बंद मांस मछली में भी यह विष कभी कभी पाया जाता है। इस विष के निराकरण के लिये कोई प्रबल रेचक (इप्सम सॉल्ट, रेंडी तेल आदि) का सेवन आवश्यक है। अल्प तारपीन मिला, या साबुन झाग युक्त पानी से एनिमा लेना।

रजत विष : 
नमकीन पानी का प्रचुर सेवन; दूध, साबुन तथा बेकिंग सोडा का सेवन।

वनस्पति विष : 
इसका कोई प्रतिकारक नहीं है। उद्दीपक तथा रेचक का सेवन तथा वमन कराना चाहिए।

छत्रक (Mushroom) : 
उदर का पंप से प्रक्षालन; उदर को गरम रखना; कड़ी कॉफी और फिर रेंड़ी के तेल का सेवन।

गैस : 
कुछ गैसें विषाक्त होती हैं। गैस से आक्रांत व्यक्ति को खुली वायु में रखना, कृत्रिम श्वसन, शरीर को गरम रखना, कॉफी का सेवन तथा एनीमा देना चाहिए।

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