VRINDAVAN INSTITUTE OF NATUROPATHY AND YOGIC SCIENCES is an authorized Work Integrated Vocational Education Center (WIVE) of Asian International University in India.

संतुलित आहार

By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'

शरीर निर्वाह के लिये आवश्यक तत्त्व जिस भोजन में हो वह संतुलित आहार कहलाता है। संतुलित आहार द्वारा ही शरीर को पर्याप्त सम्यक मात्रा में पोषण प्राप्त होता है। व्यक्ति के कार्य करने की क्षमतानुसार आवश्यक कैलोरी की मात्रा अलग-अलग व्यक्ति की अलग आहार मात्रा होती है। समान्यतया एक मनुष्य को प्रतिदिन कौन-कौन सी आहार सामग्री कितनी-कितनी मात्रा में कब-कब सेवन की जानी चाहिये, जिससे कि उसके शरीर का पोषण होता रहे। शरीर की सात धातुऐं यथा-रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, एवं शुक्रादि की पूर्ति होती रहे। अतः स्वस्थ रहने के लिए उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति एवं दीर्घायु प्राप्ति हेतु तथा रोगों से बचने के लिए संतुलित आहार का उपयोग परमावश्यक है।

सामान्यतयाः संतुलित आहार के अंतर्गत प्रोटीन, कार्बेाज, वसा, खनिज लवण, विटामिन्स, एवं जल की मात्रा का निश्चित प्रमाण में उपयोग संतुलित आहार में परमावश्यक है।

आधुनिक मतानुसार संतुलित आहारः- आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के अनुसार संतुलित आहार को निम्न 6 भागों में विभक्त किया गया हैः-

1. कार्बोहाइड्रेट

2. प्रोटीन

3. वसा

4. खनिज लवण

5. विटामिन

6. जल

कार्बोहाइड्रेट

कार्बोहाइड्रेट के अन्तर्गत छः तत्त्वों को समाहित किया जाता है।

1.     मोनोसैक्केराईड

2.     डाइसैक्केराईड

3.     पोलीसैक्केराईड

4.     स्टार्च

5.     ग्लाइकोजन

6.     सेल्युलोज

मोनोसैक्केराईड :

रासायनिक दृष्टि से मोनोसैक्केराईड सरलतम प्रकार के कार्बोहाइड्रेट होते हैं। आहार द्रव्यों के अन्तर्गत जटिल प्रकार के कार्बोहाईड्रेटों का पाचक नली में पाचन तथा मोनेासैक्केराईड के रूप में ही उनका अवशोषण होता है। मोनोसैक्केराइड केवल एक इकाई या अणु के बने होते हैं। जैसे ग्लूकोज आदि का अवशोषण होने के लिये पाचन की आवश्यकता नहीं होती इनका सीधे ही क्षुद्रांत्र आंत से अवशोषण हो जाता है।

मोनेासैक्केराइड तीन प्रकार के होते है यथा- ग्लूकोज, फैक्ट्रेाज एवं सामान्यतया ग्लेक्टोज। इनमें फैक्ट्रोजफलों की शर्करा को कहते है।

डाइसैक्केराईड :

मोनोसैक्केराइड में ये कुछ जटिल प्रकार के होते है। इनका निर्माण दो मोनोसैक्केराइड के द्वारा बना होता है। आहार नाल के अन्तर्गत इनके पाचन हेतु एन्जाइम्स की आवश्यकता होती है एन्जाइम्स के द्वारा इनका पाचन होता है। तदुपरान्त आंत से इनका अवशोषण होता है। सामान्यतयाः डाइसैक्केराइड चार प्रकार के होते है यथा-(1) इक्षु शर्करा (2) सुक्रोज (3) माल्टोज (4) लैक्टोज डाइसैक्केराइड आदि।

पोलीसैक्केराईड :  

दो से अधिक मोनोसैक्केराइड के संयोजन से बने होते है। इनकी बनावट बहुत ही जटिल प्रकार की होती है। सभी प्रकार के पोलीसैक्केराइड का पाचन नहीं हो पाता इसलिये सब्जियों के रेशे (फाइबर) एवं सेल्युलोज बिना पचे ही आहार नली द्वारा गुदमार्ग से बाहर जाते हैं। पाचन क्रिया के समय एन्जाइम्स द्वारा कुछ जटिल कार्बोहाइड्रेट मोनेासैक्केराइड के रूप में विघटित हो जाते हैं जो शीघ्र घुलनशील होते हैं एवं आसानी से उनका आंतो द्वारा अवशोषण किया जाता है।

