By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'
1.डेंगू
डेंगू मादा एडीज इजिप्टी मच्छर के काटने से होता है। इन मच्छरों
के शरीर पर चीते जैसी धारियां होती हैं। ये मच्छर दिन में,
खासकर सुबह काटते हैं। डेंगू बरसात के मौसम और उसके फौरन बाद
के महीनों यानी जुलाई से अक्टूबर में सबसे ज्यादा फैलता है क्योंकि इस मौसम में मच्छरों
के पनपने के लिए अनुकूल परिस्थितियां होती हैं। एडीज इजिप्टी मच्छर बहुत ऊंचाई तक नहीं
उड़ पाता।
डेंगू फैलने का कारण :
डेंगू बुखार से पीड़ित मरीज के खून में डेंगू वायरस बहुत ज्यादा
मात्रा में होता है। जब कोई एडीज मच्छर डेंगू के किसी मरीज को काटता है तो वह उस मरीज
का खून चूसता है। खून के साथ डेंगू वायरस भी मच्छर के शरीर में चला जाता है। जब डेंगू
वायरस वाला वह मच्छर किसी और इंसान को काटता है तो उससे वह वायरस उस इंसान के शरीर
में पहुंच जाता है, जिससे वह डेंगू वायरस से पीड़ित हो जाता है। यह तीन तरह का होता है
1.
क्लासिकल (साधारण) डेंगू
बुखार
2.
डेंगू हैमरेजिक बुखार
(DHF)
3.
डेंगू शॉक सिंड्रोम
(DSS)
लक्षण
साधारण डेंगू बुखार
· ठंड लगने के बाद अचानक तेज बुखार चढ़ना
· सिर, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द होना
· आंखों के पिछले हिस्से में दर्द होना,
जो आंखों को दबाने या हिलाने से और बढ़ जाता है
· बहुत ज्यादा कमजोरी लगना, भूख न लगना और जी मितलाना और मुंह का स्वाद खराब होना
· गले में हल्का-सा दर्द होना
· शरीर खासकर चेहरे, गर्दन और छाती पर लाल-गुलाबी रंग के रैशेज होना
क्लासिकल साधारण डेंगू बुखार करीब 5 से 7 दिन तक रहता है और मरीज ठीक हो जाता है। ज्यादातर मामलों में
इसी किस्म का डेंगू बुखार होता है।
डेंगू हैमरेजिक बुखार (DHF)
· नाक और मसूढ़ों से खून आना
· शौच या उलटी में खून आना
· स्किन पर गहरे नीले-काले रंग के छोटे या बड़े चिकत्ते पड़ जाना
अगर क्लासिकल साधारण डेंगू बुखार के लक्षणों के साथ-साथ ये लक्षण
भी दिखाई दें तो वह DHF हो सकता है। ब्लड टेस्ट से इसका पता लग सकता है।
डेंगू शॉक सिंड्रोम (DSS)
इस बुखार में DHF के लक्षणों के साथ-साथ 'शॉक' की अवस्था के भी कुछ लक्षण दिखाई देते हैं। जैसे :
· मरीज बहुत बेचैन हो जाता है और तेज बुखार के बावजूद उसकी स्किन
ठंडी महसूस होती है।
· मरीज धीरे-धीरे होश खोने लगता है।
· मरीज की नाड़ी कभी तेज और कभी धीरे चलने लगती है। उसका ब्लड
प्रेशर एकदम लो हो जाता है।
2.मलेरिया
मलेरिया जीवन के लिए खतरनाक बीमारी है। मलेरिया आमतौर पर एक
मच्छर के काटने के माध्यम से प्रसारित होता है, जिसे एनोफेल्स के नाम से जाना जाता है। संक्रमित एनोफेल्स मच्छर
प्लाज़मोडियम परजीवी का वाहक है, जो मलेरिया का कारण बनता है। जब इस प्रकार का मच्छर किसी भी
मानव को काटता है, तो प्लाज्मोडियम परजीवी मेजबान के रक्त प्रवाह में संचरित हो जाता है।
लक्षण
· ठंड लगना
· बुखार और पसीना
· मांसपेशियों में दर्द
· हिलना और पसीना
· तेज दिल की दर
· सिरदर्द और मतली
3.टाइफाइड
टाइफाइड एक बीमारी है जो साल्मोनेला टाइफीमुरियम बैक्टीरिया
के कारण होती है। यह जीवाणु मनुष्यों के रक्त प्रवाह और आंत में रहता है।
टाइफाइड केवल साल्मोनेला टाइफीमुरियम संक्रमित व्यक्ति के मल
के साथ सीधे संपर्क से लोगों के बीच फैलता है। कोई भी जानवर इस बीमारी का वाहक नहीं
