By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'
कोशिकाएँ सजीव होती हैं तथा वे सभी कार्य करती हैं,
जिन्हें सजीव प्राणी करते हैं। इनका आकार अतिसूक्ष्म तथा आकृति
गोलाकार,
अंडाकार, स्तंभाकार, रोमकयुक्त, कशाभिकायुक्त, बहुभुजीय आदि प्रकार की होती है। ये जेली जैसी एक वस्तु द्वारा
घिरी होती हैं। इस आवरण को कोशिकावरण (cell membrane) या कोशिका-झिल्ली कहते हैं यह झिल्ली अवकलीय पारगम्य (selectively
permeable) होती है जिसका अर्थ है
कि यह झिल्ली किसी पदार्थ (अणु या ऑयन) को मुक्त रूप से पार होने देती है,
सीमित मात्रा में पार होने देती है या बिल्कुल रोक देती है।
इसे कभी-कभी 'जीवद्रव्य
कला'
(plasma membrane) भी कहा जाता है।
इसके भीतर निम्नलिखित संरचनाएँ पाई जाती हैं:-
(1)
केंद्रक एवं केंद्रिका(2) जीवद्रव्य(3) गोल्गी सम्मिश्र या गोल्गी यंत्र(4)
कणाभ सूत्र(5) अंतर्प्रद्रव्य डालिका(6) गुणसूत्र (पितृसूत्र) एवं जीन(7)
राइबोसोम तथा सेन्ट्रोसोम(8) लवक
कुछ खास भिन्नताओं को छोड़ सभी प्रकार की कोशिकाओं,
पादप एवं जन्तु कोशिका की संरचना लगभग एक जैसी होती है।
केंद्रक
एक कोशिका में सामान्यतः एक ही केंद्रक (nucleus)
होता है, किंतु कभी-कभी एक से अधिक केंद्रक भी पाए जाते हैं। कोशिका के
समस्त कार्यों का यह संचालन केंद्र होता है। जब कोशिका विभाजित होती है तो इसका भी
विभाजन हो जाता है। केंद्रक कोशिका के भीतर एक तरल पदार्थ कोशिकाद्रव्य (cytoplasm)
में प्राय: तैरता रहता है।
केंद्रिका (Nucleolus)
प्रत्येक केंद्रक में एक या अधिक केंद्रिकाएँ पाई जाती हैं।
कोशिका विभाजन की कुछ विशेष अवस्था में केंद्रिका लुप्त हो जाती,
किंतु बाद में पुन: प्रकट हो जाती है। केंद्रिका के भीतर राइबो
न्यूक्लीयक अम्ल (ritioncleric acid or RNA) तथा कुछ विशेष प्रकार के एंज़ाइम अधिक मात्रा में पाए जाते हैं।
केंद्रिका सूत्रण (mitosis) या सूत्री विभाजन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
जीवद्रव्य (protoplasm)
यह एक गाढ़ा तरल पदार्थ होता है जो स्थानविशेष पर विशेष नामों
द्वारा जाना जाता है; जैसे,
द्रव्यकला (plasma membrane) तथा केंद्रक के मध्यवर्ती स्थान में पाए जाने वाले जीवद्रव्य
को कोशिकाद्रव्य (cyt plasm) और केंद्रक झिल्ली (nuclear membrane) के भीतर पाए जाने वाले जीवद्रव्य को केंद्रक द्रव्य (nucleoplasm)
कहते हैं। कोशिका का यह भाग अत्यंत चैतन्य और कोशिका की समस्त
जैवीय प्रक्रियाओं का केंद्र होता है। इसे इसीलिए 'सजीव' (living) कहा जाता है। जीव वैज्ञानिक इसे 'जीवन का भौतिक आधार' (physcial basis of
life) नाम से संबोधित करते हैं।
गोल्गी सम्मिश्र या यंत्र (Golgi
complex or apparatus)
इस अंग का यह नाम इसके खोजकर्ता कैमिलो गोल्गी,
के नाम पर पड़ा है, जिन्होंने 1898 में सर्वप्रथम इसकी खोज की। यह अंग साधारणतः केंद्रक के समीप,
अकेले या समूहों में पाया जाता है। इसकी रचना तीन तत्वों (elements)
या घटकों (components) द्वारा हुई होती है : सपाट कोश (flattened
sacs), बड़ी बड़ी रिक्तिकाएँ
(large
vacueles) तथा आशय (vesicles)। यह एक प्रकार के जाल (network) जैसा दिखलाई देता है। इनका मुख्य कार्य कोशिकीय स्रवण (cellular
secretion) और प्रोटीनों,
वसाओं तथा कतिपय किण्वों (enzymes) का भडारण करना (storage) है।
कणाभसूत्र (Mitochondria)
ये कणिकाओं (granules) या शलाकाओं (rods) की आकृतिवाले होते हैं। ये अंगक (organelle)
कोशिकाद्रव्य (cytoplasm) में स्थित होते हैं। इनकी संख्या विभिन्न जंतुओं में पाँच लाख
तक हो सकती है। इनका आकार 1/2 माइक्रॉन से लेकर 2 माइक्रॉन के बीच होता है। विरल उदाहरणों (rare
cases) में इनकी लंबाई 40 माइक्रॉन तक हो सकती है। इनका मुख्य कार्य कोशिकीय श्वसन (cellular
respiration) बतलाया जाता है। इन्हें
कोशिका का 'पावर
प्लांट'
(power plant) कहा जाता है,
क्योंकि इनसे आवश्यक ऊर्जा (energy) की आपूर्ति होती रहती है।
अंतर्प्रद्रव्य जालिका (fndoplasmic
reticulum)
