By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'
मानव शरीर के अन्दर उदर प्रदेश में स्थित आँतों को धोने की क्रिया
के रुप में शंख प्रक्षालन क्रिया का उल्लेख यौगिक ग्रंथों में किया गया है। शंख प्रक्षालन
क्रिया के अन्तर्गत गुनगुने नमकीन जल का सेवन करने के उपरान्त निश्चित आसनों का अभ्यास
किया जाता है। इस अभ्यास की विधि इस प्रकार है -
विधि :
शंख प्रक्षालन क्रिया का अभ्यास प्रातःकाल के समय खाली पेट एवं
नमकीन जल से किया जाता है। इस क्रिया के अभ्यास के लिए गुनगुने नमकीन जल को कागासन
में बैठकर चार से छह गिलास की मात्रा में पी लेते हैं। अब पांच आसनों ताड़ासन,
तिर्यक ताड़ासन, कटिचक्रासन, तिर्यक भुजंगासन एवं उदरार्कषण आसन का अभ्यास करते है। इन आसनों
का अभ्यास करने के उपरान्त पुनः कागासन में बैठकर चार से छह गिलास जल की मात्रा पीते
हैं। जल पीने के उपरान्त पुनः उपरोक्त आसनों की पुनरावृत्ति करते हैं। इस प्रकार आसनों
का अभ्यास करने से जल सम्पूर्ण पाचन तंत्र से होता हुआ अधोमार्ग अर्थात बडी आंत के
माध्यम से शरीर से बाहर निकलने लगता है। इस क्रिया में पहले दूषित जल विषाक्त मल पदार्थों
के साथ बाहर निकलता है। शंख प्रक्षालन क्रिया में जल पीकर आसनों के अभ्यास की क्रिया
तब तक दोहराते रहते हैं जब तक कि शौच के रुप में साफ स्वच्छ जल शरीर से उत्सर्जित होने
नही होने लगता है।
शंख प्रक्षालन क्रिया
के लाभ :
इस क्रिया के अभ्यास से सम्पूर्ण पाचन तंत्र का शोधन होता है।
पेट के अन्दर स्थित पुराना मल पदार्थ शरीर से बाहर निकल जाता है। कब्ज रोग को दूर करने
में यह अभ्यास अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं लाभकारी प्रभाव रखता है। पेट दर्द,
गैस, अपच,
भूख नही लगने जैसे रोगों में इस अभ्यास से लाभ प्राप्त होता
है। इस क्रिया का अभ्यास करने से आंतें साफ एवं स्वच्छ बनती हैं एवं आँतों में पाचक
रसों का स्रावण सुव्यवस्थित होता है। योग शास्त्रों में इस क्रिया के लाभकारी प्रभाव
के आधार पर इसे कल्पकारी क्रिया कहा गया है।
शंख प्रक्षालन क्रिया
की सावधानियाँ :
शंख प्रक्षालन क्रिया के अभ्यास में निम्न सावधानियों का पालन
करना अनिवार्य होता है -
· अल्सर, आंत में सूजन, संक्रमण एवं आंत के कैन्सर से ग्रस्त रोगी को शंख प्रक्षालन
क्रिया का अभ्यास नही कराना चाहिए अपितु इन रोगों से ग्रस्त रोगियों को चिकित्सक की
देख रेख में लघु शंख प्रक्षालन करना चाहिए।
· शंख प्रक्षालन क्रिया के उपरान्त अभ्यासी व्यक्ति को मिर्च एवं
मसालों का प्रयोग पूर्ण रुप से वर्जित रखना चाहिए।
· शंख प्रक्षालन क्रिया के उपरान्त अभ्यासी व्यक्ति को मूंग की
दाल की सादी खिचडी में गाय का घी डालकर देनी चाहिए।
· शंख प्रक्षालन क्रिया के तीन दिनों तक दूध एवं दूध से बने पदार्थों
का सेवन पूर्ण रुप से वर्जित होता है तथा इसके उपरान्त कम से कम एक सप्ताह तक बिना
मिर्च मसाले का हल्का आहार लेना के उपरान्त सामान्य आहार ग्रहण करना चाहिए।
इस प्रकार प्रातःकाल खाली पेट विभिन्न विधियों द्वारा जल का
आन्तरिक प्रयोग से शरीर की आन्तरिक सफाई भली भांति होती है। दूसरे शब्दों में शरीर
के आन्तरिक शोधन में जल का आन्तरिक प्रयोग बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।