VRINDAVAN INSTITUTE OF NATUROPATHY AND YOGIC SCIENCES is an authorized Work Integrated Vocational Education Center (WIVE) of Asian International University in India.

कृत्रिम आहार एवं इसके दुष्प्रभाव

By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'

डॉक्टर और पोषण विशेषज्ञ कम उम्र के लड़की-लड़कों को ऐसे रोगों का शिकार होने के लिए जो आमतौर पर बड़ी उम्र के लोगों को होते हैं, फास्ट फूड के बढ़ते चलन को जिम्मेदार मानते हैं। महानगरों के स्कूलों मे पढ़ने वाले 60 फीसदी बच्चे सिर्फ फास्ट फूड पर चलते हैं, बल्कि यह कहना ज्यादा उचित होगा कि उन्हें फास्ट फूड का चस्का लगा हुआ है। नतीजा बड़ा ही खौफनाक है। फास्ट फूड खाने के आदी बच्चे ऐसी बीमारियों के शिकार हो रहे हैं जो बुढ़ापे की बीमारियाँ समझी जाती हैं।

पहले के जमाने में बच्चे गेहूँ, चावल, दही और हरी सब्जियों से बने भोजन पर पले थे लेकिन इन दिनों ये चीजें इतिहास का हिस्सा बन चुकी हैं। आज के शहरी क्षेत्रों में रहने वाले किशोर-किशोरियों के पसंदीदा भोजन हैं बर्गर, पिज्जा, फ्रेंच फ्राई, छोले-भटूरे, समोसे और न जाने ऐसी ही कितनी ही चीजें। त्वचा पर आने वाले चकत्तों से लेकर पेट की मरोड़ तक तकरीबन 50 रोग फास्ट फूड की देन है। वे कहते हैं कि तकरीबन 60 फीसदी बच्चों की बीमारियाँ उनके गलत खानपान की वजह से होती हैं।

बढ़ते बच्चों को रोजाना तकरीबन 1500 कैलोरी की जरूरत है, जिसका आधा कार्बोहाइट्रेड, 20 फीसदी वसा और 30 फीसदी प्रोटीनों का होना चाहिए। लेकिन बाजार में फास्ट फूड के नाम पर जो चीजें सहज उपलब्ध हैं, उनमें शर्करा और चर्बी तो होती है, लेकिन प्रोटीन लगभग नदारद होती है। यही नहीं, उनमें पड़ने वाले कृत्रिम नमक और प्रिजर्वेटिव्स स्वास्थ्य के लिए जहर जैसे होते हैं। प्रोटीन की कमी उनमें कितनी ही स्वास्थ्य समस्याएँ पैदा करती हैं।