सामान्य प्रसव क्या है?
सामान्य प्रसव प्राकृतिक
प्रक्रिया के माध्यम से होने वाले बच्चे का जन्म है, जिसमें प्रसव के दौरान शिशु योनि से बाहर आता है। यह कम
क्षति पहुँचाने वाली और प्रकृति द्वारा नियोजित प्रक्रिया है।
सामान्य
प्रसव के लक्षण और संकेत
एक स्वस्थ युवा महिला आराम से
सामान्य प्रसव पीड़ा से गुजर सकती है। सक्रिय जीवन शैली, सामान्य
रक्तचाप और भ्रूण की स्थिति –
ये सभी एक सामान्य प्रसव के सूचक होते हैं।
·
30 से 34 सप्ताह के
बीच भ्रूण अपनी स्थिति बदलता है और इस दौरान उसका मस्तक या सिर नीचे की ओर आता है, जिससे पता
चलता है कि अब प्रसव होने वाला है। जब इसे देखा जाता है, तो ऐसा लगता
है कि बच्चा अपनी सामान्य स्थिति से नीचे चला गया है।
·
पेशाब करने की इच्छा बढ़ती है क्योंकि बच्चे का सिर श्रोणि
क्षेत्र पर दबाव बढ़ाता है और मूत्राशय पर दाब डालता है।
·
पीठ के निचले हिस्से में दर्द होगा, क्योंकि
भ्रूण उस पर दबाव डालना शुरू कर देता है (पीठ के निचले हिस्से पर)। ऐसा इसलिए होता
है, क्योंकि
भ्रूण खुद को सिर नीचे करने की स्थिति में लाने का प्रयास कर रहा होता है।
·
गर्भिणी योनि स्राव में वृद्धि देख सकती है। यह सफेद या
गुलाबी रंग का हो सकता है और कभी–कभी
थोड़ा सा खून भी निकल सकता है। यह एक स्वस्थ,
सामान्य गर्भावस्था का संकेत है।
·
हार्मोनल गतिविधि में बदलाव आने के कारण मलत्याग संबंधी
परेशानी उत्पन्न होती है। इसके कारण पेट में थोड़ी ऐंठन और असुविधा हो सकती है।
·
स्तनों में दर्द भी सामान्य प्रसव का संकेत होता है। जैसे
ही गर्भिणी अंतिम चरण में पहुँचती है,
ये भारी और असहज महसूस हो सकते हैं।
·
पानी की थैली के टूटने की प्रक्रिया भी आमतौर पर प्रसव के
दौरान होती है। कभी–कभी
यह प्रसव की शुरुआत से पहले भी हो सकती है। ऐसे में तत्काल चिकित्सक की सलाह लेनी
चाहिए।
सामान्य
अथवा योनि प्रसव के लाभ
सामान्य प्रसव का अर्थ प्राकृतिक
प्रक्रिया के माध्यम से होने वाला शिशु का जन्म है, जिसमें प्रसव के दौरान योनि से शिशु का जन्म होता है।
प्राकृतिक प्रसव अन्य किसी विधि से बेहतर होने का कारण है:
1.वैक्यूम से
बचने में मदद करता है
वैक्यूम एक उपकरण होता है जो
किचन सिंक में इस्तेमाल होने वाले प्लंजर के समान होता है। शिशु को बाहर निकालने
के लिए यह शिशु के सिर को बाहर खींच लेता है। वैक्यूम द्वारा खींच कर बाहर निकाले
जाने के कारण अक्सर शिशु की नरम खोपड़ी लंबी हो जाती है। एक सामान्य प्रसव (योनि
प्रसव) इस खतरनाक विधि से बचाव करता है।
2.
संदंश या चिमटे से बचाव
यह खतरनाक दिखने वाला उपकरण, एक बड़े सलाद
चम्मच से मिलता–जुलता
है, जिसका
इस्तेमाल बच्चे के सिर को जनन मार्ग से बाहर निकालने के लिए किया जाता है। नवजात
शिशु की हृदय गति में वृद्धि होना जोखिमों में से एक है। अन्य जोखिमों में चेहरे
पर मामूली चोटें, चेहरे
का पक्षाघात, मामूली
तौर पर बाहरी आँख को आघात। बड़े जोखिमों में खोपड़ी का फ्रैक्चर, खोपड़ी के
भीतर रक्तस्राव और यहाँ तक कि दौरे भी शामिल हैं। सामान्य प्रसव में संदंश के
उपयोग की आवश्यकता नहीं होती है।
3.