स्टार्च :

स्टार्च की सामान्यतः उत्पत्ति हरे पेड़-पौधों से होती है। स्टार्च जल में घुलनशील नहीं होते है। प्रायः सभी प्रकार के अनाजों में यथा-गेंहू का आटा, चावल, मक्का, जौ तथा दालों में और आलू, अरबी, शक्करकन्द, सहित जमीन के अन्दर होने वाली सब्जियों में स्टार्च अधिक पाया जाता है।

ग्लाइकोजन :  

ग्लाइकोजन को सफेद पावडर के रूप में,जन्तुओं की पेशियों एवं यकृत में उपलब्ध रहने वाला स्टार्च होता है। जब शरीर में शर्करा की आवश्यकता नहीं होती तो जन्तु स्टार्च के रूप में यकृत एवं पेशियों में संग्रहित हो जाता है। शरीर के क्रियाशील होने पर आवश्यकतानुसार ग्लाइकोजन पुनः ग्लूकोज के रूप में परिवर्तित हो जाता है। इस प्रक्रिया में इन्सुलिन का बहुत महत्त्व है।

सेल्युलोज :  

सेल्युलोज के द्वारा पेड़ पौधों की भित्तियाँ बनी हुयी होती है। अतः सैल्यूलोज नामक कार्बोहाइड्रेट फल सब्जियों, सहित अनाजों में अधिक पाया जाता है सेल्युलोज का भोजन के साथ सेवन करने से आहार नली की क्रमाकुंचन गतियाँ बढ जाती है। जिससे आहार द्रव्य पाचित होकर सुगमता से मल निष्कासन होता है। अतः परिणामस्वरूप कब्ज दूर होता है।

प्रोटीन :

प्रोटीन दो प्रकार का होता है।

1.     जन्तु प्रोटीन

2.     वनस्पति प्रोटीन

जन्तु प्रोटीन- इसे उच्च श्रेणी की प्रोटीन मानते हैं इसलिये इसे प्रथम श्रेणी की प्रोटीन कहा जाता है। जानवरों से प्राप्त उत्पाद उदाहरण के लिए दूध, अण्डा, मांस तथा मछली आदि में जन्तु प्रोटीन निम्नानुसार पायी जाती है।

वनस्पति प्रोटीन- यह द्वितीय श्रेणी का प्रोटीन है। इसमें प्रथम श्रेणी के समान स्वास्थ्य संरक्षण हेतु सभी आठ आवश्यक अमीनों एसिड नहीं पाये जाते है, तथा इनका पाचन भी आसानी से नहीं होता है।

वनस्पति प्रोटीन

1. दालों में - उड़द, अरहर, मूंग, मटर, सोयाबीन आदि।

2. ड्राईफ्रूट में - मूंगफली, बादाम, काजू।

3. अनाजों में - गेंहू, मक्का, जौ, चना,

4. ग्लूटेन - यह प्रोटीन गेंहू के आटे सहित अन्य अनाजेां में पायी जाती है।

5. लैग्यूमिन - मूंग, मसूर, सेम, तथा सोयाबीन आदि में लैग्यूमिननामक वनस्पति प्रोटीन पायी जाती है।

प्रोटीन की उपयोगिता

1. शरीर में शक्ति संवर्धन हेतु

2. शरीर की वृध्दि एवं विकास हेतु

3. शरीर के अंगावयवों के रचना हेतु

4. शरीर के ऊतकों की टूट-फूट एवं मरम्मत हेतु

5. रक्त निर्माण हेतु

6. हार्मोन्स एवं एन्जाइम निर्माण हेतु

7. प्लाज्मा प्रोटीन के निर्माण हेतु

8. एन्टी बाडियों के निर्माण हेतु

वसा :

वसाऐं ठोस एवं द्रव्य दो प्रकार की होती है।

1.     ठोस वसा- घी एवं मक्खन आदि।

2.     द्रव्य वसा- तेल आदि।

वसाओं को भी प्रोटीन की तरह सामान्यतः दो वर्गों में विभाजित किया जाता हैः- 1. जन्तु वसा 2. वनस्पति वसा

