विधि :
·
पदमासन या सुखासन में बैठ
जाएँ | रीढ़ की हड्डी सीधी रहे एवं दोनों हाथ घुटनों पर रखें |
·
सबसे छोटी अँगुली
(कनिष्ठा)के उपर वाले पोर को अँगूठे के उपरी पोर से स्पर्श करते हुए हल्का सा
दबाएँ। बाकी की तीनों अँगुलियों को सीधा करके रखें।
सावधानियां :
·
जिन व्यक्तियों की कफ
प्रवृत्ति है एवं हमेशा सर्दी,जुकाम बना रहता हो उन्हें वरुण मुद्रा का अभ्यास
अधिक समय तक नहीं करना चाहिए।
·
सामान्य व्यक्तियों को भी
सर्दी के मौसम में वरुण मुद्रा का अभ्यास अधिक समय तक नही करना चाहिए | गर्मी व
अन्य मौसम में इस मुद्रा को प्रातः – सायं 24-24 मिनट तक किया जा सकता है।
मुद्रा करने का समय व अवधि :
·
वरुण मुद्रा का अभ्यास
प्रातः-सायं अधिकतम 24-24 मिनट तक करना उत्तम
है, वैसे इस मुद्रा को किसी भी समय किया
जा सकता हैं।
चिकित्सकीय लाभ :
·
वरुण मुद्रा शरीर के जल
तत्व सन्तुलित कर जल की कमी से होने वाले समस्त रोगों को नष्ट करती है।
·
वरुण मुद्रा स्नायुओं के
दर्द, आंतों की सूजन में लाभकारी है |
·
इस मुद्रा के अभ्यास से
शरीर से अत्यधिक पसीना आना समाप्त हो जाता है |
·
वरुण मुद्रा के नियमित
अभ्यास से रक्त शुद्ध होता है एवं त्वचा रोग व शरीर का रूखापन नष्ट होता है।
·
यह मुद्रा शरीर के यौवन
को बनाये रखती है | शरीर को लचीला बनाने में भी यह लाभप्रद है ।
·
वरुण मुद्रा करने से
अत्यधिक प्यास शांत होती है।
आध्यात्मिक लाभ :
·
जल तत्व (कनिष्ठा) और
अग्नि तत्व (अंगूठे) को एकसाथ मिलाने से शरीर में आश्चर्यजनक परिवर्तन होता है । इससे साधक के कार्यों में निरंतरता
का संचार होता है |