माँ और बच्चे के लिए स्वास्थ्यपरक
जन्म की प्रक्रिया ही एक शिशु के
लिए पीड़ादायक होती है,
और अगर इस स्तर पर इस्पात के उपकरणों से निपटना पड़े, तो यह उसके
स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। ऑपरेशन के बाद के दुष्प्रभाव या रीढ़ पर
एपिड्यूरल इंजेक्शन के प्रभाव के कारण माँ को भी स्वास्थ्य संबंधी तकलीफ हो सकती
है। माँ और बच्चे के बीच बिताए पहले कुछ मिनट बाहरी दुनिया के साथ बच्चे का पहला
बंधन है। माँ की गोद और आवाज का आरामदायक एहसास शिशु को उस पीड़ादायक अनुभव के बाद
गर्भ के सुरक्षित वातावरण के पश्चात बाहरी दुनिया में भी सुरक्षा के प्रति आश्वस्त
करता है। प्राकृतिक रुप से जन्म के साथ ही शिशु को लगभग तुरंत ही माँ के हाथों में
दे दिया जाता है। यह तत्काल बनने वाला बंधन होता है जो और जीवन भर बना रहता है।
4.
माँ के शरीर में दूध के निर्माण को उत्तेजित करता है
जन्म की प्राकृतिक प्रक्रिया
प्रसव वेदना और जन्म के दौरान शरीर में कई प्राकृतिक हार्मोन प्रणालियों को
उत्तेजित करती है। ऑक्सीटोसिन,
एंडोर्फिन, एड्रेनालाईन, नॉरएड्रेनालाईन
और सबसे महत्वपूर्ण प्रोलैक्टिन,
मातृत्व हार्मोन ये सभी इस दौरान स्रावित होते हैं।
5.
जनन मार्ग से सुरक्षात्मक बैक्टीरिया
योनि के जीवाणुओं में भी प्रसव
के दौरान परिवर्तन होते हैं। माँ के जननांगों से शिशु तक पहुंचने वाला बैक्टीरिया, उसकी
प्रतिरक्षा प्रणाली को बनाने में मदद करता है, और बच्चा दूध और ठोस खाद्य पदार्थों को पचाने में सक्षम
होता है। जन्म प्रक्रिया के दौरान,
मानव सूक्ष्मजीविता का गठन होता है,
इसके विकास में योनि माइक्रोबायोम की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। लैक्टोबैसिली
उनमें से एक है।
6.
प्रसव के बाद तेजी से सुधार
एक चिकित्सीय हस्तक्षेप के
विपरीत, प्राकृतिक
प्रसव प्रक्रिया से माँ को जल्द ठीक होने में मदद मिलती है। शारीरिक शक्ति वापस
पाने और शरीर को फिर से पहले वाली स्थिति में लाने के लिए इसे पूरा समय मिलता है।
एक चिकित्सीय हस्तक्षेप में संक्रमण की संभावना अधिक होती है, क्योंकि एक
अप्राकृतिक हस्तक्षेप के कारण अंततः सुधार में ज्यादा समय लगेगा। प्राकृतिक प्रसव
किसी भी बड़े ऑपरेशन से बचाव करता है और इस तरह से शल्यक्रिया के कारण होने वाले
खतरे कम हो जाते हैं।
7.
गर्भिणी आत्मविश्वासी बनाता है
प्राकृतिक रुप से जन्म की भावना
माँ को बहुत आत्मविश्वास और एक उपलब्धि प्रदान करती है। यह एक ऐसा अनुभव है, जिसका
मुकाबला कोई नहीं कर सकता।
8.
अस्पताल में कम समय तक रहना
प्राकृतिक प्रसव के बाद अस्पताल
में रहने का समय 24 से 48 घंटे तक ही
हो सकता है। अलग से एक सी–सेक्शन
होता है, जहाँ
ऑपरेशन के बाद शारीरिक सुधार की स्थिति के मुताबिक, 3 दिनों से लेकर एक सप्ताह तक रह सकते हैं। इस विश्वास के
विपरीत, प्राकृतिक
प्रक्रिया से प्रसव, सामान्य
रूप से, चिकित्सीय
हस्तक्षेप के मुकाबले काफी कम है।
9.
