प्राकृतिक चिकित्सा में रोग एक ही माना जाता है, वह है शरीर में विजातीय या दूषित पदार्थों का इकट्ठा होना। उसको बाहर निकलना उपचार होता है। ऐसी स्थिति में निदान की कोई आवश्यकता नहीं होती है। यदि अक्षरशः इसका पालन किया जाय तो यह ज्ञात नहीं हो सकेगा कि शरीर का कौन सा अंग व्याधिग्रस्त है अथवा मल कहाँ पर अधिक एकत्रित है अथवा उसमें विजातीय तत्वों की सीमा क्या है? निदान के द्वारा जब ये सभी बातें ज्ञात हो जाती हैं तो चिकित्सा प्रक्रिया को बहुत अधिक बल मिलता है। रोगों की वास्तविक दशा का पता लगने से उसकी साध्यता-असाध्यता पर विचार हो सकता है। इसके साथ ही साथ कभी-कभी रोगी भी अपने रोग के विषय में जानना चाहता है तथा उसका सूक्ष्म से सूक्ष्म ज्ञान प्राप्त करना चाहता है। अतः प्राकृतिक चिकित्सक को रोग की पूरी स्थिति के विषय में जानकारी होनी चाहिए। सारांश में कहा जा सकता है कि प्राकृतिक चिकित्सा में निदान की उतनी ही आवश्यकता है, जितनी कि अन्य चिकित्सा पद्धतियों में होती है।