योग के 4 प्रमुख प्रकार हैं:
1.मंत्रयोग, 2.हठयोग, 3.लययोग और 4.राजयोग। मंत्र योग और लय योग में कोई
खास फर्क नहीं है। अंगिरा, याज्ञवल्यक, कपिल, पतंजलि, वसिष्ठ, कश्यप और वेद व्यास से लय योग के सिद्धांत प्रकट हुए।
लययोग के 9 अंग माने जाते हैं जो इस प्रकार से है- यम,
नियम, स्थूल क्रिया, सूक्ष्म
क्रिया, प्रत्त्याहार, धारणा, ध्यान, लयक्रिया और समाधि। इसमें स्थूल क्रिया का
मंत्र क्रिया से, सूक्ष्म क्रिया का स्वरोदय क्रिया से,
प्रत्याहार का नादानुसंधान क्रिया से तथा धारणा का षट्चक्र भेदन
क्रिया से सम्बंध रहता है। हालाँकि लय योग एक विस्त्रत विषय है लेकिन सामान्यजन
यदि सिर्फ ब्रह्मरंध पर ही ध्यान देते रहें तो लय सध जाता है, क्योंकि यही शक्ति का केंद्र है।
लय योग का उद्येश्य :
लय योग का उद्येश्य है कि मस्तिष्क शांत रहकर ब्रह्मलोक
जैसा प्रकाशमान हो तथा मन निर्मल क्षीर सागर की तरह बनें। इसके लिए मस्तिष्क के
ब्रह्मरंध पर ध्यान लगाकर चक्र और कुंडलिनी जागरण किया जाता है।
लय योग की सामान्य विधि :
शांत स्थान पर ध्यानमुद्रा में बेठकर
आँखें बंद कर ध्यान को मस्तिष्क के मध्य लगाएँ। मस्तिष्क के मध्य नजर आ रहे अंधेरे
को देखते रहें और इसी में आनंद लें तथा साँसों के आवागमन को महसूस करें। पाँच से
दस मिनट तक ऐसा करें।
लय योग का लाभ :
उक्त ध्यान को निरंतर करते रहने से
चित्त की चंचलता शांत होती है। ब्रह्मरंध (भ्रकूटी) पर निरंतर ध्यान देने से
व्यक्ति ब्रह्मांड की शक्ति से जुड़कर स्वयं को सकारात्मक उर्जा का स्रोत बना लेता
है। ईश्वर से जुड़ने का यही एक मात्र साधन है। इससे मस्तिष्क निरोगी, शक्तिशाली
तथा निश्चिंत बनता है। सभी तरह की चिंता, थकान और तनाव से
व्यक्ति दूर होता है।