मनुष्य के शरीर में स्वयं रोगों को
नष्ट करने की अपूर्व शक्ति है। यह पांच तत्वों
का बना है जिनका असंतुलन ही रोग उत्पन्न करने का मुख्य कारण है। इन्ही तत्वों - मिटटी,
पानी, धुप,हवा और आकाश द्वारा रोगो की चिकित्सा प्राकृतिक चिकित्सा कहलाती है। प्राकृतिक
चिकित्सा में सामान्य रूप से प्रयोग में लायी जाने वाली चिकित्सा और निदान की विधियाँ निम्न है :
आहार चिकित्सा
इस चिकित्सा के अनुसार आहार को उसके
प्राकृतिक या अधिक से अधिक प्राकृतिक रूप में लिया जाना चाहिए। मौसम के ताजे फल ,
ताज़ी हरी पत्तेदार सब्जियाँ तथा अंकुरित अन्न इस दृष्टि से उपयुक्त
है। इन आहारों को मोटे तौर पर तीन वर्गों में वर्गीकृत किया गया है -
1.शुद्धि कारक आहार : रस
- निम्बू,
खटटे रस, कच्चा नारियल पानी, सब्जियों के सुप, छाछ , गेहूँ घास का रस आदि।
2.शांतकारक आहार : फल सलाद,
उबली /भाप में बनायीं गयी सब्जियाँ,
अंकुरित अन्न, सब्जियों की चटनी आदि।
3.पुष्टि कारक आहार : सम्पूर्ण
आटा , कन
युक्त चावल, कम दाले
,
अंकुरित अन्न, दही आदि।
क्षारीय होने के कारण ये आहार स्वास्थ्य को उन्नत करने में शरीर का शुद्धि करण करने एवं
रोगों से मुक्त करने में सहायक सिद्ध होते है। इसलिए आवश्यक
है कि इन आहारों का आपस में उचित मेल हो। स्वस्थ रहने के लिए हमारा भोजन 20 % अम्लीय
और 80 % क्षारीय अवश्य होना चाहिए। अच्छा स्वास्थ्य
बनाये रखने के इच्छुक व्यक्ति को संतुलित आहार लेना चाहिए। प्राकृतिक चिकित्सा में आहार को ही मुलभुत औषधि
माना जाता है।
उपवास चिकित्सा
स्वस्थ रहने के प्राकृतिक तरीको में
उपवास एक महत्वपूर्ण तरीका है। उपवास में प्रभावी परिणाम प्राप्त करने के लिए मानसिक
तैयारी एक महत्वपूर्ण क्रिया है।एक या दो दिन का उपवास किसी को भी कराया जा सकता है।
उपवास के बारे में प्राकृतिक चिकित्सा का मानना है
कि यह पूर्ण शारीरिक और मानसिक विश्राम की प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया के दौरान पाचन
प्रणाली विश्राम में होती है अत: भोजन का पाचन करने वाली प्राण ऊर्जा पूर्ण रूप से
निष्कासन की प्रक्रिया में लग जाती है। यही उपवास का उदेश्य भी है। मस्तिष्क एवं शरीर
के विकारो को दूर करने के लिए उपवास एक उत्कृष्ट चिकित्सा है। मंदाग्नि , कब्ज ,
गैस आदि पाचन संबंधी रोगो, दमा-श्वास , मोटापा, उच्च रक्तचाप तथा गठिया आदि रोगो के निवारणार्थ उपवास का परामर्श
दिया जाता है।
मिटटी चिकित्सा
मिटटी द्वारा चिकित्सा बहुत ही सरल
और प्रभावी है। इसके लिए प्रयोग में लायी जाने वाली मिटटी साफ सुथरी और जमीन से 3-4
फ़ीट नीचे की होनी चाहिए। उसमे किसी तरह की कोई मिलावट कंकर पत्थर या रासायनिक खाद आदि
न हो।
शरीर को शीतलता प्रदान करने के लिए
मिटटी चिकित्सा का प्रयोग किया जाता है। मिटटी शरीर के दूषित पदार्थो को घोलकर एवं
अवशोषित कर अंतत: शरीर के बाहर निकाल देती है।
मिटटी की पट्टी तथा मिटटी से स्नान इसके मुख्य उपचार है। विभिन्न रोगो जैसे
कब्ज,
तनावजन्य सिरदर्द, उच्च रक्तचाप तथा चर्मरोगों आदि में इसका प्रयोग सफलता पूर्वक
किया जाता है। सिरदर्द तथा उच्च रक्तचाप की स्थिति में माथे पर मिटटी की पट्टी रखी
जाती है।
जल चिकित्सा
मिटटी की तरह जल को भी चिकित्सा का
सवार्धिक प्राचीन साधन माना जाता है। स्वच्छ
,
ताजे एवं शीतल जल से अच्छी तरह स्नान करना जल चिकित्सा का उत्कृष्ट
रूप है। इस प्रकार के स्नान से शरीर के सभी रंध्र खुल जाते है। शरीर में हल्कापन और स्फूर्ति आती है। शरीर के सभी
