आहार के संबंध में आपने अब तक जितना अध्ययन किया है, उससे आप इस बात का अनुमान तो आसानी से लगा सकते हैं कि आहार का कार्यक्षेत्र अत्यन्त विस्तृत है अर्थात् आहार के कार्यों का दायरा केवल शरीर तक ही सीमित नहीं है, वरन् यह प्राणी के समग्र विकास में सहायक है। आहार के प्रमुख कार्य है-
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शरीर क्रियात्मक कार्य
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मनोवैज्ञानिक कार्य
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सामाजिक कार्य
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आध्यात्मिक उन्नति में सहायक
शरीर
क्रियात्मक कार्य
आपके मन में जिज्ञासा उठ रही
होगी कि आहार के शरीर क्रियात्मक कार्यों से हमारा क्या आशय है? आहार के वे
समस्त कार्य जो शारीरिक स्वास्थ्य संवर्धन से सम्बन्ध रखते है, शरीर
क्रियात्मक कार्यों में आते है।आहार के शरीर क्रियात्मक कार्य है-
उर्जा प्रदान
करना-
आहार का सर्वप्रमुख कार्य शरीर
को उर्जा प्रदान करना। भोजन के रूप में हम जिन पोषक तत्वों को ग्रहण करते हैं, वे सभी तत्व
हमें शारीरिक, मानसिक
रूप से तथा प्रत्येक प्रकार के कार्य करने के लिये आवश्यक उर्जा प्रदान करते हैं।
जिस प्रकार किसी गाड़ी को चलाने के लिये डीजन या पेट्रोल की जरूरत होती है, उसी प्रकार
हमें भी किसी भी प्रकार का काम करने के लिये उर्जा की आवश्यक्ता होती है, जिसकी पूर्ति
आहार से होती है।जब हमारे शरीर में उर्जा की कमी हो जाती है तो हमें थकान का अनुभव
होने लगता है। इसके परिणामस्वरूप हमें भूख लगती है और हम भोजन ग्रहण करते है।इसके
परिणामस्वरूप उर्जा प्राप्त होने से पहले की तरह पुन: क्रियाशील हो जाते है।
शरीर
संवर्धन-
उम्र के अनुसार शरीर का समुचित
विकास होना भी आवश्यक है। शरीर की यह बृद्धि एवं विकास आहार के कारण ही होता है।
शारीरिक
क्रियाओं का सुचारू संचालन-
जैसा कि आप समझ ही चुके है, शरीर का
उर्जा स्रोत आहार है। अत: शरीर के उर्ज्ाा के कारण ही अपने-अपने कार्यों का ठीक
ढंग से समावित कर पाते है। इस प्रकार स्पष्ट है कि शारीरिक क्रियाओं का सुचारू
संचालन भी आहार का एक प्रमुख कार्य है।
सप्तधातुओं
का पोषण-
जिज्ञासु विद्यार्थियों, आयुर्वेद के
अनुसार हमारे शरीर में सात धातुयें पायी जाती है, जो निम्न है- (1)
रस (2) रक्त(3) माँस(4) मेद(5) अस्थि(6) मज्जा(7) शुक्रइन सात
धातुओं का समुचित पोषण तभी होता है,
जब हम संतुलित और आदर्श आहार लेते हैं। अत: धातुओं को पुष्ट करना आहार का एक
महत्त्वपूर्ण कार्य है।
रोगों से
सुरक्षा-
शरीर के स्वस्थ रहने के लिये यह आवश्यक है कि वह
रोग ग्रस्त न हो और रोगों से बचने एवं लड़ने के लिये शरीर में पर्याप्त रोग
प्रतिरोधक क्षमता होनी चाहिये। यदि हम ठीक समय पर, उचित मात्रा में पर्याप्त पोषक तत्वों से युक्त भोजन लेते
हैं तो हमारा शरीर रोगों को जन्म देने वाले कारकों से सुरक्षित रहता है। कहने का
आशय यह है कि जिस व्यक्ति के शरीर में जितनी अधिक मात्रा में रोग प्रतिरोधक क्षमता
विकसित होती है, वह
उतनी ही अधिक मात्रा में निरोगी रहता है और हमारी यह रोगों से लड़ने की क्षमता
हमारे आहार पर भी निर्भर करती हैं
मनोवैज्ञानिक
कार्य
हम सबकी कुछ अनुभव अत: स्पष्ट है
कि आहार शारीरिक पोषण के साथ-साथ मानसिक एवं भावनात्मक पोषण भी करता है। कहा भी
गया है-“ जैसा
खाये अन्न।वैसा बने मन।”अर्थात्-
जैसा हम भोजन ग्रहण करते हैं हमारा मन भी उसी प्रकार का हो जाता है। अत: हमारा
आहार ऐसा होना चाहिये जो शरीर के साथ-साथ मन का भी विकास करे मन को भी पोषण प्रदान
करे। अत: शारीरिक दृष्टि से आहार में सभी पोषक तत्व समुचित मात्रा में उपलब्ध होने
चाहिये तथा मानसिक दृष्टि से आहार शुद्ध एवं सात्विक होना चाहिये।इस प्रकार स्पष्ट
है कि मानसिक स्वास्थ्य को उन्नत बनाना भी आहार का ही कार्य है।
आध्यात्मिक
उन्नति में सहायक
आहार शरीर एवं मन के साथ-साथ
हमारी आत्म को भी प्रभावित करता है।अत: स्पष्ट है कि आध्यात्मिक उन्नति में सहायता
प्रदान करने का कार्य भी अप्रत्यक्ष रूप से आहार के द्वारा होता है। अत: स्पष्ट है
कि आहार द्वारा हमारा शरीर इन्द्रिय,
मन एवं आत्म सभी को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होते है।