By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'
गैंग्रीन क्या है?
गैंग्रीन, शरीर का मृत ऊतक (परिगलन) होता है जो अंतर्निहित
बीमारी, चोट या संक्रमण के कारण रक्त आपूर्ति बंद हो जाने के
कारण होता है। इसमें शरीर की कोशिकाएं मृत होने लगती हैं। यद्यपि अंगुलियां, पैर की अंगुलियां, हाथ और पैर, अत्यधिक प्रभावित क्षेत्र होते हैं, लेकिन आंतरिक अंग और मांसपेशियों में भी गैंग्रीन हो
सकता है।
गैंग्रीन प्रकार
ग्रैंग्रीन तीन प्रकार की
होता हैः
शुष्क गैंग्रीन : इस प्रकार की गैंग्रीन अक्सर डायबिटीज और
स्व-प्रतिरक्षित विकार से ग्रस्त व्यक्तियों में पायी जाती है। शुष्क गैंग्रीन
मुख्य रूप से हाथ व पैरों को प्रभावित करती है। शरीर के बाह्य अंगों में अल्प रक्त
संचरण (इशेमिया) हो जाता है, तो ऐसे क्षेत्रों में
रक्त प्रवाह प्रभावित होने के कारण ऊतक खत्म हो जाते हैं। इसे सीनाइल गैंग्रीन के
नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यह आमतौर पर बुजुर्ग मरीजों को प्रभावित करती है।
शुष्क गैंग्रीन, सूखे हुए ऊतक के साथ उभरता है जो अलग होने से पहले
भूरे रंग से बैंगनी-नीले और काले रंग में बदल जाता है। उच्च कोलेस्ट्रोल और प्लैक
के कारण धमनिकाठिन्य भी लघु रक्तवाहनियों के व्यास को बाधित करते हुए गैंग्रीन
उत्पन्न कर सकता है।
आमतौर पर शुष्क गैंग्रीन
के अंतर्निहत कारणों के लिए संक्रमण उतरदायी नहीं होता है। हालांकि, कुछ कारणों से मृत कोशिकाएं प्रभावित हो जाती है, तो इससे नम गैंग्रीन हो सकता है।
नम गैंग्रीन : इस प्रकार का गैंग्रीन, मुंह, आंत, फेफङें, गर्भाशय-ग्रीवा, और योनिमुख जैसे आद्र ऊतक व अंगों को प्रभावित करता है।
त्रिकास्थि, नितम्ब, और एङियों के शय्या क्षत से भी नम गैंग्रीन हो सकती
है। नम गैंग्रीन ज्यादातर संक्रमण के कारण होती है और सेप्टिसीमिया के अत्यधिक
खतरे के कारण बीमारी बढ़ जाती है। जलन के घाव या आघात से शारीरिक अंग कुचल जाते
हैं या दब जाते हैं, तो प्रभावित जगह में
रक्तापूर्ति बंद हो जाने से गैंग्रीन हो सकती है। नम गैंग्रीन के संक्रमण से यह
रोग पूरे शरीर में तेज गति से फैल सकता है जो कि जानलेवा हो सकता है।
गैस गैंग्रीन : इस प्रकार का गैंग्रीन, ऊतकों के अंतर्गत गैस उत्पन्न करने वाले जीवाणुओं से
होता है। यह मुख्य रूप से क्लोस्ट्रीडियम परफ्रींजेंस द्वारा उत्पन्न सबसे गंभीर
गैंग्रीन का रूप है। जैसे-जैसे हालत बिगङती जाती है, त्वचा पीली और भूरी हो जाती है और प्रभावित जगह को
दबाने पर चटकने की आवाज आती है। गैस गैंग्रीन होने पर तुरंत डॉक्टर को दिखायें, ऐसा न करने पर मरीज 48 घंटें के अंतर्गत मर सकता है।
फोरनियर गैंग्रीन : इस प्रकार का गैंग्रीन लिंग व जननांगों को
प्रभावित करता है। यह रोग महिलाओं के बजाय पुरुषों को अधिक होती है। यदि संक्रमण
रक्त प्रवाह में फैलने से घाव सङ जाता है तो कि प्राणघातक स्थिति हो सकती है।
कारण :
रक्तापूर्ति में कमीः डायबिटीज, धमनीकाठिन्य, परीधीय धमनी रोग से शुष्क गैंग्रीन हो सकता है। जलन या आघात
घाव से ऊतकों में सूजन व संक्रमण हो सकता है और इससे प्रभावित क्षेत्र में
रक्तापूर्ति बंद हो जाने से, गैंग्रीन हो जाता है।
डायबिटीजः
अनियंत्रित और अनुपचारित डायबिटीज मेलिटस (टाइप 1 और टाइप 2) के कारण मुख्य रूप से पैर में गैंग्रीन हो जाती है। भारत
में लगभग 31.7
मिलियन डायबिटीज मरीज है, और वर्ष 2030
तक इन संख्यां में दुगने से अधिक होने की उम्मीद है। इस संख्या में एक-चौथाई भाग
ऐसे ग्रामीण लोगों की है, जिन्हें उचित उपचार सुविधाएं, स्वास्थ्यकर परिस्थितियां नहीं मिल पाती है,
या निरक्षरता के कारण गैंग्रीन संबंधित अंग-विच्छेद की
अत्यधिक घटनाएं होती है।
रेनॉड की घटना : शीत परिस्थितियों
में अंगुलियों और (आम तौर पर) पैर की अंगुलियों में रक्त वाहनियां असामान्य तरीके
से प्रतिक्रिया करने पर यह रोग घटित होता है।
सर्जरी :