संस्थान और मांसपेशिया सक्रिय हो जाती है तथा रक्त संचार भी उन्नत होता है। विशेष अवसरों पर नदी ,
तालाब तथा झरने में स्नान करने की प्रथा वस्तुत: जल चिकित्सा
का ही एक प्राकृतिक रूप है। जल चिकित्सा के अन्य साधनो में कटिस्नान,
एनिमा , गर्म-ठंडा सेंक , गर्म पाद स्नान , रीढ़ स्नान , भाप स्नान, पूर्ण टब स्नान, गर्म-ठंडी पट्टियां, पेट , छाती तथा पैरो की लपेट आदि आते है जो इसके उपचारात्मक प्रयोग
है। जल चिकित्सा का प्रयोग मुख्यत: स्वस्थ रहने के साथ साथ विभिन्न रोगों के निवारणार्थ
किया जाता है।
मालिश चिकित्सा
मालिश भी प्राकृतिक चिकित्सा की एक
विधि है तथा स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक है। इसका प्रयोग अंग प्रत्यंगो को पुष्ट करते
हुए रक्त संचार को उन्नत करने में होता है।
सर्दी के दिनों में पूरे शरीर की मालिश के बाद धूप स्नान करना सदैव स्वस्थ एवं
क्रियाशील बने रहने का एक चिर परिचित तरीका है।
यह सभी के लिए लाभकारी है इससे मालिश एवं सूर्य किरण चिकित्सा दोनों का लाभ
मिलता है। रोग की स्थिति में मालिश के विशिष्ट प्रयोगों द्वारा आवश्यक चिकित्सकीय प्रभाव
उत्पन्न करके विभिन्न रोग लक्षणों को दूर किया जाता है। जो व्यायाम नहीं कर सकते उनके लिए मालिश एक अच्छा
विकल्प है। मालिश से व्यायाम के प्रभाव उतपन्न किये जा सकते है।
सूर्य किरण चिकित्सा
सात रंगो से बनी सूर्य की किरणों के
अलग अलग चिकित्सीय प्रभाव होते हैं। यह रंग है - बैंगनी ,
नीला, आसमानी, हरा, पीला,
नारंगी, तथा लाल। स्वस्थ रहने
तथा विभिन्न रोगों के उपचार में ये रंग प्रभावी ढंग से कार्य करते है। रंगीन बोतलों
में पानी तथा तेल भर कर निश्चित अवधि के लिए सूर्य की किरणों के समक्ष रखकर तथा रंगीन
शीशो को सूर्य किरण चिकित्सा साधनो के रूप में विभिन्न रोगों के उपचारार्थ प्रयोग किया
जाता है। सूर्य किरण चिकित्सा की सरल विधिया
स्वास्थ्य सुधार की प्रक्रिया में प्रभावी तरीके में मदद करती हैं।
वायु चिकित्सा
अच्छे स्वास्थ्य के लिए स्वच्छ वायु
अत्यंत आवश्यक है। वायु चिकित्सा का लाभ वायु स्नान के माध्यम से उठाया जा सकता है। इसके लिए कपड़े उतार कर या हल्के कपड़े पहन कर किसी स्वच्छ एकांत स्थान
पर जहाँ पर्याप्त वायु हो , प्रतिदिन टहलना चाहिए। कई रोगों में चिकित्सक भी वायु स्नान की सलाह देते है। प्राणायाम का भी वायु चिकित्सा की एक विधि के रूप
में चिकित्सात्मक प्रयोग किया जाता है।
निदान की विधियाँ
रोग के मूल कारणो को जानने के लिए प्राकृतिक
चिकित्सक दिनचर्या, ऋतुचर्या, आहार
क्रम से लेकर वंशानुगत कारणो तक का विश्लेषण करते है। तात्कालिक रोगिक अवस्था को ज्ञात करने के लिए मुख्यत:
निम्न दो नैदानिक विधियाँ प्रयोग की जाती है -
1.कनिका निदान : पूरा शरीर कनिका
के विभिन्न क्षेत्रो में प्रतिबिम्बित होता है। उनके विश्लेषण द्वारा रोगो की दशा का अच्छी तरह से निदान किया जा सकता है।
2.आकृति निदान : शरीर के विभिन्न अंगो
में विजातीय पदार्थों का जमाव शरीर की आकृति से परिलक्षित होता है। शरीर के विभिन्न
अंगो में रोग की स्थिति का निदान उनके अवलोकन से किया जा सकता है।
प्राकृतिक चिकित्सा के कुछ मुख्य उपचार
1 मिटटी की पट्टी
2मिटटी स्नान
सूर्य स्नान
4गर्म और ठंडा सेंक
5कटि स्नान
6 मेहन स्नान
7पाद स्नान
8वाष्प स्नान
9पूर्ण टब स्नान
1रीढ़ स्नान
1गीली चादर लपेट
1छाती की पट्टी
1पेट की पट्टी
1घुटने की पट्टी
1एनिमा
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