नौलि एक आमाशयी क्रिया है | इसके अंतर्गत आमाशय गुहा के रेखीय तल की मांसपेशियों तथा मलाशय की मांसपेशियों को सिकोड़ कर घुमाने (नचाने) की क्रिया सम्पादित की जाती है | इसके लिए निम्न तैयारियां की जाती हैं-
1.अग्निसार :
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पैरों को आपस में 2-3 फीट की दूरी पर रखते हुए खड़े हो जाएँ
तथा कमर के हिस्से से आगे की ओर झुकें तथा हाथों को सीध में रखते हुए इन्हें
जंघाओं पर रखें |
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इस मुद्रा में आकर स्वयं को सहज बनायें |
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उदर की मांसपेशियों को सिकोड़ कर बलपूर्वक मुख से श्वास को पूर्णतया
बाहर निकाल दें |
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एक ही साथ जंघाओं पर हाथों से दबाब बनायें, पसलियों को ऊपर
उठायें तथा हाथों, कन्धों एवं गर्दन की मांसपेशियों में खिंचाव लायें |
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इसके परिणामस्वरूप झिल्ली ऊपर की ओर उठती है जिससे उदर में
अवतल की आकृति उत्पन्न होती है क्योंकि यह अन्दर की तरफ दब जाता है, जैसे मेरुदण्ड
पर दबाब बना रहा हो |
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श्वास को छोड़ते हुए आमाशय की दीवार को बलपूर्वक पंप की तरह
बाहर तथा अन्दर की तरफ लाने की क्रिया यथासंभव अनेक बार संपन्न करें |
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अमाशय की दीवार में हरकत पैदा करने के समय श्वास लेने तथा
छोड़ने की क्रिया मूक रूप से होनी चाहिए | ऐसा प्रतीत होना चाहिए जैसे श्वसन क्रिया
हो रही है, जबकि वास्तव में यह नहीं हो रही होती है |
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अमाशय की दीवार को शांत स्थिति में लायें, बंध को मुक्त कर
दें तथा श्वास लेते हुए ताड़ासन की मुद्रा में आकर विश्राम करें |
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इस क्रिया को कुछ एक बार दोहराएं |
लाभ :
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यह क्रिया उदर के अंगों के स्वास्थ्य में अपेक्षित सुधार
लाने में मदद करती है, इसकी मालिश करती है, इससे जुड़ी मांसपेशियों को उत्तेजित कर
उन्हें बल प्रदान करती है |
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शरीर के समूचे धड़ वाले हिस्से में रक्त प्रवाह में वृद्धि
करती है तथा आन्तरिक अंगों को मजबूती प्रदान करती है |
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कब्ज, अपच तथा मधुमेह एवं उदर तथा अमाशय सम्बन्धी सभी
विकारों में लाभदायक है |
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यह विषाद, दबाब तथा सुस्ती व आलस्य को दूर करती है |
2. मध्यमा नौलि :
उड्डीयान मुद्रा ग्रहण कर उदर के उस भाग को बाहर तथा अन्दर
की तरफ धक्का दें जो श्रोणि अस्थि के ठीक ऊपर होता है | इससे उदर के मध्य भाग की
मांसपेशियों में सिकुड़न पैदा होती है जबकि उदर के अन्य भागों की मांसपेशियां शिथिल
बनी रहती है |
3. दक्षिण और बाम नौलि :
दक्षिण नौलि (दायीं) क्रिया में मलाशय की दीवार के दायें
हिस्से को सिकोड़ा जाता है तथा बाकी हिस्से की मांसपेशिययों को शिथिल छोड़ दिया जाता
है | बाम नौलि (बायीं) के लिए सिर्फ बाएं हिस्से को सिकोड़ा जाता है तथा मलाशय की
दीवार के बाकी हिस्से की मांसपेशियों को शिथिल रखा जाता है |
जब ऊपर वर्णित तीन प्रकार की नौलि का पूर्ण अभ्यास हो जाए
तो उसके पश्चात् मलाशय से सम्बंधित मांसपेशियों को दक्षिणावर्त तथा वामावर्त दिशा
में घुमाया जाता है | यह नौलि चालन कहलाता है |