बच्चे की प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाता है
माँ से बच्चे को स्थानांतरित
योनि सूक्ष्म जीवों में प्राकृतिक बैक्टीरिया, प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने में मदद करते हैं, जो गर्भ के
सुरक्षित वातावरण से बाहर बच्चे को होने वाले कई छोटे–मोटे
संक्रमणों से निपटने में सहायक होती है। फेफड़े / श्वास की समस्याओं की संभावनाएं
कम रहती हैं, बाहर आने के लिए संघर्ष और प्राकृतिक रुप
से रोना श्वसन को सक्रिय करता है और शिशु की छोटी सी छाती और फेफड़ों का प्रसार
करने में मदद करता है।
10.
मजबूत पाचन तंत्र
जीवाणु विशेष रूप से
लैक्टोबैसिली, बच्चे
को दूध और अन्य ठोस आहार पचाने में मदद करते हैं। दुग्ध शर्करा के प्रति
असहिष्णुता उन शिशुओं में आम तौर पर अक्सर पाई जाती है जिनका जन्म प्राकृतिक तौर
पर योनि मार्ग के द्वारा नहीं हुआ होता है। दूध अकेला ऐसा आहार है जिसे शिशु को
शुरुआती महीनों में दिया जाता है। कोई भी एलर्जी उसके प्रारंभिक विकास के लिए
हानिकारक है। शीर्ष खाद्य (टॉप फीड) या डिब्बाबंद दूध के दृढ़ीकृत (फोर्टिफाइड)
होने के बावजूद, उसमें
वह प्रतिरोधक क्षमता नहीं होती है,
जो शिशु को माँ के प्राकृतिक दूध में मिलती है। माँ के शरीर द्वारा उत्पन्न
पहला दूध होता है कोलोस्ट्रम जो गाढ़ा,
हल्के पीले रंग का होता है। इसमें उच्च मात्रा में रोग प्रतिरोधक तत्व होते
हैं और इसे बच्चे का पहला टीकाकरण भी कहा जाता है।
सामान्य
प्रसव करने में आपकी सहायता के लिए सुझाव
मातृत्व कई महिलाओं के लिए एक
सपने के सच होने की तरह होता है,
चाहे वे युवा हों या प्रौढ़। जब तक आसान समझी जाने वाली चिकित्सीय हस्तक्षेप
द्वारा प्रसव कराने की प्रक्रिया का आरंभ नहीं हुआ था तब तक सामान्य प्रसव ही एक
नियम होता था । अब, पहले
से कहीं ज्यादा, महिलाओं
को सामान्य प्रसव के लाभों का एहसास हो चुका है, क्योंकि वे इसके फायदे जानती हैं और चिकित्सीय रूप से भी यह
हितकारी साबित हुआ है। सामान्य प्रसव के लिए यहाँ कुछ सुझाव दिए गए हैं जो
सिजेरियन से बचाते हैं जिनका पालन करने से न केवल माँ और बच्चे के लिए, बल्कि पिता
और पूरे परिवार के लिए भी मातृत्व का एक सुरक्षित और अद्भुत अनुभव हो सकता है:
1.
गर्भावस्था और प्रसव के बारे में कुछ अच्छी शिक्षा प्राप्त
करें
भविष्य के लिए तैयार रहना और माँ
के रूप में गर्भिणी की भूमिका एक सामान्य प्रसव के लिए आवश्यक है। प्रसव के लिए
उपयोग किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के तरीकों का वैज्ञानिक ज्ञान होना आवश्यक है।
2.
एक अच्छे केयरटेकर या अस्पताल के बारे में जानकारी प्राप्त
करें जिन्हें प्राकृतिक प्रसव में विशेषज्ञता प्राप्त हो
जन्म के विभिन्न विकल्प उपलब्ध
हैं, और
सर्वोत्तम संभावित तरीकों के आधार पर सावधानीपूर्वक पृष्ठभूमि की जांच की जानी
चाहिए। (अलेक्जेंडर तकनीक,
ब्रैडली विधि और लैमेज जल प्रसव आदि कुछ उदाहरण हैं)।
3.