सर्जरी के दौरान अस्पताल-उत्प्रेरित
संक्रमण से भी गैंग्रीन हो सकता है।
कमजोर प्रतिरक्षा-तंत्रः एड्स, स्व-प्रतिरक्षित विकार, कैंसर इत्यादि से ग्रसित व्यक्ति में कमजोर
प्रतिरक्षा-तंत्र होता है। ऐसी परिस्थिति में, छोटे से संक्रमण से भी आंतरिक या बाह्य अंगों में गैंग्रीन
हो सकती है।
लक्षण :
शुष्क गैंग्रीन के लक्षण हैः
· शुष्क, शिकनयुक्त, और काली त्वचा
· ठंडी व सून्न त्वचा
· प्रभावित क्षेत्र में संवेदना की कमी
· मवाद से भरा हुआ गंधहीन घाव
नम व आंतरिक गैंग्रीन के लक्षण हैः
· अस्पष्ट बुखार
· रक्तचाप कम होना
· गैंग्रीन जगह में सूजन और गंभीर पीङा होना
· फफोला या फोङा जिसमें दुर्गंध आ सकती है
· गैंग्रीन क्षेत्र की त्वचा का रंग खराब हो जाना
· प्रभावित जगह की त्वचा को दबाने पर चटकने की आवाज आना
निदान
· चिकित्सीय इतिहास और लक्षणों के आधार पर गैंग्रीन का निदान
किया जाता है। गैंग्रीन जगह व सीमा का सटीक चित्र लेने के लिए नैदानिक व प्रायोगिक
परीक्षण किये जाते हैं। निम्नलिखित परीक्षण हैः
· मृत कोशिकाओं को देखने के लिए प्रभावित हिस्से से ऊतकों का
नमूना लिया जाता है।
· असामान्य रूप से उच्च श्वेत रक्त कोशिका मात्रा की जाँच
करने के लिए रक्त परीक्षण किये जाते हैं।
· गैंग्रीन जगह व फैलाव का निदान करने के लिए इमेजिंग
परीक्षण।
· धमनियों में रक्त प्रवाह या रूकावटों का पता लगाने के लिए
विशेष डाई के प्रयोग से आर्टरियोग्राम किया जा सकता है।
उपचार
गैंग्रीन के उपचार में मृत ऊतक या कुछ प्रभावित अंग के
हिस्से (अंग-विच्छेद) को निकालना और संक्रमण को आगे बढ़ने से रोकना होता है। उपचार
प्रकार हैः
सर्जरी या क्षतशोधन- मृत ऊतकों को निकालना होता है। कुछ मामलों में,
अंग-विच्छेद भी किया जा सकता है
मैगट थेरेपी- विशेष रूप प्रयोगशाली में उत्पादित व जीवाणुरहित मैगट को उन घावों पर रखा जाता
है जहाँ वे स्वस्थ ऊतकों को हानि पहुँचाये बगैर मृत व प्रभावित ऊतकों को नष्ट कर
देते हैं। यह जीवाणु संक्रमण को आगे बढ़ने से भी रोकता है।
एंटीबायोटिक्सः संक्रमण का उपचार करने के लिए प्रयोग किया जाता है।
हाइपरबैरिक ऑक्सीजन थेरेपीः कुछ नम गैंग्रीन के मामलों का उपचार करने के लिए शुद्ध व
उच्च दाब के ऑक्सीजन से भरे हुए चैम्बर का प्रयोग किया जाता है।
रूकावट का उपचारः पुनः गैंग्रीन होने से रोकने के लिए वैस्क्यूलर सर्जरी के
माध्यम से रूकावटों को निकाला जाता है।
जटिलताएं
गैंग्रीन के कारण निम्नलिखित जटिलताएं हो सकती हैः
· लम्बे समय तक जख्म रहने पर, पुनर्निर्मित सर्जरी की जरूरत पङती है
· अंग-विच्छेद (हाथ, अंगुली, पैर की अंगुली, पैर)
· घाव का सङना
· मौत
रोकथाम
गैंग्रीन प्राण-घातक परिस्थिति बनने से पहले इसका तुरंत
उपचार करना अति आवश्यक है। जल्दी उपचार करने से गैंग्रीन से हुए नुकसान को काफी
सीमा तक ठीक किया जा सकता है। गैंग्रीन को रोकने के लिए,
निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं:
· डायबिटीज को नियंत्रित करना
· घाव का बचाव करें
· घाव का तुरंत उपचार करें और किसी भी संक्रमण से बचाने के लिए
इन्हें साफ रखें
· त्वचा के रंग में होने वाले किसी भी क्रमिक बदलावों का
ध्यान रखें
· सर्जरी के पहले या बाद एंटीबायोटिक कोर्स को पूरा करें
अगला चरण
यदि आपको गैंग्रीन होने के कोई लक्षण,
अस्पष्ट बुखार, त्वचा का रंग खराब होता है और खुले व अस्वास्थप्रद घावों को
अत्यधिक गंभीर होने से बचाने के लिए तुरंत अपने चिकित्सक को दिखायें।
खतरे के संकेत
यदि गैंग्रीन का उपचार नहीं किया जाता है,
तो यह रक्तप्रवाह में तेजी से फैल सकती है और घाव सङ सकता
है जो कि एक प्राण-घातक स्थिति होती है।
निम्नलिखित खतरे के संकेतों का ध्यान रखना आवश्यक हैः
· निरंतर रक्तचाप में कमी
· धङकन में वृद्धि
· सांस लेने में परेशानी
· अस्पष्ट बुखार
· चक्कर आना
· त्वचा का रंग खराब होना
· त्वचा ठंडी या पीली पङ जाना
· शरीर के कुछ भागों में संवेदना की कमी