VRINDAVAN INSTITUTE OF NATUROPATHY AND YOGIC SCIENCES is an authorized Work Integrated Vocational Education Center (WIVE) of Asian International University in India.

वरुण मुद्रा

By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'

विधि :

·         पदमासन या सुखासन में बैठ जाएँ | रीढ़ की हड्डी सीधी रहे एवं दोनों हाथ घुटनों पर रखें |

·         सबसे छोटी अँगुली (कनिष्ठा)के उपर वाले पोर को अँगूठे के उपरी पोर से स्पर्श करते हुए हल्का सा दबाएँ। बाकी की तीनों अँगुलियों को सीधा करके रखें।

 सावधानियां :

·         जिन व्यक्तियों की कफ प्रवृत्ति है एवं हमेशा सर्दी,जुकाम बना रहता हो उन्हें वरुण मुद्रा का अभ्यास अधिक  समय तक नहीं करना चाहिए।

·         सामान्य व्यक्तियों को भी सर्दी के मौसम में वरुण मुद्रा का अभ्यास अधिक समय तक नही करना चाहिए | गर्मी व अन्य मौसम में इस मुद्रा को प्रातः – सायं 24-24 मिनट तक किया जा सकता है।

मुद्रा करने का समय व अवधि :

·         वरुण मुद्रा का अभ्यास प्रातः-सायं अधिकतम 24-24  मिनट तक करना उत्तम है, वैसे  इस मुद्रा को किसी भी समय किया जा सकता हैं।

चिकित्सकीय लाभ :

·         वरुण मुद्रा शरीर के जल तत्व सन्तुलित कर जल की कमी से होने वाले समस्त रोगों को नष्ट करती है।

·         वरुण मुद्रा स्नायुओं के दर्द, आंतों की सूजन में लाभकारी है |

·         इस मुद्रा के अभ्यास से शरीर से अत्यधिक पसीना आना समाप्त हो जाता है |

·         वरुण मुद्रा के नियमित अभ्यास से रक्त शुद्ध होता है एवं त्वचा रोग व शरीर का रूखापन नष्ट होता है।

·         यह मुद्रा शरीर के यौवन को बनाये रखती है | शरीर को लचीला बनाने में भी यह लाभप्रद है ।

·         वरुण मुद्रा करने से अत्यधिक प्यास शांत होती है।  

आध्यात्मिक लाभ :

·         जल तत्व (कनिष्ठा) और अग्नि तत्व (अंगूठे) को एकसाथ मिलाने से शरीर में आश्चर्यजनक परिवर्तन  होता है । इससे साधक के कार्यों में निरंतरता का संचार होता है |