यह जालिका कोशिकाद्रव्य (cytoplasm) में आशयों (vesicles) और नलिकाओं (tubules) के रूप में फैली रहती है। इसकी स्थिति सामान्यतः केंद्रकीय झिल्ली
(nuclear
membrane) तथा द्रव्यकला (plasma
membrane) के बीच होती है,
किंतु यह अक्सर संपूर्ण कोशिका में फैली रहती है। यह जालिका
दो प्रकार की होती है : चिकनी सतहवाली (smooth surfaced) और खुरदुरी सतहवाली (rough surfaced)। इसकी सतह खुरदुरी इसलिए होती है कि इस पर राइबोसोम (ribosomes)
के कण बिखरे रहते हैं। इसके अनके कार्य बतलाए गए हैं,
जैसे यांत्रिक आधारण (mechanical support), द्रव्यों का प्रत्यावर्तन (exchange of
materials), अंत: कोशिकीय अभिगमन
(intracellular
transport), प्रोटोन संश्लेषण (protein
synthesis) इत्यादि।
गुणसूत्र या पितृसूत्र (chromosomes)
यह शब्द क्रोम (chrom) तथा सोमा (soma) शब्दों से मिलकर बना है, जिसका अर्थ होता है : रंगीन पिंड (colour
bodies)। गुणसूत्र केंद्रकों
के भीतर जोड़ों (pairs) में पाए जाते हैं और कोशिका विभाजन के साथ केंद्रक सहित बाँट
जाया करते हैं। इनमें स्थित जीवों की पूर्वजों के पैत्रिक गुणों का वाहक कहा जाता है।
इनकी संख्या जीवों में निश्चित होती है, जो एक दो जोड़ों से लेकर कई सौ जोड़ों तक हो सकती है। इनका आकार
1 माइक्रॉन से 30 माइक्रॉन तक (लंबा) होता है। इनकी आकृति साधारणतः अंग्रेजी
भाषा के अक्षर S जैसी
होती हैं। इनमें न्यूक्लिओ-प्रोटीन (nucleoprotein) मुख्य रूप से पाए जाते हैं। पितृसूत्रों के कुछ विशेष प्रकार
भी पाए जाते हैं, जिन्हें लैंपब्रश पितृसूत्र (lampbrush chromosomes) और पोलोटीन क्रोमोसोम (polytene chromosomes) की संज्ञा दी गई है। इन्हें W, X, Y, Z, आदि नामों से संबोधित किया जाता है।
जीन (gene)
जीनों को पैत्रिक गुणों का वाहक (carriers
of hereditary characters) माना
जाता है। क्रोमोसोम या पितृसूत्रों का निर्माण हिस्टोन प्रोटीन तथा डिऑक्सीराइबोन्यूक्लिक
एसिड (DNA)
तथा राइबोन्यूक्लिक एसिड (RNA) से मिलकर हुआ होता है। जीन का निर्माण इन्हीं में से एक,
डी॰ एन॰ ए॰ द्वारा होता है। कोशिका विभाजनों के फलस्वरूप जब
नए जीव के जीवन का सूत्रपात होता है, तो यही जीन पैतृक एवं शरीरिक गुणों के साथ माता पिता से निकलकर
संततियों में चले जाते हैं। यह आदान प्रदान माता के डिंब (ovum)
तथा पिता के शुक्राणु (sperms) में स्थित जीनों के द्वारा संपन्न होता है। सन् 1970 के जून मास में अमरीका स्थित भारतीय वैज्ञानिक श्री हरगोविंद
खुराना को कृत्रिम जीन उत्पन्न करने में अभूतपूर्व सफलता मिली थी। इन्हें सन् 1978 में नोबेल पुरस्कार मिला था।
रिबोसोम (ribosomes) सेंट्रोसोम (centrosomes)
सूक्ष्म गुलिकाओं के रूप में प्राप्त इन संरचनाओं को केवल इलेक्ट्रॉन
माइक्रॉस्कोप के द्वारा ही देखा जा सकता है। इनकी रचना 50% प्रोटीन तथा 50% आर॰ एन॰ ए॰ द्वारा हुई होती है। ये विशेषकर अंतर्प्रद्रव्य
जालिका के ऊपर पाए जाते हैं। इनमें प्रोटीनों का संश्लेषण होता है।
सेंट्रोसोम (centrosomes)–
ये केंद्रक के समीप पाए जाते हैं। इनके एक विशेष भाग को सेंट्रोस्फीयर
(centrosphere)
कहते हैं, जिसके भीतर सेंट्रिओलों (centrioles) का एक जोड़ा पाया जाता है। कोशिका विभाजन के समय ये विभाजक कोशिका
के ध्रुव (pole) का
निर्धारण और कुछ कोशिकाओं में कशाभिका (flagella) जैसी संरचनाओं को उत्पन्न करते हैं।
लवक (plastids)
लवक अधिकतर पौधों में ही पाए जाते हैं। ये एक प्रकार के रंजक
कण (pigment
granules) हैं,
जो जीवद्रव्य (protoplasm) में यत्र तत्र बिखरे रहते हैं। क्लोरोफिल (chlorophyll)
धारक वर्ण के लवक को हरित् लवक (chloroplas)
कहा जाता है। इसी के कारण वृक्षों में हरापन दिखलाई देता है।
क्लोरोफिल के ही कारण पेड़ पौधे प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis) करते हैं। कुछ वैज्ञानिकों के मतानुसार लवक कोशिकाद्रव्यीय वंशानुगति
(cytoplasmic
inheritance) के रूप में कोशिका विभाजन
के समय संतति कोशिकाओं में सीधे सीधे स्थानांतरित हो जाते हैं।