VRINDAVAN INSTITUTE OF NATUROPATHY AND YOGIC SCIENCES is an authorized Work Integrated Vocational Education Center (WIVE) of Asian International University in India.

आहार का कच्चा रूप

By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'

प्राचीन काल से हमारे देश में अपक्वाहार अर्थात् फूल, फल, कन्दमूल, अंकुरित अन्न एवं धारोष्ण दूध आदि को स्वास्थ्यप्रद माना जाता था । ऋषि भारद्वाज के आश्रम में जब श्रीराम जी, लक्ष्मण व सीता सहित गए तो मुनि ने उनका स्वागत कंद, मूल, फल व अंकुर से किया ।

कंदमूल फल अंकुर नीके, दिए आनि मुनि मनहुँ अमी के ।

रामचरित–/अयोध्या/106/1

धीरेधीरे मनुष्य भोजन पकाने की क्रियाओं को बढ़ाता गया । पक्वाहार का प्रयोग बढ़ते ही मानव शरीर अधिक रोगी होने लगा । वह सभ्यता के विकास के साथसाथ अधिकाधिक उबला, तला एवं बासी भोजन करने लगा । भोज्य पदार्थों को संरक्षित करने के अनेकानेक तरीके निकलने लगे ।

पक्व भोजन में प्राप्त खाद्योज तथा लवण आदि नष्ट हो जाते हैं। अपक्वभोजी के पेट में कभी किसी तरह की दुर्गन्धित हवा (गैस) पैदा नहीं होती

है । उसके पेट में भोजन अधिक देर तक पड़ा नहीं रहता है । जल्दी ही आँतों में चला जाता है और शीघ्रता से पच जाता है । उसे भारीपन का अनुभव नहीं होता है ।

भारत में सुबह कच्चा भोजन और शाम को पका हुआ भोजन करने की परम्परा रही है । बाद में स्वादलोलुपों ने रोटी, दाल, चावल को कच्चा भोजन और पूड़ी, पराँठा, मालपुआ आदि को पक्का भोजन बना दिया । यह गलत है ।

अपक्वाहार या कच्चा भोजन क्या है ?, कच्चा भोजन जैसा कि उसका नाम है,सभी प्रकार के फल व सभी प्रकार की सब्जियाँ, सभी अनाज व सूखे मेवे कच्चे भोजन में आते हैं । अनाजों को अंकुरित करके खाया जा सकता है ।

अपक्व भोजन को जीवित भोजन माना जाता है । पुराना अनाज भी बोया जाए तो वह उग जायेगा, अंकुरित किया जाये तो वह अकुंरित भी हो जायेगा किन्तु वही बीज यदि एक मिनट भी अग्नि पर रख दिया जाये तो वह अंकुरण क्षमता खो बैठता है, वह उग नहीं सकता । अत: अपक्व भोजन को जीवित भोजन माना जाता है और पक्व भोजन को मृत भोजन माना जाता है । पका हुआ भोजन पूर्ण पोषक तत्त्वों को प्रदान नहीं कर सकता है । पके हुए भोजन अर्थात् मृत भोजन से निर्मित कोषाणुओं में रोगों से बचाव की शक्ति कम होती है ।

इसी के साथ पक्व भोजन में कई वस्तुएँ मसाले, तेल, घी आदि मिलाकर पकाया जाता है जिससे भोजन और भी गरिष्ठ हो जाता है और पाचन शक्ति पर अधिक भार पड़ता है ।

अपक्व भोजन में सभी प्रकार के फल, सब्जी, शाक, सूखे मेवे व अकुंरित अन्न आते हैं । अंकुरित अन्न में सभी प्रकार के विटामिन्स सुरक्षित रहते हैं जबकि उसी अन्न को पका देने पर अनेक उपयोगी पदार्थ नष्ट हो जाते हैं । इस प्रकार हम जो भी भोजन खाते हैं उसका आधा भी पोषण नहीं मिलता है । अपक्वाहार में कम भोजन में पेट भर जाता है व पोषण अधिक मिलता है व शरीर स्वस्थ रहता है ।

इस प्रकार अपक्वाहार करने पर आधे भोजन से ही काम चलाया जा सकता है क्योंकि अपक्वाहार से जल्दी पेट भर जाता है और पोषण पूरा मिलता है । इस प्रकार अन्न की बचत तो होगी ही, धन और भोजन पकाने वाले समय की भी बचत होगी । हमें पक्वाहार से अपक्वाहार पर आने के लिए अपने भोजन में अपक्वाहार का समावेश करते जाना चाहिए । शबरी ने श्रीराम का स्वागत कन्दमूल तथा फलों से किया था,

कंदमूल फल सुरस अति, दिए राम कहुँ आनि । प्रेम सहित प्रभु खाए बारंबार बखानि । । रामचरित./अरण्य./दोहा/34

