By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'
प्राकृतिक चिकित्सा एवं उपवास के दौरान शरीर में
एकत्रित गंदगी अर्थात विजातीय द्रव्य तेजी से निकलने के कारण रोग उन्मूलक उभार परिलक्षित
होते हैं। इन्हें उपचार के उभार कहा जाता है |
जीर्ण रोगों को दूर करने के लिए उपचार
उत्तेजक रखा जाता है अर्थात सुस्त शरीर को अधिक क्रियाशील करके तीव्र प्रदाह प्रतिक्रिया
उत्पन्न की जाती है इसे उपचार के उभार कहा
जाता है। इस बात को एक रोगी के उदाहरण से समझ सकते हैं –
एक घेंघा वाले रोगी की प्राकृतिक
चिकित्सा की गयी। कुछ दिनों में घेघे की सूजन 50 प्रतिशत कम हो गयी। पर एक दिन पुनः
उभाड़ आया और उसकी सूजन कुछ बढ़ी सी मालूम हुई, साथ ही साथ उसमें एक फोड़ा सा भी बना,
जिसमें से बहुत सड़ा पानी पस (विजातीय द्रव्य) निकला और दो एक
दिन में ही सूजन घटकर 25 प्रतिशत रह गयी और कुछ दिनों में बिल्कुल ठीक हो गया। तो इस फोड़े को क्या समझें?
निःसन्देह यह फोड़ा मित्र बनकर आया और रोगी को पूर्णतः स्वस्थ
कर गया। इसलिए यह घटना उपचार के उभार का अच्छा उदाहरण है |
तीव्र रोगों को दबाने से शरीर के
विभिन्न संस्थानों में विजातीय विषाक्त पदार्थ इकट्ठे होते हैं। विषाक्त विजातीय तत्व
इकट्ठा होने से अस्थियों की संरचना में विकृति, मांसपेशियों तथा स्नायुबन्धों की कमजोरी,
आत्मनियंत्रण की कमी, नकारात्मक चिंतन, स्नायुविक विकृति, मानसिक विकृति तथा मिरगी इत्यादि के लक्षण दिखते
हैं | यह
लक्षण रोग के उभार कहे जाते हैं |
प्राकृतिक चिकित्सा में रोगों के
उभार को चिकित्सीय भाषा में रोग का तीव्र रूप, रोग की अपकर्षावस्था, पुराने और प्रत्यावर्तन, रोग उपशन संकट आदि विभिन्न नामों से जाना जाता है। हालाँकि यह
रोग उभार शरीर से रोग को बाहर निकालने का प्रकृति का प्रयास मात्र होते हैं |