VRINDAVAN INSTITUTE OF NATUROPATHY AND YOGIC SCIENCES is an authorized Work Integrated Vocational Education Center (WIVE) of Asian International University in India.

शून्य मुद्रा

By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'

विधि :

मध्यमा अँगुली (बीच की अंगुली) को हथेलियों की ओर मोड़ते हुए अँगूठे से उसके प्रथम पोर को दबाते हुए बाकी की अँगुलियों को सीधा रखने से शून्य मुद्रा बनती हैं।

मुद्रा करने का समय व अवधि : 

·         शून्य मुद्रा को प्रतिदिन तीन बार प्रातः,दोपहर,सायं 15-15 मिनट के लिए करना चाहिए | एक बार में भी 45 मिनट तक कर सकते हैं |

चिकित्सकीय लाभ :

·         शून्य मुद्रा के निरंतर अभ्यास से कान के रोग जैसे कान में दर्द, बहरापन, कान का बहना, कानों में अजीब-अजीब सी आवाजें आना आदि समाप्त हो जाते हैं। कान दर्द होने पर शून्य मुद्रा को मात्र 5 मिनट तक करने से दर्द में चमत्कारिक प्रभाव होता है।

·         शून्य मुद्रा गले के लगभग सभी रोगों में लाभकारी है |

·         यह मुद्रा थायराइड ग्रंथि के रोग दूर करती है।

·         शून्य मुद्रा शरीर के आलस्य को कम कर स्फूर्ति जगाती है।

·         इस मुद्रा को करने से मानसिक तनाव भी समाप्त हो जाता है |

सावधानियां :

·         भोजन करने के तुरंत पहले या बाद में शून्य मुद्रा न करें |

·         किसी आसन में बैठकर एकाग्रचित्त होकर शून्य मुद्रा करने से अधिक लाभ होता है |

आध्यात्मिक लाभ :

·         शून्य मुद्रा  के निरंतर अभ्यास से स्वाभाव में उन्मुक्तता आती है |

·         इस मुद्रा से एकाग्रचित्तता बढती है |

·         शून्य मुद्रा इच्छा शक्ति मजबूत बनाती है |