1. जन्तु वसा-

·         दूध, पनीर, घी, अण्डों की जर्दी, मांस, मछली का तेल, मक्खन आदि।

·         पशुओं की चर्बी में जन्तु वसा सर्वाधिक होती है।

·         जन्तु वसा में विटामिन ए तथा डी पाये जाते हैं।

2. वनस्पति वसा-

सरसों, मूंगफली, नारियल, और तिल का तैल, काजू, बादाम, अखरोट आदि सूखे मेवों में प्राप्त होती है |

वसाओं का कार्य-

·         ऊष्मा एवं ऊर्जा उत्पन्न करना।

·         विटामिन ए,डी,ई और के,  का वहन एवं अवशोषण

·         शरीर की वृध्दि करना

·         त्वचा को स्वस्थ रखना।

 

खनिज लवण :

ये लगभग 20 प्रकार के होते हैं। मानव शरीर में होने वाली सभी जैविक क्रियाओं के लिये खनिज लवण परमावश्यक होते हैं। मुख्य खनिज लवण निम्न हैः- कैल्सियम, फास्फोरस, लौह, सोडियम, पोटेशियम, मैग्नीशियम, आयोडिन, एवं गंधक इत्यादि।

1. कैल्सियम-

·         हड्डियाँ एवं दांतों के निर्माण के लिये।

·         बच्चों में व्यस्कों से अधिक आवश्यकता।

·         हड्डियों की मजबूती हेतु विटामिन डी एवं फास्फोरस की आवश्यकता

·         हृदय की गति के नियंत्रण हेतु।

·         मांसपेशियों को क्रियाशील बनाने हेतु।

·         सामान्य व्यक्ति को प्रतिदिन 1 ग्राम कैल्सियम की आवश्यकता ।

प्राप्ति स्त्रोतः- दूध, दही पनीर, अन्डे की जर्दी एवं मछली बादाम, एवं मूली गोभी के पत्तों में, मैथी एवं दालों में पाया जाता हैं।

2. फास्फोरस-

·         शरीर की प्रत्येक कोशिका में होता है।

·         कैल्शियम एवं विटामिन डीके साथ मिलकर हड्डी एवं दांतों का निर्माण।

·         तंत्रिका तंत्र को स्वस्थ बनाये रखने हेतु।

·         प्रतिदिन 1-5 ग्राम सामान्य व्यक्ति में आवश्यकता होती हैं।

·         गर्भवती स्त्री व बच्चों में युवा में अधिक आवश्यकता होती हैं।

 

प्राप्ति स्त्रोतः- सर्वाधिक प्राप्ति मछलियों में , सेव, पत्त्ता गोभी, पालक, मूली, गाजर, सोयाबीन, मक्का के भुट्टे, आलू, दूध पनीर अण्डे की जर्दी एवं मांस आदि में पाया जाता हैं।

3. लोहा

·         इससे रक्त में हीमोग्लोबीन बनता है।

·         रक्त निर्माण हेतु परम आवश्यक है।

·         गर्भिणी को गर्भावस्था में अधिक आवश्यकता

प्राप्ति स्त्रोत- लोहा, सेव, पालक, पत्त्ता गोभी, मटर, बथुआ, मैथी, गाजर , खीरा, पोदीना, प्याज, टमाटर, अनार, अंगूर, खजूरा,, आलू, शकरकन्द, अंडे की जर्दी एवं मांस व मछली में पाया जाता है।

आवश्यकता- प्रतिदिन एक व्यस्क व्यक्ति हेतु 20 से 30 मि.ग्रा.

4.पोटेशियम-

·         पोटेशियम यह तंत्रिका जन्य आवेगों के संचारण के लिये आवश्यक है तथा पेशियों के संकुचन में भाग लेता है।

·         पोटेशियम के द्वारा अम्ल/क्षार का संतुलन किया जाता है।

·         इलैक्ट्रोलाईट्स का संतुलन बनाये रखने में सहायक

·         पेशियों को मजबूत बनाता है।

·         हृदय पेशी के कार्य को सामान्य बनाता है।

·         चक्कर, प्यास एवं भ्रम को दूर करता है।

·         यह सोडियम तथा क्लोराइड के साथ मिलकर अन्तः कोशिकी परासरणी दाब को सामान्य बनाये रखता है।

