परिचय :
मधुमेह को आधुनिक चिकित्सा विज्ञान द्वारा जीवन भर चलने
वाला रोग माना जाता है, किन्तु प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार यह पाचन
संस्थान का विकार माना जाता है जिसे नियमित योगाभ्यास, जीवनशैली में सकारात्मक परिवर्तन और पथ्याहार के प्रयोग से शीघ्र नियंत्रण में
लाया जा सकता है |
मधुमेह क्या है ?
वास्तव में मधुमेह ऐसे लोगों का रोग है जिनके जीवन में
शारीरिक व्यायाम या शारीरिक श्रम के लिए कोई स्थान नहीं है |इस रोग में अग्नाशय ग्रंथि द्वारा बनाई जा रही इन्सुलिन की मात्रा परिणात्मक एवं गुणात्मक रूप से कम हो जाती है | परिणामस्वरूप रक्त में शर्करा की मात्रा बढ़
जाती है और अतिरिक्त शर्करा मूत्रमार्ग से निकलने लगती है |
मधुमेह के कारण :
शारीरिक श्रम का अभाव, मानसिक श्रम की अधिकता, अप्राकृतिक रहन-सहन और अपथ्याहार इस रोग के मूल कारणों में हैं | गरिष्ठ, चिकने तथा मीठे पदार्थों के निरन्तर प्रयोग से जठराग्नि मंद होकर पाचक
ग्रंथियों को दुर्बल बना देती हैं | यह रोग शरीर में चयापचय की प्रक्रिया को अस्त-व्यस्त कर देता है |
मधुमेह को अनुवांशिक रोग भी माना जाता है | पहले प्रौढ़ावस्था में लोग मधुमेह से ग्रस्त होते थे किन्तु अब तो मधुमेह से
ग्रस्त नवयुवक भी बहुतायत से देखने में आते हैं | इस वृद्धि का एक बड़ा कारण हमारी जीवनशैली में हो रहा नकारात्मक परिवर्तन है |
मधुमेह के लक्षण :
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मूत्र में शर्करा का आना
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मूत्र गाढ़ा एवं चिपचिपा हो जाना
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बार-बार मूत्र लगना
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अधिक भूख लगना
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अधिक प्यास लगना
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त्वचा में रूखापन
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नेत्र ज्योति कम हो जाना
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थकान एवं दुर्बलता का अनुभव
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घाव भरने में विलम्ब होना
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शरीर में खुजली होना
मधुमेहजन्य
विकृतियाँ :
मधुमेह एक ऐसा रोग है जिसके अनेक दुष्प्रभाव हैं, जो इस प्रकार हैं :
·
गुर्दे तथा यकृत की खराबी
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तन्त्रिका संस्थान की विकृतियाँ
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नपुंसकता
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स्नायुविक विकृतियाँ
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दृष्टि-नाड़ी विकृतियाँ
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मधुमेही संमुर्छा आदि
मधुमेह
का वर्गीकरण :
मधुमेह को निम्नलिखित तीन वर्गों में वर्गीकृत किया गया है -
1.
इन्सुलिन पर अनिर्भर मधुमेह (NIDDM)
2.
इन्सुलिन पर निर्भर मधुमेह (IDDM)
3.
जुवेनाइल मधुमेह (जन्मजात)
मधुमेह
की चिकित्सा :
मधुमेह को नियंत्रित रखने में योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा
विशेष रूप से प्रभावी है | 'केन्द्रीय योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा
अनुसन्धान परिषद (आयुष मंत्रालय, भारत सरकार)' के अंतर्गत
विभिन्न संस्थानों में हुए अनुसंधानात्मक कार्यों से भी इस रोग के नियंत्रण में इन
चिकित्सा पद्धतियों के प्रभावी होने की पुष्टि हुयी है | मधुमेह की चिकित्सा में यह ध्यान रखना चाहिए कि रोगी पर्याप्त श्रम करे, उसका आहार नियंत्रित हो, वह तनावमुक्त रहे, उसका पाचन संस्थान सुव्यवस्थित रूप से कार्य करे तथा मधुमेह जन्य जो व्याधियां
प्रायः उत्पन्न हो जाती हैं वे नियंत्रित रहें |
उपर्युक्त सिद्धांतों का पालन करते हुए मधुमेह के रोगी की
चिकित्सा का निर्धारण किया जाता है | इसमें योग की निम्नलिखित प्रक्रियाएं लाभदायक
हैं, परन्तु अभ्यास क्रम का चयन रोगी की अवस्था के अनुसार किया जाता है |
षट्कर्म |
कुंजल, नौलि, शंख प्रक्षालन | |
बंध |
उड्डियानबंध |
आसन |
कटिचक्रासन,अर्धमत्स्येन्द्रासन, वज्रासन, भुजंगासन, पश्चिमोत्तानासन, शलभासन, धनुरासन, मंडूकासन, कोणासन तथा पादहस्तासन | |
प्राणायाम |
भस्त्रिका, उज्जायी, नाड़ीशोधन एवं भ्रामरी | |
सूर्यनमस्कार |
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ध्यान |
प्राकृतिक चिकित्सा :
इसी प्रकार प्राकृतिक चिकित्सा की निम्नलिखित प्रक्रियाएं
मधुमेह के प्रभावी नियंत्रण एवं प्रबंधन में सहायक हो सकती हैं
मिटटी चिकित्सा |
पेट पर मिटटी की पट्टी |
जल चिकित्सा |
पेट पर गरम ठंडा सेंक, एनिमा, ठंडा कटिस्नान, गरम-ठंडा कटिस्नान, पेट की लपेट, रीढ़ स्नान |
मालिश चिकित्सा |
सम्पूर्ण शरीर की मालिश |
सूर्य किरण चिकित्सा |
धूप स्नान, भूरी बोतल में सूर्य की किरणों से कम से कम
8 घंटे तप्त किया गया जल आधा कप मात्रा में भोजनोपरान्त 2 बार लिया जाना भी काफी लाभप्रद पाया गया है |
व्यायाम चिकित्सा |
प्रातःकाल टहलना |
आहार चिकित्सा :
मधुमेह के रोगी का आहार नियंत्रित होना चाहिए |आहार निर्धारण के लिए रोगी आयु, वजन, व्यवसाय तथा मधुमेह के प्रकार को ध्यान में
रखना चाहिए | मधुमेह के रोगी क्या और कितनी मात्रा में
खाएं इसके लिए उन्हें निम्नलिखित तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है -
1.
