VRINDAVAN INSTITUTE OF NATUROPATHY AND YOGIC SCIENCES is an authorized Work Integrated Vocational Education Center (WIVE) of Asian International University in India.

प्राकृतिक आहार


शारीरिक स्वास्थ्य रक्षा के लिए सब से महत्वपूर्ण और आवश्यक उसका आहार है। आहार ही जीवन का आधार है। प्राकृतिक आहार ही मनुष्य के शरीर के लिए सर्वोत्तम है। जब तक मनुष्य प्राकृतिक आहार को नहीं अपनाता उसका निरोग रहना असम्भ्व है। फल, दूध, तरकारिया, अनाज मनुष्य के प्राकृतिक आहार है। 

आहार और स्वास्थ्य : 
स्वास्थ्य पर ही जीवन निर्भर है। किसी यंत्र के लिए जिस प्रकार ईंधन की आवश्यकता होती है उसी प्रकार मानव शरीर यंत्र के स्वास्थ्य की सुदृढ़ता और दीर्घ आयु के लिए यह आवश्यक है कि वह क्या खाये और क्या न खाये । यदि आहार उत्तम हो तो मनुष्य किसी भी रोग से ग्रस्त नहीं हो सकता और उसकी शक्ति बुढ़ापे तक स्थिर रह सकती है। दांत और आंखों की रोशनी (शक्ति) अन्तिम श्वास तक ठीक रह सकती है। मानव शरीर पर आहार का बहुत प्रभाव पड़ता हे। डॉ. इहरिट के अनुसार सौ प्रतिशत में से 99.9 प्रतिशत रोग गलत आहार से उत्पन्न होते है यदि अपने स्वास्थ्य को रोग से सुरक्षित रखना चाहते हैं और लम्बी आयु के इच्छुक हैं तो प्राकृतिक आहार और सन्तुलित आहार को ग्रहण करना चाहिए। 

भोजन का उद्देश्य भूख को शान्त करना या जिह्वा की परितृप्ति नहीं है बल्कि इसका उद्देश्य शरीर के पोषण के साथ-साथ मानसिक तथा आध्यात्मिक स्वास्थ्य में भी वृद्धि करना भी होता है, क्योंकि शरीर, मन और आत्मा तीनों ही स्वास्थ्य के प्रमुख स्तम्भ हैं। जब तक तीनों स्वस्थ नहीं होंगे, तब तक पूर्ण स्वास्थ्य की संज्ञा नहीं दी जा सकती है। भारतीय शास्त्रों में भोजन को तीन भागों में विभक्त किया गया है। सात्विक, राजसिक और तामसिक। जो शारीरिक मानसिक तथा आध्यात्मिक रूप से अच्छा स्वास्थ्य चाहते है उन्हें सात्विक आहार करना चाहिए। जिनका उद्देश्य शारीरिक व मानसिक दोनों प्रकार से स्वस्थ रहना हो तो राजसिक भोजन करें। आहार शुद्ध होने पर मन की शुद्धि होती है व्यक्ति को अपनी इन्द्रियों पर नियन्त्रण रहता है तथा एकाग्रता आती है। शरीर के लिए हितकर भोजन वह है जो शरीर को बल देने वाला हो, क्षय का निवारण करने वाला हो,उचित ताप पैदा करने वाला हो सुपाच्य हो अनुत्तेजक हो तथा स्मरण शक्ति आयु,सत्व, साहस, दया, सहयोग आदि बढ़ाने वाला हो । 

आहार चिकित्सा : 
आहार प्रत्येक प्राणी का जीवन है तथा आहार का सीधा सम्बंध उसके शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य से होता है । प्रत्येक भोजन में भिन्न -भिन्न पोषक तत्व उपस्थित होते है तथा प्रत्येक पोषक तत्व शरीर में अलग अलग रूप से कार्य करता है । यदि प्रत्येक व्यक्ति कुछ पोषक तत्वो को कम या इसके विपरीत कुछ पोषक तत्वो को अधिक परिणाम में लेने लगे तो भी शरीर में उसका विपरीत प्रभाव दिखाई देने लगता है। अतः उपयुक्त पोषक तत्वो को उचित परिमाण भोजन द्वारा ग्रहण करना पूर्ण रूप से स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक है । इन आहारो को साधाारणः तीन भागों में बांटा गया है। 

शुद्धिकारक आहार- नींबू का रस , कच्चा नारियल पानी, सब्जियों के सूप छाछ आदि शुद्धि कारक आहार हैं। 
शान्तिकारक आहार- फल, सलाद, उबली भाप में बनायी गयी सब्जियां, अंकुरित अन्न सब्जियों की चटनी आदि शान्तिकारक आहार होते हैं। 
पुष्टिकारक आहार- सम्पूर्ण आटा बिना पालिश किया हुआ, चावल, दालें, अंकुरित अन्न, दही आदि। यह आहार क्षारीय होने के कारण शरीर का शुद्धिकरण, रोग मुक्त करने तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक होते है। आवश्यकता है आहार का आपस में मेल हो। स्वस्थ रहने के लिए हमारा भोजन 20 प्रतिशत अम्लीय और 80 प्रतिशत क्षारीय होना आवश्यक है। इसलिए प्राकृतिक चिकित्सा में आहार को मूलभूत औषधि माना गया है। 

प्राकृतिक आहार एवं दिनचर्या : 
स्वास्थ्य के लिए आहार का प्रथम स्थान है क्योंकि लिया गया आहार सप्त धातुओं (रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा एवं वीर्य) में परिवर्तत होकर शरीर का पोषण, शक्ति क्षतिपूर्ति करता है। आहार से शरीर बनता है और स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन का निवास होता है। 

प्राकृतिक आहारों के स्वास्थ्य प्रद गुण :
प्राकृतिक आहार स्वास्थ्य को ठीक रखते है। यदि स्वास्थ बिगड़ जाये तो प्रकृति के आहार सर्वोत्तम औषधि का काम करते हैं। इन में विभिन्न प्रकार के लवण और विटामिन पाये जाते है जो रोगों को दूर करते हैं और विकृत तत्वों को शरीर से बाहर निकालते हैं। प्राकृतिक आहार दो श्रेणियों में विभक्त किये जा सकते है। एक विकृत तत्व को बाहर निकालने  वाले और दूसरे शरीर की शक्ति को कायम रखने वाले । तरकारियाँ और फल शरीर से विकृत तत्व को दूर करने वाले सर्वश्रेष्ठ आहार हैं। इन से दूसरे दर्जे पर दूध ऐसा प्राकृतिक आहार है जो शरीर को विकृत तत्व से शुद्ध करता है और शक्ति देता है। अनाज या बीज शरीर से विकृत तत्व को बाहर निकालने के गुण नहीं रखते। ये शरीर को बलवान और सुदृढ़ बनाते है। इसलिये रोगों को दूर करने के लिये अनाज और बीज के लिये कोई स्थान नहीं। सब्जी और फलों में से सब्जियों को सबसे अधिक महत्व प्राप्त है। दूसरा दर्जा फलों को और तीसरा दूध को प्राप्त हैं। तरकारियाँ प्रकृति की सर्वोत्तम औषधि हैं। इन में कीटाणुओं को दूर करने वाले तत्व रक्त को शुद्ध करने वाले गुण तथा विटामिन प्रचुर मात्रा में पाये जाते है। जो प्रत्येक प्रकार के रोगों के निवारण की क्षमता रखते है। 

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