आवश्यक मात्रा- प्रतिदिन सामान्य व्यस्क हेतु 4 ग्राम पोटेशियम

5.मैग्नीशियम-

मैग्नीशियम एक सफेद खनिज पदार्थ है जो शरीर में सर्वाधिक रूप से हड्डियों एवं दांतों में पाया जाता है।

·         शरीर के मेटाबोल्जिम में सहायक हेाता है।

·         हाथ पैरों मे कम्पन्न को रोकता है।

·         मानसिक अवसाद ;डमदजंस क्मचतमेेपवदद्ध को दूर करता है।

प्राप्ति स्त्रोत-

·         सामान्यतः सभी खाद्य पदार्थों में पाया जाता है।

·         केले में सर्वाधिक पाया जाता है।

·         अनाजों में सब्जियों तथा फलों से प्राप्त होता है।

6.आयोडीन

·         यह थायोराइड ग्रंथि को सामान्य बनाये रखने में उपयोगी है।

·         गलगण्ड या घेंघा रोग को दूर करता है।

·         मन्दबुध्दि को रोकता है।

·         शारीरिक एवं मानसिक विकास करने में सहायक होता है।

प्राप्ति स्त्रोत-

·         प्याज में सर्वाधिक पाया जाता है।

·         समुद्र के नमकीन पानी में पाया जाता है।

·         समुद्री मछलियों में पाया जाता है।

·         आयोडीन युक्त मिट्टी में पाया जाता है।

 7. गंधक

-इसे सल्फर भी कहा जाता है। यह सभी प्रोटीन पदार्थों द्वारा उपलब्ध होता है। यह सभी ऊतकों (टिश्यू) की स्वस्थता के लिए आवश्यक होता है।

5. विटामिन

·         भोजन के पूर्ण चयापचम (मेटोबोलिज्म) के लिये उपयोगी

·         संतुलित भोजन में सभी विटामिन्स उपयोगी

·         गर्भवती स्त्रियों में गर्भ के विकास में उपयोगी

·         बढते हुए बच्चों में शारीरिक विकास में उपयोगी

·         विटामिन ए,डी,ई तथा के वसा में घुलनशील है।

·         विटामिन ए वृध्दि कारक एवं संक्रमण रोधी है।

·         विटामिन डी कैल्सियम को बढाता है।

·         विटामिन डी1, डी2 तथा डी 3 तीन रूप में होता है, जो अस्थि एवं दांत का निर्माण करता है।

·         विटामिन डी रिकेट्स अर्थात बालकों के अस्थि विकार को रोकता है।

·         विटामिन ई संतानोत्पत्ति  की शक्ति देता है।

·         विटामिन ई पुरूषों में नपुंसंकता एवं स्त्रियों में बन्ध्यता को दूर करता है।

·         विटामिन के रक्त को जमाने में आवश्यक है।

·         विटामिन बी1 तन्त्रिका शोथ को दूर करता है।

·         विटामिन बी2 चर्म रोगों से शरीर की रक्षा करता है।

·         विटामिन बी6 यह गर्भावस्था के प्रारम्भिक तीन माह में उल्टियों को रोकता है।

·         विटामिन बी6 त्वचा, स्नायु एवं मांसपेशियों को स्वस्थ रखता है।

6. फोलिक एसिड

·         यह विटामिन बी12 के साथ मिलकर रक्त निर्माण करता है।

·         विटामिन बी12 -यह रक्तकल्पता (खून की कमी) को रोकता है।

·         बायोटिन त्वचा की सूजन तथा नेत्र श्लेषमाकला की सूजन को दूर करता है।

·         विटामिन सी यह रक्तवाहिनियों को फटने से रोकता है।

·         विटामिन सी संक्रमण को दूर कर इम्यूनिटीको बढाता है।

·         विटामिन सी स्कर्वी नामक रोग को दूर करता है।

विटामिनों की प्राप्ति के स्त्रोतः- विटामिन ए दूध, पनीर,घी, मक्खन, तैल, लहसुन, एवं टमाटर तथा गाजर, हरी पत्तियों की सब्जियों में पत्ता गोभी, मैथी, पालक तथा केला आम, सन्तरा, पपीता आदि फलों में पाया जाता है।