हमेशा सकारात्मक और खुश रहें
सकारात्मक और खुश रहना, गर्भिणी को
सामान्य प्रसव कराने के लिए तैयार करने में मदद करता है। सबसे खराब स्थिति के बारे
में चिंता करना गर्भिणी के मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, साथ ही यह
गर्भस्थ बच्चे को भी प्रभावित करता है।
4.
ज्यादा वजन न बढ़ाएं
समझदारी पूर्वक खाना सुनिश्चित
करें, ताकि
गर्भिणी का वजन अवांछित रुप से न बढ़े। गर्भावस्था के दौरान लगभग 12 किलो
अतिरिक्त वजन बढ़ता है। अत्यधिक वजन बढ़ने के बाद उत्पन्न होने वाले दूसरे कारणों
जैसे कि गर्भावधि मधुमेह,
उच्च रक्तचाप (गर्भावधि उच्च रक्तचाप) और प्राकगर्भाक्षेपक या नाल के साथ
समस्याओं के कारण माता और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
इसके अलावा, गर्भिणी
का प्रसव समय से पहले भी हो सकता है।
5.
तैराकी
यह एक गर्भवती माँ के लिए सबसे
अच्छा व्यायाम है। प्रसव की तारीख तक सहयोगी की देखरेख में एक सुरक्षित
क्लोरीनयुक्त स्विमिंग पूल का उपयोग किया जा सकता है। वास्तव में, कई महिलाएं
जल प्रसव का विकल्प चुनती हैं। जैसा कि पहले ही जानकारी दी गई है कि भ्रूण संपूर्ण
गर्भस्थ अवधि एक थैली में बिताता है और यह भ्रूणावरण पानी में इसे आरामदायक बनाता
है।
6.
टहलना
चलना किसी के लिए भी खासकर, गर्भवती महिलाओं
के लिए सबसे अच्छा व्यायाम है। सप्ताह में पाँच बार 30 मिनट की सैर
गर्भिणी को स्वस्थ बनाए रखेगी। कभी–कभार
टहलना अभूतपूर्व परिवर्तन लाने के लिए पर्याप्त नहीं है, इसलिए इसे
नियमित करना होगा। वयस्कों के साथ ही गर्भवती महिलाओं को एक दिन में लगभग 10,000 कदम चलने की
आवश्यकता होती है।
7.
केगल व्यायाम
ये सरल अभ्यास हैं जिनमें श्रोणि
तल की मांसपेशियों को जकड़ा जाता है और ढीला किया जाता है। ऐसा उन्हें मजबूत बनाने
के लिए किया जाता है। यह क्षेत्र गर्भाशय,
मूत्राशय, छोटी
आंत और मलाशय को सहयोग करता है। इन मांसपेशियों को संकुचित और ढीला करना उन्हें
मजबूत बनाता है। यह गर्भावस्था के दौरान किसी भी मूत्र विसंगति को नियंत्रित करने
में मदद करने के लिए किया जा सकता है। अधिकांश डॉक्टर गर्भावस्था की तीसरी तिमाही
के दौरान केगेल व्यायाम की सलाह देते हैं,
ताकि एक सहज, प्राकृतिक
प्रसव में मदद हो सके।
8.
श्रोणि के खिंचाव के व्यायाम
गर्भावस्था के दौरान आरामदायक
प्रसव के लिए श्रोणि क्षेत्र की मांसपेशियां नरम हो जाती हैं। श्रोणि में खिंचाव
प्रसव को आरामदायक बनाने में मदद करता है और प्रसव के बाद भी श्रोणि तल क्षेत्र को
मजबूत करता है।
9.
योग
इस प्राचीन कला का दैनिक अभ्यास गर्भिणी
की अंतरात्मा को हल्का करेगा और गर्भवती माँ के श्वसन तंत्र को मजबूत करेगा।
सुरक्षित योग सामान्य प्रसव के लिए माँ को आराम प्रदान करने में मदद करता है और
प्राकृतिक प्रसव की तैयारी के लिए उसके शरीर को मजबूत करता है। ध्यान करने से भी
मातृत्व की चुनौतियों के लिए मन को तैयार किया जाता है।
10.