होता है,
इसलिए टायफाइड हमेशा व्यक्ति से व्यक्ति में फैलता है। अगर टाइफाइड
का इलाज नहीं किया जाता है, तो इस बीमारी से लगभग 4 में से 1 मामले
में परिणाम मृत्यु पर समाप्त होती है। फिर
भी अगर सही समय पर इलाज किया जाता है, तो मृत्यु दर 4 प्रतिशत से कम है। एक बार बैक्टीरिया मुंह के माध्यम से शरीर
में प्रवेश करता है, तो यह एसटीफी बैक्टीरिया होस्ट की आंत में 1-3 सप्ताह तक रहता है। इसके बाद यह धीरे-धीरे संक्रमित रोगी के
रक्त प्रवाह में अपना रास्ता बना देता है। इसके बाद यह मेजबान के अन्य टिश्यू और अंगों
में फैलता है। रोगी की प्रतिरक्षा प्रणाली शायद एसटीफी बैक्टीरिया से लड़ सकती है,
क्योंकि यह रोगी की कोशिकाओं के भीतर रहती है,
मेजबान की प्रतिरक्षा प्रणाली से दूर हो जाती है।
कारण और लक्षण
इस बीमारी का निदान मल, रक्त, मूत्र या संक्रमित रोगी के बोन मेरो के नमूने में इस जीवाणु
की उपस्थिति का पता लगाकर किया जाता है।
जिन देशों में स्वच्छ पानी और उचित धुलाई सुविधाओं की कम पहुंच
है,
वे टाइफाइड मामलों की संख्या में अधिक होते हैं।
टायफाइड से बचने के लिए कुछ सुरक्षा नियम हैं:
· बोतलबंद पानी पीएं।
· बोतलबंद पानी की अनुपस्थिति में,
उबले हुए पानी को पीएं जो इसकी खपत से कम से कम एक मिनट पहले
उबला हुआ हो।
· सड़क किनारे मिलने वाले भोजन को खाने से बचें या गर्म भोजन खाएं।
· अपने पेय में बर्फ रखने के लिए खुद को प्रोत्साहित न करें।
· खुली कच्ची फलों से बचें, बल्कि हमेशा फलों को छील कर खाएं।
· किसी और द्वारा संभाले गए किसी भी भोजन का उपभोग करने से सावधान
रहें।
4.फाइलेरिया
फाइलेरिया रोग, जिसे हाथी पांव, फील पांव, एलीफेंटिटिस यानि श्लीपद भी कहते हैं -ज्वर
एक परजीवी के कारण फैलती है जो कि मच्छर के काटने से शरीर के अंदर प्रवेश करता है।
भी कहते हैं, में अक्सर हाथ या पैर बहुत ज्यादा सूज जाते हैं। इसके अलावा फाइलेरिया रोग से पीड़ित
व्यक्ति के कभी हाथ, कभी अंडकोष, कभी
स्तन आदि या कभी अन्य अंग भी सूज सकते हैं। आम बोलचाल की भाषा में हाथीपांव भी कहा
जाता है।
एलीफेंटिटिस को लसीका फाइलेरिया भी कहा जाता है क्योंकि फाइलेरिया
शरीर की लसिका प्रणाली को प्रभावित करता है। यह रोग मनुष्यों के हाथ- पैरों के साथ
ही जननांगों को भी प्रभावित करता है।
लक्षण
फाइलेरिया की छूत के बाद सूजन की बीमारी अलग अलग समय के अंतराल
पर होती है। यह ध्यान रखना भी महत्वपूर्ण है कि किन्हीं लोगों में ये बीमारी पूरी जिंदगी
सामने नहीं आती। पर ये लोग मच्छरों तक संक्रमण पहुँचा सकते हैं (इन्हें लक्षण हीन वाहक
कहते हैं)। गंभीर छूत की स्थिति में, जब वयस्क परजीवी लसिका तंत्र में घुस गए होते हैं,
गिल्टियॉं और बुखार हो जाता है।
कुछ रोगियों में गिल्टियों और बुखार के अलावा एक या ज़्यादा
हाथ व पैरों में (ज़्यादातर पैरों में) सूजन हो सकती है। अकसर पैरों व हाथों की लसिका
वाहिकाएं लाल हो जाती हैं और उनमें दर्द भी होता है। इस स्थिति में लसिका नलियों के
बंद हो जाने के कारण लसिका के इकट्ठे हो जाने के कारण सूजन हो जाती है। इस स्थिति में
इसमें केवल द्रव ही होता है। अगली अवस्था में वसा के जम जाने के कारण शोफ कड़ा हो जाता
है। एक बार यह बदलाव आ जाए तो यह फिर से ठीक नहीं होता।