अर्थात् उन्होंने (शबरी) अत्यन्त रसीले और स्वादिष्ट कन्द, मूल और फल लाकर श्रीराम जी को दिए । प्रभु ने बारबार प्रशंसा करके उन्हें प्रेम सहित खाया ।

प्राचीनकाल में ऋषिमुनि हजारों वर्षों तक फलाहार करके ही जीवित रहते थे, वे अपनी तपस्या में लीन रहते थे । फलाहारी व्यक्ति अपनी निद्रा को भी जीत सकता है, क्योंकि भोजन को पचाने में जितनी शक्ति व्यय होती है, उसे पुन: एकत्र करने के लिए शरीर को निद्रा की अधिक आवश्यकता पड़ती है । लक्ष्मण जी ने दिनरात जाग कर श्रीराम जी की सेवा की ।

यदि बचपन से ही बच्चे को कच्चा आहार दिया जाए तो उसे वही स्वादिष्ट लगने लगेगा । जैसे, जिन परिवारों में मांसाहार नहीं किया जाता है वह बच्चे मांस, अण्डे आदि से दूर भागते हैं । अत: स्वाद उसी प्रकार विकसित होता है जिस प्रकार अन्य आदतें । इसी प्रकार बच्चे के थोड़ा बड़े होने पर उसे अपक्वाहार की खूबियाँ बता दी जाएँ तथा घर में ही वह सभी को अधिकाधिक अपक्वआहार ही करते हुए देखेगा तो वह स्वयं भी अपक्वआहार का भक्त हो जायेगा ।

स्थानीय उपलब्ध व मौसमी फल सस्ते, ताजे व अधिक उपयोगी होते हैं । प्रकृति आवश्यकतानुसार ही उस मौसम में व उस स्थान पर उस फल, सब्जी व अनाज को उत्पन्न करती है । मैदानी भाग में रहने वाले व्यक्ति के लिए अमरूद ही अधिक अच्छा होगा, सेब नहीं, क्योंकि सेब पहाड़ों में पैदा होता है । सेब पहाड़ के लोगों के लिए उपयुक्त है । इसी प्रकार जो अनाज या जो सब्जी या जो फल जिस मौसम में या जिस स्थान पर उत्पन्न होता है, उसे उस स्थान में व मौसम की उपज के अनुसार खाया जाना चाहिए ।

कल्पना करें कि यदि औद्योगीकरण का इतना विकास न हुआ होता या ट्रंासपोर्ट के इतने साधन न होते या भंडारण के गोदाम या कोल्डस्टोरेज न होते तो मनुष्य स्थानीय उपलब्ध व मौसम में उत्पन्न उपज का ही सेवन करता जो श्रेय भी है और प्रेय भी है ।

प्राकृतिकअग्नि तो सूर्य है । सूर्य से पका हुआ अन्न, फल आदि सुपाच्य व स्वास्थ्यवर्धक होता है । इसके अतिरिक्त ईंधन में पकाया गया भोजन भारी होता है ।

जैसा खावे अन्न, वैसा बने मन ।

अपक्वाहार शुद्ध, सजीव, सात्विक है, उसके उपयोग से विचार, शब्द एवं कार्य में क्रांति होकर अहिंसकविचार, स्वस्थव्यक्ति एवं सुंदरसमाज की रचना होकर समाज में रचनात्मक क्रांति आती है । समाज एवं राष्ट्र भी ईंधन व अन्न अभाव के संकट से मुक्त हो सकता है तथा सात्विक विचार बनने पर ही हर प्रकार के संकटों से मुक्त, हर प्रकार के रोगों से मुक्त समाज, राष्ट्र एवं विश्व की रचना संभव है ।

ध्यान रहे कि रोगी व्यक्ति अपक्व भोजन का अधिक प्रयोग न करें क्योंकि अपक्व भोजन शरीर में स्थित विकारों को तेजी से उभारता है और विकारों को निकालने का प्रयास करता है, उसे हम बीमारी समझ लेते हैं ।

अत: रोगी व्यक्ति के लिए सबसे अच्छा है कि वह अधिक से अधिक पकी हुई सब्जियों तथा पकी सब्जियों के सूप का सेवन करें ताकि शरीर स्थित विकार धीरेधीरे सहज रूप से निकल सकें । स्वस्थ होने पर अपक्व भोजन को अपने जीवन का अंग बनावें । फलों और सब्जियों को सेवन से पूर्व अच्छी तरह धो लेना चाहिए ।

आजकल कहींकहीं केले कार्बाइड में पकाते हैं । यह सेहत के लिए नुकसान है । इसी प्रकार सेब के ऊपर कुछ लोग मोम चढ़ा देते हैं जिससे सेब देखने में सुन्दर दिखे । इन चीजों से बचाव का एक ओर तो क्रान्तिअभियान चलाना चाहिए, दूसरी ओर हमें फलों को खरीदते समय जागरूक रहना होगा कि स्वाभाविक रूप से पके हुए फल ही लें ।