जिनका भार सामान्य से कम है |
2.
जिनका भार सामान्य है |
3.
जिनका भार सामान्य से अधिक है |
मधुमेह रोगी के
भोजन में कैलोरी को निर्धारित करने का अच्छा तरीका यह है कि वह प्रतिदिन अपने
मूत्र की जाँच करके देख ले कि कितना अनाज खाने से उसका मूत्र शर्करा से रहित रहता
है | जैसे-जैसे स्वास्थ्य अच्छा होता जाये और अनाज को सहन करने की क्षमता बढती जाये, अनाज की मात्रा बढ़ाई जा सकती है | मधुमेह रोगी दही एवं छाछ को अपने भोजन में स्थान देकर अपनी शक्ति को बनाये रख
सकते हैं |
मधुमेह के रोगी की दैनिक आहारचर्या :
प्रातः |
करेले का रस- 10 से 20 मिली. |
नाश्ता |
बिना मलाई का दूध – 250- 400 मिली. या मट्ठा या अमृताहार जिसमे अंकुरित चना, मूंग, मेथी - लगभग 50 ग्राम + ताज़े आंवले का रस -50 मिली. |
दोपहर का भोजन |
रोटी (गेहूं + चना + सोयाबीन + मेथी + रागी + बाजरा/ ज्वार मिलाकर)- 25 से 50 ग्राम, हरी सब्जी – 250 ग्राम, सलाद – 25 से 50 ग्राम, मूंग की दाल – 25 ग्राम, दही- 150 ग्राम, मट्ठा – 1 गिलास |
सायंकाल |
भुने हुए चने – 30 ग्राम, सब्जी का सूप या मट्ठा – 1 गिलास |
रात्रि का भोजन |
दोपहर की तरह परन्तु रात्रि में दही/ मट्ठे का सेवन उपयुक्त नहीं रहता |
मधुमेह
में लाभप्रद आहार :
सोयाबीन, सेम, शलजम, खीरा, ककड़ी, लहसुन, लौकी, करेला, पालक, मेथी, बथुआ, चौलाई, आंवला, जामुन, बेल आदि |
मधुमेह के रोगी के लिए जानने योग्य आवश्यक बातें :
1.
मधुमेह के रोगियों के लिए भोजन में मेथी का
प्रयोग विशेष लाभकारी है | मेथी को अंकुरित करके अथवा उसका पाउडर बनाकर
एक-एक चम्मच लिया जा सकता है |
2.
मधुमेह के रोगियों को गेहूं के आटे में चना,सोयाबीन, मेथी, रागी तथा बाजरा/ ज्वार मिलाकर उससे बनी 2-3 रोटियां खाने की
सलाह दी जाती है | 10 किलो आटे में लगभग 4 किलो गेहूं, 2 किलो चना, 1 किलो सोयाबीन, 1 किलो रागी, 1 बाजरा, 1 किलो मेथी के मिश्रण का अनुपात रखा जा सकता है |
3.
मधुमेह के रोगी को सभी प्रकार की मीठी चीजें, वनस्पति, अत्यधिक मीठे फल, बाजार में मिलने वाले मैदे आदि से बने खाद्य पदार्थ,संरक्षित डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ, धुम्रपान, गुटका तथा मद्यपान पूर्णतया वर्जित है l
4.
करेला, नीम की पत्तियां, गुडमार तथा जामुन आदि भी मधुमेह के नियंत्रण में सहायक हो सकते हैं |
5.
मधुमेह के रोगी को अपनी रक्त शर्करा की जाँच
नियमित अन्तराल पर कराते रहना चाहिए, ताकि किसी प्रकार की मधुमेह जन्य विकृति से रोगी
अपना बचाव कर सके | रक्त शर्करा का सामान्य स्तर खाली पेट -
70-110 mg/dl तथा खाने के बाद 110-150 mg/dl तक हो सकता है |
6.
नियमित रूप से लम्बी दुरी तक टहलना मधुमेह के
रोगियों के लिए लाभप्रद है |
मधुमेह एक दुसाध्य
रोग है किन्तु योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा तथा नियंत्रित आहार की सहायता से उसे
प्रभावी रूप से कम समय में ही नियंत्रण में लाया जा सकता है |