विजातीय द्रव्य जिसे हम दोष, विकार, सड़ा हुआ मल, बादी कहते हैं, ये हमारे अप्राकृतिक खान-पान व जीवनशैली अपनाने से होते हैं। ये हमारे शरीर में दो रास्ते से प्रवेश करते हैं। पहला नाक द्वारा फेफड़ों में तथा दूसरा मुँह द्वारा पेट में। वायु तथा पर्यावरण प्रदूषण के कारण फेफड़ों में पर्याप्त आवश्यक वायु न मिलने से विजातीय द्रव्य एकत्रित हो जाते हैं जिसे हम नाना प्रकार के रोग के नाम से जानते हैं। इसी प्रकार अस्वाभाविक अर्थात गलत खान-पान से शरीर की पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है। जब आवश्यकता से अधिक भोजन किया जाता है और बहुत ही चटपटा, मिर्च मसाले वाला, तला-भूना, अम्लीय भोजन करते हैं तो शरीर इसको स्वभावतः मल, मूत्र तथा पसीना आदि के द्वारा बाहर नहीं निकाल पाता है। इस प्रकार ये विजातीय द्रव्य भीतर ही जमा होने लगते हैं। रक्त में मिलकर रक्त प्रवाह में विघ्न उत्पन्न करते हैं एवं पाचन तंत्र को अव्यवस्थित कर देते हैं। ये विजातीय द्रव्य उसे बाहर निकालने वाले शरीर के कोठों के चारों ओर धीरे-धीरे जमा हो जाते हैं और उनके कार्य में रूकावट डालते हैं। फिर ये विभिन्न रोग उत्पन्न करने लगते हैं।
विजातीय द्रव्य की उत्पत्ति हमारे शरीर में निरंतर होती रहती है और उसका निष्कासन कार्य भी हमारे शरीर में निरंतर होता है, लेकिन यदि निष्कासन कार्य में रूकावट आने लगे या बाहर से विजातीय द्रव्य हमारे शरीर में प्रवेश करने लगे एवं और भी अन्य कारणों से हमारे शरीर में विजातीय द्रव्य बढ़ने लगे तो हम रोगग्रस्त हो जाते हैं। अप्राकृतिक जीवनशैली व गलत खान-पान से विजातीय द्रव्य की मात्रा हमारे शरीर में अधिक बनने लगती है। इसके अतिरिक्त भी और भी कई कारण हैं जिससे विजातीय द्रव्य का प्रवेश या निर्माण हमारे शरीर में होने लगता है जिसमें कुछ निम्नलिखित हैं-
1. श्वांस के द्वारा- श्वास के साथ हवा में उड़ते रहने वाले छोटे-छोटे कीटाणु, धूलकण, धुँआ, दुर्गन्ध, हानिकारक गैस एवं अन्य विजातीय द्रव्य शरीर में चले जाते हैं।
2. मुँह के द्वारा- मुँह के द्वारा जल या अन्य खाद्याखाद्य पदार्थ में मिश्रित कीटाणु और गन्दगी आदि शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और शरीर में विजातीय द्रव्य की वृद्धि करते हैं।
3. विषैले जंतुओं के काटने से- विषैले जंतुओं जैसे- साँप, बिच्छु, मच्छर, कीट-पतंग आदि काट खाने से उनका विष शरीर में प्रवेश कर जाता है और शरीर में विजातीय द्रव्य की वृद्धि होने लगती है।
4. विषैली दवाओं के प्रयोग से- विषैले दवाओं, सुइयों, गैसों द्वारा भी विजातीय द्रव्य शरीर में प्रवेश कराया जाता है। ये विषैले द्रव्य हमारे शरीर में विजातीय द्रव्य के रूप में संचित होते रहते हैं।
5. नशीले पदार्थों के सेवन द्वारा- नशीले पदार्थ, जैसे- तंबाकू, गांजा, चरस, सिगरेट, अफीम, शराब आदि के सेवन से भी हमारे शरीर में विजातीय द्रव्य की मात्रा में वृद्धि होती है।
6. वंश परम्परा संस्कार- जिन माता-पिता के शरीर में विजातीय द्रव्य भरे रहते हैं उनके बच्चों में भी विजातीय द्रव्य प्रवेश कर जाते हैं। डाॅ. लुई कुइने के अनुसार, बच्चे अपने माता-पिता से विजातीय द्रव्य लेकर पैदा होते हैं। माता-पिता जब विजातीय द्रव्य से अधिक लदे रहते हैं, तब विजातीय द्रव्य पीढ़ी-दर-पीढ़ी उतरता जाता है। माता-पिता की शकल जब बच्चों में उतर जाती है, तब माता-पिता का और विशेषकर माता का भी विजातीय द्रव्य उसी प्रकार बच्चों में उतर आता है। हम बराबर देखते हैं कि जो बिमारियाँ माता-पिता को होती हैं, वे ही बच्चों को भी प्रायः हुआ करती हैं।
7. अप्राकृतिक जीवनशैली द्वारा- अप्राकृतिक जीवनशैली अपनाने से हमारे शरीर में विजातीय द्रव्य की मात्रा बढ़ने लगती है और हम रोगग्रस्त हो जाते हैं।
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