भरपूर पानी पीएं
पानी पीने से शरीर से विषाक्त
पदार्थों को बाहर निकालने में मदद मिलती है। पानी मूत्र को पतला करता है, और इसलिए
गर्भावस्था के दौरान आम तौर पर होने वाली मूत्र संक्रमण की संभावना कम कर देता है।
निर्जलीकरण समय पूर्व प्रसव की शुरुआत का कारण हो सकता है, इसलिए शरीर
में पानी की पर्याप्त मात्रा का होना जरुरी है। एक दिन में लगभग दस गिलास पानी
पीना गर्भवती माँ के लिए अच्छा होता है।
11.
समतल और आरामदायक जूते पहनें
सहज होना जरूरी है। शरीर के आगे
के हिस्से में बढ़ा वजन गर्भिणी के गुरूत्वाकर्षण केंद्र को बदल देता है। इससे
रीढ़, घुटनों
और पैरों पर दबाव पड़ता है। ऊंची एड़ी के जूते पहनने से इन क्षेत्रों पर बोझ बढ़
सकता है, जिससे
पीठ और घुटने या पैर में दर्द हो सकता है। ऊंची एड़ी के जूते पहनने से गर्भिणी के
गिरने और खुद के साथ ही बच्चे को चोट पहुँचने का खतरा पैदा होता है।
12.
पालथी मारना या उकड़ू बैठना
पालथी मारना या उकड़ू बैठने जैसे
व्यायाम सामान्य प्रसव के लिए गर्भिणी की मूल मांसपेशियों को मजबूत बनाने में मदद
करते हैं। इनमें श्रोणि तल की मांसपेशियां और कूल्हे की मांसपेशियां शामिल हैं।
यदि गर्भिणी स्वस्थ है और सामान्य गर्भावस्था है, तो दिनचर्या का यह रूप एक सामान्य प्रसव सुनिश्चित करने में
मदद करेगा।
13.
नींद
रात की अच्छी नींद तरोताजा रहने
का एक अच्छा तरीका है,
जिससे भ्रूण को स्वस्थ रहने में मदद मिलती है। शरीर में हर दिन बदलाव होते
रहेंगे और शरीर की ऊर्जा और संसाधन पहले बच्चे और फिर माँ तक जाते हैं। एक स्वस्थ
वयस्क के लिए जरूरी 8
घंटे की अनिवार्य रूप से नींद के अलावा गर्भवती माँ को 2 से 3 घंटे
कीअतिरिक्त नींद की आवश्यकता होती है। एक स्वस्थ माँ और शिशु प्राकृतिक प्रसव की
गारंटी देंगे।
14.
सांस लेने की तकनीक
‘लमाज़
विधि’ को
लमाज़ नामक एक फ्रांसीसी प्रसूति विज्ञानी द्वारा प्रचारित किया गया था, जिसमें
विनियमित श्वास का उपयोग किया जाता है,
ताकि प्रसव के दौरान भ्रूण को आराम मिले।
15.
भोजन के सही प्रकार
गर्भिणी जो खाती है, उस पर उसका
स्वास्थ्य और गर्भिणी का बच्चा निर्भर होता है, इसलिए सामान्य प्रसव के लिए हमेशा स्वस्थ भोजन लें। पोषण और
स्वच्छता स्वस्थ भ्रूण के लिए महत्वपूर्ण है। अगर सामान्य प्रसव से गुजरना पड़े, तो बच्चे को
मजबूत होना चाहिए। नारियल,
ताजे फल, हरी
सब्जियाँ जैसे भोजन का सेवन गर्भवती माँ द्वारा किया जाना चाहिए । बहुत अधिक तैलीय
और तले हुए भोजन से परहेज करें। तरोताजा महसूस करने के लिए सामान्य प्रसव के घरेलू
उपचारों में हल्दी और अदरक की चाय जैसी कई जड़ी–बूटियां शामिल की जा सकती हैं। इसके अलावा, अत्यधिक
मसालेदार और वातयुक्त पेय से भी परहेज करना चाहिए। शराब, हार्ड ड्रिंक, धूम्रपान और
ड्रग्स निषेध है और इससे हर कीमत पर बचा जाना चाहिए।