विटामिन डी सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों की क्रिया से त्वचा में बनता है। डी2 पेड़, पोधों में बनता है, तथा डी3 दूध,पनीर, घी, मक्खन, अण्डा, मछली के लिवर में पाया जाता है। विटामिन ई अंकुरित गेहूँ, मक्का, दूध, मक्खन, जैतून तथा नारियल तेल एवं हरी सब्जियों में पाया जाता है।विटामिन केसोयाबीन, मछली के लिवर, टमाटर आदि में पाया जाता है। लगभग सभी विटामिन न्यूनाअधिक मात्रा में दूध, यीस्ट, पनीर, अण्डे की जर्दी , सोयाबीन, मटर, हरी सब्जियों , फलों, मूंगफली अनाजों एवं दालों मांस रसों एवं मछलियों में पाये जाते है। विटामिन के की कमी से रक्त स्कंदन में कमी होने से रक्त स्त्राव लम्बे समय तक होता रहता है।

जल में घुलनशील विटामिन- संतुलित आहार के अंतर्गत अच्छे स्वास्थ्य के लिये विटामिन आवश्यक है। विटामिन बी1 अथवा एन्यूरीन हाईड्रोक्लोराइड। यह विटामिन शरीर को स्वस्थ एवं विकास करने में परमावश्यक होता है। कार्बोहाइड्रेट का चयापचय  हेतु महत्त्वपूर्ण है।

प्राप्ति स्त्रोतः- हरी सब्जियां, हरी मटर, दालों में, अनाज के छिलकों में, दूध अण्डों में, काष्ठ फलों सहित चावल की भूसी आदि में पाया जाता है।

विटामिन बी 1 की कमी से तंन्त्रिका शोध हो जाता है, मानसिक मनोअवसाद हो जाता है। मन्द बुध्दि हो जाती है। अधिक समय तक कमी रहने से बेरी-बेरी नामक रोग हो जाता है जिससे पेरों में सुन्नता एवं चीटियां चलने जैसी पैरो मे अनुभूति होती है। विटामिन बी2 अथवा रिबोफलेविन यह चर्म रोगों से शरीर की रक्षा करता है। बालों को झड़ने से रोकता है।

प्राप्ति स्त्रोतः- दूध, यीस्ट, पनीर, अण्डे की सफेदी, सोयाबीन मटर, हरी सब्जियाँ, फलों, मूंगफली एवं दालों सहित अनाजों में पाया जाता है।

विटामिन बी2 की कमी तथा मक्का अधिक खाने वालों में त्वचा की सूजन, त्वचा फटी-फटी सी, जिह्वाशोथ या जीभ पर छाले हो जाते है। दृष्टि मन्द हो जाती है।

विटामिन बी6 की कमी से गर्भावस्था के प्रथम तीन माह में प्रातः काल महिला को उल्टियाँ  होती है, त्वचा संबंधी विकार चिड़चिडापन अनिद्रा आदि रोग होते हैं ।

इसी प्रकार संतुलित आहार के अन्तर्गत विटामिन बी12 अथवा सायनोकोबालामीन, बायोटिन, विटामिन सी या एस्कोर्बिक एसिड अथवा एन्टी स्कोर ब्यूटिक विटामिन जो कि नींबू , सन्तरा, मौसम्मी, आंवला, टमाटर, प्याज, शलजम, बन्दगोभी, हरी सब्जियां ताजे फलों तथा अंकुरित अनाजेां में पाया जाता है।

6.जल या पानी

1 भाग आक्सीजन एवं 2 भाग हाईड्रोजन के रासायनिक संयोजन से बना एक तरल यौगिक है। संतुलित आहार में जल भोजन को सुपाचित करने में सहायता करता है यह रक्त को तरल बनाये रखता है। जीवित कोशिकाओं में प्रोटोप्लाज्मआवश्यक तथा मुख्य घटक होता है। विजातीय द्रव्यों, अपशिष्ट पदार्थों को घेालकर मल-मूत्र श्वास, तथा पसीने के द्वारा जल शरीर से बाहर निकलता है।

प्राप्ति स्त्रोतः- एक तो साधारण जल के रूप में जिसे हम पीते है, दूसरा फल, दूध सब्जियों के द्वारा सेवनोपरान्त प्राप्त जल । सब्जियों में तथा फलों मे 75 प्रतिशत तथा तरबूज (मतीरा) में सर्वाधिक 95 प्रतिशत जल होता है। उल्टी दस्त (हैजा) होने पर निर्जलीकरण हो जाता है। जल की कमी से पथरी बनने की सम्भावना रहती है। तथा रक्त चाप सामान्य से कम हो जाता है।