आहार का बीमारी से बहुत महत्वपूर्ण संबंध होता है। रोग, रोग की गम्भीरता, रोगी के पोषणस्तर के अनुसार आहार को सुधारा जा सकता है। अत: एक साधारण, स्वस्थ्य व्यक्ति द्वारा लिये जानेवाले आहार में कुछ विशेष बदलाव लाकर उसे रोग की आवश्यकतानुसार सुधारा जा सकता है।आहार में बदलाव या सुधार की मात्रा रोग के प्रकार व गम्भीरता पर निर्भर है।रोग की अवस्था में आहार द्वारा प्रमुख रूप से रोग का उपचार अथवा रोग के उपचार मेंसहायता प्रदान की जाती है। इस आहार को उपचारात्मक पोषण (Therapeutic Nutrition) तथा इसविज्ञान को आहारीय उपचार (Diet Therapy) कहते हैं।
उपराचात्मक आहार रोगी की वह
परिचर्या है जिसमें विशिष्ट प्रकार के आहार का आयोजनपोषण शास्त्र के विज्ञान एवं
कौशल द्वारा रोगी के लक्षण के आधार पर उपचार के उद्देश्य से होताहै। एक स्वस्थ्य
व्यक्ति की तरह ही रोगी को भी सामान्य पोषक तत्व निश्चित अनुपात में लेनेआवश्यक
हैं जिससे शारीरिक क्रियायें सामान्य रूप से चलती रहें। यदि रोग की स्थिति में
पोषक तत्वउचित मात्रा में न मिलें तो रोगी को स्वास्थ्य लाभ होने में कठिनार्इ
उत्पन्न हो जाती है और रोग कीजटिलता में भी वृद्धि हो जाती है। विभिन्न रोग जैसे
ज्वर, चोट, संक्रमण, चयापचयी
अवरोध आदि किसी भी स्थिति में किसी नकिसी पोषक तत्व की न्यूनता उत्पन्न हो जाती
है। पाचन क्षमता षिथिल होने से पोषक तत्वों काअवषोषण भी प्रभावित होता है। रोग की
अवस्था में विभिन्न पोषक तत्वों की आवश्यक मात्रा में भीवृद्धि हो जाती है जिससे
उपयुक्त और सन्तुलित आहार द्वारा पोषण प्राप्त करना आवश्यक होता है।उपचारात्मक
पोषण रोगहर (curative)
तथा रोग रोधक क्षमता (immunity)
को बढ़ाने में भी सहायकहै।
प्रत्येक रोग में विशेष प्रकार
के आहार की आवश्यकता होती है। रोग की स्थिति में किसीपोषक तत्व को कम किया जाना
आवश्यक है तो दूसरी ओर किसी पोषक तत्व की माँग में वृद्धि होजाने से उसे अधिक
मात्रा में सम्मिलित करना आवश्यक होता है। रोग, कुपोषण एवं कमजोरी यहएक चक्र के रूप में चलती है। यदि रोग
की स्थिति में पोषण पर ध्यान दिया जाये तो रोग में होनेवाली दुर्बलता एवं कमजोरी
को रोका जा सकता है। अत: रोगी को उचित एवं सन्तुलित आहार देनाआवश्यक है। यदि रोगी
को उचित पोषण नहीं मिलता तो रोग ठीक होने में भी अधिक समय लगताहै और उसे अन्य
बीमारियां भी हो सकती हैं। उदाहरणार्थ –
मधुमेह में उपचारात्मक पोषण का विशेषस्थान है। इसी प्रकार रोग के बाद की
स्थिति (recovery
condition) में भी उपचारात्मक पोषण काफी लाभप्रद सिद्ध होता है।