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व्यायाम


व्यायाम स्वस्थ जीवन जीने की एक सीढी है। इसके द्वारा मानव रोग प्रतिरोधी शक्ति में वृद्धि कर सकता है व्यायाम का अर्थ है वह शारीरिक परिश्रम जिससे उत्पन्न होने वाली थकान के बाद सुख की प्राप्ति होती है। व्यायाम का सीधा प्रभाव हमारे शरीर पर पडता है। इसमें होने वाली शरीर की विभिन्न स्थितियां शरीर के भिन्न-2 अवयवों व तंत्रो पर प्रभाव डालती है। तथा रक्त के संचार को उत्तम बनाकर शरीर में जमे हुए विजातीय द्रव्यों को बाहर निकालता है। व्यायाम रोग के कारणों को दूर कर शरीर को पूर्ण रूप से सुडौल, कान्तिमय, बलिष्ट तथा सुन्दर बनाता है। शरीर में हल्कापन तथा स्थिरता को बढ़ाता है। 

मानसिक परिश्रम को व्यायाम नहीं कह सकते और न उस शारीरिक परिश्रम को ही व्यायाम कह सकते हैं जो जीविका प्राप्त करने के लिए प्रतिदिन करना पड़ता है | लोहार को दिन भर लोहे से जूझना तथा मजदूरों का दिन भर पैसों के लिए मेहनत मशक्कत करना व्यायाम कदापि नहीं कहला सकता | कारण दैनिक कार्य सम्बन्धी श्रम का उद्देश्य जीविकोपार्जन होता है परन्तु व्यायाम इस उद्देश्य से किया जाता है कि उससे हमारा शरीर बलिष्ठ होगा, उसका विकास होगा और वह निरोग होगा |यदि व्यायाम से यह भावना निकाल दी जाये तो यह मात्र शुष्क शारीरिक परिश्रम के अतिरिक्त और कुछ न रह जायेगा | यही श्रम और व्यायाम में अंतर है | इसलिए व्यायाम से शारीरिक क्रिया के साथ-साथ उपर्युक्त मानसिक कल्पना या भावना का रहना अनिवार्य होता है | व्यायाम का मुख्य उद्देश्य शरीर की सफाई करना एवं उसके जीवाणुओं को सबल बनाना है | व्यायाम से होता यह है कि शरीर के भीतर हलचल मचकर गति उत्पन्न हो जाती है, जो उत्ताप को जन्म देती है और उत्ताप से शरीर के समस्त कोशाणु चैतन्य होकर अपना काम करने लग जाते हैं अर्थात फेफड़े अधिकाधिक आक्सीजन बाहर से खींच-खींच कर  शरीर के अशुद्ध रक्त को शुद्ध करने लगते हैं | रक्त के तीव्र बहाव के कारण शरीर की नाडियां भी तेजी के साथ सक्रिय हो जाती हैं |

मनुष्य के लिए यदि भोजन आवश्यक है तो व्यायाम भी उसके लिए कम आवश्यक नहीं है, इसी तथ्य को सामने रखकर महात्मा गाँधी ने भी एक जगह लिखा है – “जिस प्रकार भूख लगने पर तुम कोई काम नहीं कर सकते उसी प्रकार हमें कसरत की ऐसी आदत डाल लेनी चाहिए कि उसके बिना किये हम और कोई काम ही न कर सकें “ हमारा भोजन हमारे शरीर रूपी इंजन को ईंधन पंहुचता है और व्यायाम उसके कलपुर्जों को ठीक हालत में रखता है और उनकी देखभाल करता है | यही भोजन और व्यायाम में परस्पर सम्बन्ध है |

व्यायाम के प्रकार :
जिनमे यंत्रों की सहायता ली जाती है जैसे – डम्बल आदि की सहायता से व्यायाम |
जिनमे यंत्रों का प्रयोग नहीं होता और केवल शरीर का ही विविध प्रकार से संचालन होता है, जैसे दंड-बैठक आदि |

जिनमे दो व्यक्तियों की आवश्यकता हो जैसे – कुश्ती |
जिनमे अनेक व्यक्तियों की आवश्यकता होती है, जैसे –कबड्डी आदि खेल |
जिनमे अकेले ही व्यायाम करना संभव हो जैसे- टहलना, तैरना आदि |
जो बच्चों के लिए हानिकारक होते हैं किन्तु प्रौढ़ों के लिए लाभप्रद जैसे पत्थर की भारी नाल उठाना,
जो सर्वांग पर प्रभाव डालते हैं जैसे – सर्वांगासन, दंड-बैठक आदि |
जो अंग विशेष पर प्रभाव डालते हैं जैसे पेट के व्यायाम |
जो केवल स्त्रियों के लिए ही होते हैं जैसे गर्भाशय दोष के व्यायाम|

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