VRINDAVAN INSTITUTE OF NATUROPATHY AND YOGIC SCIENCES is an authorized Work Integrated Vocational Education Center (WIVE) of Asian International University in India.

योग का उद्देश्य

By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'

योग जीवन जीने की कला है, साधना विज्ञान है। मानव जीवन में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। इसकी साधना व सिद्धान्तो में ज्ञान का महत्व दिया है। इसके द्वारा आध्यात्मिक और भौतिक विकास सम्भव है। वेदो, पुराणो में भी योग की चर्चा की गयी है। यह सिद्ध है।, कि यह विद्या प्राचीन काल से ही बहुत विशेष समझी गयी है।, उसे जानने के लिए सभी ने श्रेष्ठ स्तर पर प्रयास किये है और गुरूओ के शरण मे जाकर जिज्ञासा प्रकट की व गुरूओं ने शिष्य की पात्रता के अनुरूप योग विद्या उन्हे प्रदान की; अतः आज के विद्यार्थियो का यह कर्तव्य है, कि वह इन महत्माओ विद्वानो द्वारा प्रदत्त विद्या को जाने और चन्द सुख व भौतिक लाभ को ही प्रधानता न देते हुए यह समझे कि यह श्रेष्ठ विद्या इन योगियों ने किस उद्देश्य से प्रदान की।आज का मानव जीवन कितना जटिल है, उसमें कितनी उलझने और अशंति है,वह कितना तनावमुक्त और अवद्रुय हो चला है। यदि किसी को दिव्य दृष्टि मिल सकती होती तो वह देख पाता कि मनुष्य का हर कदम पीड़ा की कैसी अकुलाहट से भरा है,उसमे कितनी निराशा, भय, व्याकुलता है। इसीलिए यह आवश्यक है कि हमारा हर पग प्रसन्नता का प्रतीक बन जाए, उसमे पीड़ा का अंश - अवशेष न बचे। इसके लिए हमे वह विद्या समझनी होगी कि अपने प्रत्येक कदम पर चिंतामुक्त और तनावरहित कैसे बनते चले और दिव्य शंति एंव समरसता को किस भंाति प्राप्त करे। इसी रहस्य को अजागर करना ही योग अध्ययन का मुख्य उद्देश्य है।

योग अध्ययन का मुख्य उद्देश्य ऐसे व्यक्तियो का निर्माण करना है जिनका भावनात्मक स्तर दिव्य मान्यताओ से, आकांक्षाओ से दिव्य योजनाओ से जगमगाता रहे। जिससे उनका चिन्तन और क्रियाकलाप ऐसा हो जैसा कि ईश्वर भक्तों का, योगियों का होता है। क्योंकि

ऐसे व्यक्तियो में क्षमता एवं विभूतियां भी उच्च स्तरीय होती है। वे सामान्य पुरुष्ंाो की तुलना में निस्थित ही समर्थ और उत्कृष्ट होते है, और उस बचे हुए प्राण-प्रवाह को अचेतन के विकास करने में नियोजित करना हैं। प्रत्याहार, धारणा, ध्यान ,समाधि जैसी साधनाओ के माध्यम से चेतन मास्तिष्क को शून्य स्थिति में जाने की सफलता प्राप्त होती है।

योग विद्या के यदि अलग-अलग विषयों पर दृष्टिपात करते है तो पाते है कि हठयोग साधना का उद्देश्य स्थूल शरीर द्वारा होने वाले विक्षेप को जो कि मन को क्षुब्ध करते है, पूर्णतया वश में करना है। स्नायुविक धाराओ एंव संवेगो को वश में करके एक स्वस्थ शरीर का गठन करना है। यदि हम अष्टांग योग के अन्तर्गत आते है तो पाते है कि राग द्वेष, काम, लोभ, मोहादि चिन्ता को विक्षिप्त करने वाले कारको को दूर करना यम, नियम का मूल उद्देश्य है।

स्थूल शरीर से होने वाले विकर्षणों को दूर करना आसन, प्राणायाम का मुख्य उद्देश्य हैै। चित्त को विषयो से हटाकर आत्म-दर्शन के प्रति उन्मुख करना प्रत्याहार का उद्देश्य है। धारणा का उद्देश्य चित्त को समस्त विषयों से हटाकर स्थान विशेष में उसके ध्यान को लगाना है। धारणा स्थिर होने पर क्रमशः वही ध्यान कही जाती है, और ध्यान की पराकाष्टा समाधि है। समाधि का उच्चतम अवस्था में ही परमात्मा के यथार्थ स्वरूप का प्रत्यक्ष दर्शन होता है, जो कि पूर्व विद्वानो के अनुसार मनुष्य मात्र का परम लक्ष्य, परम उद्देश्य है।

कुछ ग्रन्थो मे भी योग अध्ययन के उद्देश्य को समझाते हुए मनीषियों ने कहा है, कि

द्विज सेतिल शारवस्य श्रुलि कल्पतरोः फलम्।

शमन भव तापस्य योगं भजत सत्तमाः।। गोरखसंहिता

अर्थात् वेद रूपी कल्प वृक्ष के फल इस योग शास्त्र का सेवन करो, जिसकी शाख मुनिजनो से सेवित है, और यह संसार के तीन प्रकार के ताप को शमन करता है।

यस्मिन् ज्ञाते सर्वभिंद ज्ञातं भवति निश्यितम्।

तस्मिन् परिप्रमः कार्यः किमन्यच्छास प्रस्य माषितम्।।(शिव संहिता)

जिसके जानने से सब संसार जाना जाता है ऐसे योग शास्त्र को जानने के लिए परिश्रम करना अवश्य उचित है, फिर जो अन्य शास्त्र है, उनका क्या प्रयोजन है? अर्थात् कुछ भी प्रयोजन नही है।

योगात्सम्प्राप्यते ज्ञाने योगाद्धर्मस्य लक्षणम् ।

योगः परं तपोज्ञेयसमाधुक्तः समभ्यसेत्।।

योग साधना से ही वास्तविक ज्ञान की प्राप्ति होती है, योग ही धर्म का लक्षण है, योग ही परमतप है। इसलिए योग का सदा अभ्यास करना चाहिए संक्षेप में कहा जाए तो जीवात्मा का विराट चेतन से सम्पर्क जोड़कर दिव्य आदान प्रदान का मार्ग खोल देना ही योग अध्ययन का मुख्य उद्देश्य हैं।